उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआई पर शिकंजा कसते हुए शुक्रवार (21 अक्टूबर) को राज्यों संघों को मिलने वाले कोष पर तब तक रोक लगा दी जब तक कि अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और राज्य इकाइयां सुधारवादी कदमों पर लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने की शपथ नहीं दें। कई निर्देश देते हुए उच्चतम न्यायालय ने दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के आय और खर्चे की ‘समीक्षा और ऑडिट’ के लिए ‘स्वतंत्र ऑडिटर’ की नियुक्ति के लिए भी कहा जो विभिन्न कंपनियों को दिए बड़ी कीमतों के अनुबंधों को भी देखेगा। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, ‘बीसीसीआई को किसी भी राज्य संघ को किसी भी उद्देश्य से किसी भी तरह के कोष के वितरण से तब तक रोका जाता है जब तक कि संबंधित राज्य संघ इस अदालत द्वारा 18 जुलाई 2016 के फैसले में स्वीकार की गई समिति की सिफारिशों को लागू करने की शपथ का प्रस्ताव स्वीकार नहीं करते।’
पीठ ने कहा, ‘इस तरह का प्रस्ताव पारित होने के बाद और संबंधित राज्य संघों को किसी भी तरह का भुगतान देने से पहले प्रस्ताव की प्रति समिति और इस अदालत के समक्ष दी जानी चाहिए जिसके साथ राज्य संघ के अध्यक्ष का हलफनामा भी होना चाहिए जिसमें इस अदालत द्वारा संशोधित समिति की रिपोर्ट में शामिल सुधारवादी कदमों को मानने की शपथ ली गई हो।’ पीठ ने कहा कि शर्तें स्वीकार करने और उन्हें मानने पर ही राज्य संघों को कोष का भुगतान किया जाए। पीठ ने ठाकुर और बीसीसीआई सचिव अजय शिर्के को निर्देश दिया कि वे पूर्व के आदेश के संदर्भ में तीन दिसंबर 2016 से पहले अनुपालन के अलग अलग हलफनामे दायर करें।
स्वतंत्र ऑडिटर की नियुक्ति पर न्यायालय ने कहा कि ऑडिटर बीसीसीआई को होने वाली आय और उसके खर्चों की समीक्षा और ऑडिट करेगा और बीसीसीआई की निविदा प्रक्रिया और समिति द्वारा तय की गई मूल्य सीमा से अधिक के अनुबंधों को भी देखेगा। कोई भी अनुबंध जारी करने के लिए लोढ़ा समिति से पूर्व स्वीकृति जरूरी होगी। समिति द्वारा तय मूल्य सीमा से अधिक के अनुबंध समिति की स्वीकृति पर निर्भर करेंगे।