ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में चेतेश्वर पुजारा अपनी बल्लेबाजी की वजह से सुर्खियों में बने रहे। ‘मैन ऑफ द सीरीज’ बने पुजारा के लिए यह सीरीज बेहद खास रहा, उन्होंने चार मैचों की इस सीरीज में तीन शतक लगाए। भारत की ओर से सबसे ज्यादा 521 रन बनाने वाले पुजारा के लिए यहां तक का सफर कतई आसान नहीं था। द इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पुजारा के पिता अरविंद शिवलाल पुजारा ने बचपन से ही उन्हें अनुशासन में रहने की सीख दी है। बचपन में पुजारा को चिंटू या पुजारा भाई के छोकरो कहकर पुकारा जाता था। अरविंद शिवलाल पुजारा भी क्रिकेटर रह चुके हैं, वह एक विकेटकीपर बल्लेबाज थे उन्होंने कई रणजी मैचों में हिस्सा लिया। इसके बाद वह स्पोर्ट्स कोटा के तहत रेलवे में नौकरी करने लगे। पुजारा के पिता उन्हें टेनिस बॉल से खेलने की इजाजत नहीं देते थे, उनका मानना था कि टेनिस बॉल का बाउंस सीजन बॉल से काफी अलग होता है जो खिलाड़ी के खेलने को तरीके को खराब कर सकता है। पुजारा बचपन में रेलवे कॉलोनी के पास स्थिति नीम के पेड़ के नीचे हर शाम घंटों बल्लेबाजी का अभ्यास किया करते थे।
13 साल की उम्र में चेतेश्वर ने राजकोट अंडर -16 टीम में जगह बनाई। पुजारा की बल्लेबाजी की भूख कई बार विरोधी दल के गेंदबाजों पर भारी पड़ जाती थी। यहां तक कि गेंदबाज परेशान होकर यह तक कहने लगते थे कि भैया, यह तो बिल्कुल द्रविड़ की तरह खेलता है आउट ही नहीं होता। आज की दौर में जहां युवा पीढ़ी टी-20 ओर फटाफट क्रिकेट की ओर अपना सारा ध्यान देते हैं तो वहीं पुजारा ने टेस्ट क्रिकेट में अपनी एक अलग पहचान कायम की है। साल 2000 के दौरान पुजारा ने अंडर-16 में खेलते हुए तिहरा शतक जड़ा था, जिसे देख उनके पिता बेहद खुश हुए थे।
हालांकि, 300 रन बनाने के बावजूद पुजारा को भारत के अंडर -16 एशिया कप टीम के लिए नहीं चुना गया। इसके बाद पुजारा कुछ समय तक बेंग्लुरु में कॉरपोरेट टूर्नामेंट में खेलते नजर आए। एक मैच के दौरान जब वह बल्लेबाजी कर रहे थे, तो उस समय के मौजूदा भारतीय कप्तान राहुल द्रविड़ वहां पहुंचे और उन्होंने उनकी सरहाना की। इसके बाद जब द्रविड़ रणजी खेलने राजकोट आए तब भी पुजारा से मिले। पुजारा आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, वेस्टइंडीज विव रिचर्ड्स पुजारा को टेस्ट क्रिकेट का प्योर गोल्ड कह चुके हैं। वहीं आए दिन क्रिकेट के दिग्गज पुजारा की तारीफों के पुल बांधते रहते हैं।