देवेंद्र झाझरिया ब्राजील के रियो डी जिनेरो में हो रहे पैराओलंपिक में जैवलिन थ्रो का स्वर्ण पदक जीतकर खबरों में छा गए हैं। ये उनका दूसरा ओलंपिक गोल्ड है। देवेंद्र ने न केवल गोल्ड जीता बल्कि अपना ही विश्व रिकॉर्ड भी तोड़ा। पैराओलंपिक के भारतीय हीरो देवेंद्र की झोली में पहले से कई उपलब्धियां हैं। देवेंद्र का जन्म राजस्थान के चुरु जिले में एक साधारण परिवार में हुआ था। आठ साल की उम्र में एक पड़े पर चढ़ते समय उनका हाथ बिजली के तार से छू गया था जिसकी वजह से उन्हें अपना बायां हाथ खोना पड़ा। उनकी जिंदगी में बड़ा परिवर्तन 1995 में तब आया जब उन्होंने स्कूली पैरा-एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया। 1997 में स्कूली प्रतियोगिताओं में देवेंद्र के प्रदर्शन को देखकर उनके कोच रिपुदमन सिंह ने खेल को गंभीरता से लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
देवेंद्र ने अपना अतंरराष्ट्रीय करियर 2002 में पुसान (दक्षिण कोरिया) में हुए एशियाई खेलों से शुरू किया। उन्होंने अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक 2004 में एथेंस में हुए ग्रीष्मकालीन पैराओलंपिक खेलों में जीता। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जेवलिन थ्रो को 2008 और 2012 ओलंपिक में नहीं रखा गया था। इसलिए देवेंद्र भी दोनों ओलंपिक में भाग नहीं ले पाए थे। 2004 में हुए ओलंपिक में गोल्ड जीतने के बाद अब उन्होंने 12 साल बाद फिर से गोल्ड जीता है। देवेंद्र इस वक्त वर्ल्ड रैंकिग में वह तीसरे स्थान पर हैं। उन्होंने एथेंस पैराओलंपिक में ने 62.15 मीटर दूर जैवलिन थ्रो करके गोल्ड जीता था। रियो पैराओलंपिक में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए 63.7 मीटर दूर जैवलिन फेंककर गोल्ड जीता।
[jwplayer erw5ORdH]
36 वर्षीय देवेंद्र ने 2016 के पैराओलंपिक में तिरंगे के साथ भारतीय दल का नेतृत्व किया। साल 2005 में उन्हें प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उसी साल उन्हें महाराणा प्रताप पुरस्कार से भी नवाजा गया। 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया। ये सम्मान पाने वाले वो पहले पैराओलंपिक खिलाड़ी हैं। 2014 में कारोबारी संगठन फिक्की ने उन्हें साल का सर्वश्रेष्ठ पैरा-खिलाड़ी घोषित किया था। भारतीय रेलवे में नौकरी करने वाले देवेंद्र अपनी बेटी और पत्नी के साथ जयपुर में रहते हैं। वो राजस्थान की पैराओलंपिक कमेटी के भी सदस्य हैं।