जब क्रिकेट की बात आती है तो भारत का नाम आना लाजमी है। यहां क्रिकेट को धर्म और खिलाड़ियों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। क्रिकेट का मैच भारतीय प्रशंसकों के लिए निर्जला एकादशी से कम नहीं होता। ऐसे देश में जब इंडियन प्रीमियर लीग का सत्र शुरू होता है तो मानों महोत्सव का रूप ले लेता है। लगभग महीने भर चलने वाले इस क्रिकेट महोत्सव में कई देश के खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। उन्हें बड़ी बोली के साथ फ्रेंचाइजी टीम में शामिल किया जाता है। कहावत यह भी मशहूर है कि आइपीएल में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। लेकिन इस साल इसके आयोजन के बीच कोरोना विषाणु महामारी ने तबाही मचा रखी है। मार्च के अंतिम सप्ताह में शुरू होने वाले इस महोत्सव को 15 अप्रैल तक टाल दिया गया है। हालात नहीं सुधरे तो इसे रद्द भी किया जा सकता है। ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि आइपीएल खिलाड़ियों, फ्रेंचाइजियों और अन्य हितधारकों पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है।
15 अप्रैल के बाद आइपीएल को शुरू किया जाता है तो बीसीसीआइ के पास इसे दो तरह से आयोजित कराने का विकल्प है। इन विकल्पों पर पहले भी चर्चा की जा चुकी है। पहला रास्ता तो यह होगा कि 60 मैच के इस टूर्नामेंट को कम समय में ही करा दिया जाए। इसके लिए उन्हें एक दिन में दो मैच कराने होंगे। पहले सिर्फ शनिवार और रविवार को ही दो मैच कराए जाते थे। बीसीसीआइ के पास दूसरा रास्ता है कि मैचों की संख्या को घटाया जाए। ऐसे में लीग मैचों की संख्या को कम किया जा सकता है। इन दोनों ही विकल्पों से आइपीएल के हितधारकों को वित्तीय नुकसान होना तय है। हालांकि यह पहले विकल्प में नुकसान कम और दूसरे में ज्यादा है।
इन दोनों के अलावा एक विकल्प यह भी है कि आइपीएल को रद्द कर दिया जाए। इसकी संभावना भी ज्यादा है। क्योंकि जिस तरह से कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है, उन हालात में इसे करा पाना काफी मुश्किल है। साथ ही भारत सरकार के अलावा कई देश की सरकारों ने अपने यहां से विदेशी के आने या किसी भी नागरिक के विदेश जाने पर 15 अप्रैल के बाद तक भी पाबंदी लगा रखी है। ऐसे में जिन विदेशी खिलाड़ियों पर मोटी रकम खर्च की गई है उनका भारत आना तय नहीं है।
अब अगर आइपीएल के आयोजन के तीनों विकल्पों पर निगाह डालें तो नुकसान तय है लेकिन कितना, इसका अंदाजा लगा पाना अभी मुश्किल है। फिर भी फ्रेंचाइजियों के अब तक के मुनाफे और आइपीएल के कारोबार व ब्रांड वैल्यू के मुताबिक नुकसान बड़ा होगा। खर्च के चक्र पर ध्यान लगाए तो प्रायोजक और प्रसारक हर साल बीसीसीआइ को लगभग 4000 करोड़ रुपए देते हैं। बीसीसीआइ इसका लगभग 50 फीसद हिस्सा फ्रेंचाइजियों को देती है। हर फ्रेंचाइजी 85 करोड़ रुपए खिलाड़ियों पर खर्च करता है। जो कुल मिलाकर 680 करोड़ रुपए होता है। इसके बाद बीसीसीआइ और फ्रेंचाइजी दोनों 50-50 लाख रुपए उस राज्य संघ को देते हैं जो मैच का आयोजन करता है।
अब आइपीएल से कमाई की बात करें तो बीसीसीआइ हर साल करीब 2000 करोड़ रुपए प्रसारक और प्रायोजकों से कमाता है। प्रसारणकर्ता को विज्ञापन और अन्य मदों से करबी 3300 करोड़ रुपए मिलते हैं। वहीं अन्य केंद्रीय प्रायोजकों को करीब साढ़े सात सौ करोड़ की कमाई होती है। हर फ्रेंचाइजी को प्रतिवर्ष केंद्रीय पूल के तहत 250 करोड़ मिलते हैं। साथ ही उन्हें स्थानीय प्रायोजकों से लगभग 30 करोड़ की कमाई होती है। क्रिकेटरों के खाते में 680 करोड़ रुपए जाते हैं।
अब ऐसे में जाहिर है कि अगर आइपीएल रद्द हुआ तो इन सबों को बड़ा नुकासान उठाना पड़ेगा। अगर रद्द न होकर इसे पहले या दूसरे विकल्प के तहत भी कराया गया तो भी हजारों करोड़ का नुकसान होगा। यानी कोरोना विषाणु ने भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े महाकुंभ को डंस लिया है।
