क्रिकेट में नैतिकता को लेकर खिलाड़ियों पर अक्सर तब उंगली उठाई जाती है जब उन्हें पता होता है कि सच क्या है और इसके बावजूद वो इसे स्वीकार नहीं करते हैं। क्रिकेट मैदान पर ऐसा वाकया कई बार होता है कि कोई खिलाड़ी कैच पकड़ता है और उसे यह बात मालूम होती है कि उसने कैच ठीक से पकड़ा है या ड्रॉप कर दिया है, लेकिन वह खुद इस बात को स्वीकार करने की बजाए थर्ड अम्पायर के पास जाता है। कहा जाता है कि क्रिकेट में अम्पायर का निर्णय सर्वमान्य होता है और उसके निर्णय पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता है। इस बात पर भी बहस होती है कि क्या यदि कोई बल्लेबाज आउट है तो उसे अंपायर के निर्णय का इंतजार करना चाहिए या खुद ही विकेट छोड़ देना चाहिए? क्रिकेट की भाषा में इसे ‘वॉकिंग आॅफ’ कहते हैं।
भारत के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर और आॅस्ट्रेलिया के पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज एडम गिलक्रिस्ट ने अपने पूरे क्रिकेट करियर में ‘वॉकिंग आॅफ’ परंपरा का निर्वाह किया। ये दोनों ही खिलाड़ी आउट होने के बाद अंपायर के फैसले का इंतजार किए बिना खुद ही पवेलियन की ओर लौट आते थे। क्रिकेट में अपनी इमानदारी के लिए इन दोनों खिलाड़ियों की मिशाल दी जाती है। हालांकि, इसके इतर क्रिकेट में ऐसेी खिलाड़ी हैं या रहे हैं जिन्होंने खेल भावना का बहुत अच्छा परिचय नहीं दिया है। सौरव गांगुली की कप्तानी में आॅस्ट्रेलियाई दौरे पर गई भारतीय टीम के साथ टेस्ट मैच में क्या हुआ था ये सर्वविदित है। उस इकलौते मैच में खेल भावना तार तार हो गई थी।
सचिन तेंदुलकर और एडम गिलक्रिस्ट की उसी परंपरा को आॅस्ट्रेलियाई बल्लेबाज जॉर्ज बेली आगे बढ़ा रहे हैं। जॉर्ज बेली कई मौकों पर आउट होने के बाद अंपायर के फैसले का इंतजार किए बिना पवेलियन का रुख कर चुके हैं। ऐसा ही एक वाकया शेफील्ड शील्ड टूर्नामेंट के एक मैच में देखने को मिला। तस्मानिया और वेस्टर्न आॅस्टेलिया के बीच चल रहे मैच के तीसरे दिन जॉर्ज बेली ने खेल भावना का परिचय देते हुए अंपायर के फैसले का इंतजार किए बिना पवेलियन का रुख कर लिया। तस्मानिया के बल्लेबाज जॉर्ज बेली गेंदबाज के एक सीधे फुलटॉस गेंद को चूक गए और गेंद उनके पिछले पैड से जाकर टकराई। बेली को पता था की वो विकेट के सामने हैं। उन्होंने अंपायर की उंगली उठने का इंतजार किए बिना ही पिच छोड़ दिया और पवेलियन की ओर चलने लगे।
