क्रिकेट के मैदान पर अक्सर नए रिकॉर्ड बनते और बिगड़ते रहते हैं लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसे भी वाकये देखने को मिलते हैं जो लंबे तक क्रिकेट में याद किए जाते हैं। ऐसा ही एक वाकया देखने को मिला था आज ही के दिन यानी कि 15 दिसंबर 1979 को जिसने इस दिन को क्रिकेट के इतिहास में हमेशा के लिए चर्चा का विषय बना दिया। क्रिकेट के नियम और इसके दायरे ही इसे खास बनाते हैं, बल्लेबाजी के अपने नियम हैं तो गेंदबाजी के अपने, लेकिन कभी-कभी नियमों को जाने-अनजाने में खिलाड़ी ताक पर रखकर मैदान में उतरते हैं तो सुर्खियों में आ जाते हैं। ऐसा ही देखने को मिला था ऑस्ट्रेलिया की धरती पर जब पर्थ के मैदान पर डेनिस लिली एल्युमिनियनम धातु से बने बल्ले को लेकर उतरे थे और उनके इस कदम ने क्रिकेट फील्ड में बवाल मचा दिया था।

वैसे तो डेनिस लिली मुख्य रूप से एक गेंदबाज थे और 9वें नंबर पर बल्लेबाजी करने के लिए आते थे, लेकिन इस खिलाड़ी की गेंदबाजी के साथ-साथ इनका विवाद भी अक्सर सुर्खियों में रहा है। ऐसा ही विवाद दिखा 1979 के इस टेस्ट मैच में भी, जहां ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड की टीमें आमने-सामने थीं। तीन मैचौं की सीरीज का पहला मुकाबला खेला जा रहा था और मेजबान ऑस्ट्रेलिया ने महज 232 रन पर 8 विकेट गंवा दिए थे। ऐसे में लिली बल्लेबाजी करने के लिए आए और हाथ में लकड़ी का नहीं बल्कि एल्युमिनियम का बल्ला लेकर उतरे थे।

ऐसा करने के पीछे भी है दिलचस्प कहानीः दरअसल यहां काम लिली ने अनजाने में नहीं किया था बल्कि अपने आर्थिक फायदे के लिए किया था। यह बैट उनके ग्रेम मोनेगन की कंपनी ने बनाया था। इसका लक्ष्य था कि परंपरागत क्रिकेट बैट के साथ इसे रिप्लेस किया जा सके। जो स्कूलों और विकासशील देशों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। लिली अपने दोस्त की कंपनी में हिस्सेदार थे तो उन्होंने इस बैट के साथ ही उतरने का निर्णय लिया था।


जब दूसरे दिन का खेल शुरू हुआ तो चौथी ही गेंद से विरोध शुरू हो गया जब लिली ने एक स्टेट ड्राइव खेला और तीन रन जोड़े जिसपर ऑस्ट्रेलिया के कप्तान ने उन्हें लकड़ी का बल्ला लेने को कहा जिससे गेंद को बाउंड्री के पार भेजा जा सके। इसपर जब इंग्लैंड के कप्तान को ये पता चला तो उन्होंने अंपायर से इसकी शिकायत की और कहा की एल्युमिनियम का बल्ला लेदर को खराब कर रहा है। इसपर करीब 10 मिनट तक मैच रुका रहा और लिली इसे बदलने को राजी नहीं थे। उन्होंने गुस्से में इस धातु के बल्ले को दूर फेंक दिया और फिर लकड़ी के बल्ले से खेलने को राजी हुए तब जाकर मैच शुरू हुआ। हालांकि इसके बाद ये बैट खूब बिके लेकिन बाद में क्रिकेट के नियमों ने इस तरह के बल्लों पर पाबंदी लगा दी।