संदीप भूषण
बिहार के दक्षिणी इलाके को विभाजित कर साल 2000 में भारत का अठ्ठाइसवां राज्य बनने वाले झारखंड के क्रिकेट संघ की स्थापना 1935 में ही हो गई थी। यह भले ही आपको अटपटा लगे लेकिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने भी अब इसी पर मुहर लगाई है। अब जब बीसीसीआइ के सभी काम लोढ़ा समिति की देखरेख में चल रहे हैं तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि इतनी बड़ी बात को नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है। सवाल यह भी है कि कैसे किसी राज्य के निर्माण से पहले ही वहां के लिए कोई संस्था बनाई जा सकती है? 16 मार्च से झारखंड राज्य क्रिकेट संघ (जेएससीए) के मैदान पर ही भारत और आस्ट्रेलिया के बीच तीसरा टैस्ट खेला जाना है। दरअसल, झारखंड 15 नवंबर 2000 को बिहार से विभाजित हुआ था। इससे पहले बिहार में एक ही क्रिकेट संघ था। झारखंड के अलग होते ही संसाधनों का हवाला देते हुए झारखंड में बने नए क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआइ से मान्यता मिल गई। लेकिन जेएससीए ने खुद को 1935 में स्थापित बताया है। झारखंड क्रिकेट संघ की आधिकारिक वेबसाइट पर भी यही दर्ज है। तीसरे टैस्ट के लिए जारी किए गए टिकट पर भी क्रिकेट संघ के लोगो के साथ 1935 ही अंकित है।
इस संबंध में सूत्रों का कहना है कि झारखंड क्रिकेट संघ को टैस्ट की मान्यता दिलाने के लिए यह सारा खेल रचा गया है। उनका कहना है कि ‘हम अगर कुछ समय के लिए यह मान लें कि झारखंड राज्य क्रिकेट संघ की स्थापना बिहार क्रिकेट संघ के सहारे की गई हो तो भी यह मुमकिन नहीं।’उनका कहना है कि बिहार क्रिकेट संघ की वेबसाइट पर साफ दर्ज है कि यहां क्रिकेट संघ की स्थापना 1936 में हुई। अब यह कैसे संभव है कि किसी एक राज्य से विभाजित होकर बने किसी राज्य में संस्थाएं पहले बन गई हों।
इस पूरे मामले पर क्रिकेट एसोसिएशन आॅफ बिहार के सचिव आदित्य वर्मा का कहना है कि यह पूरी तरह से गलत है। उन्होंने आरोप लगाया कि झारखंड राज्य क्रिकेट संघ ने असंवैधानिक तरीके से यह सारा खेल किया है। उन्होंने इस पूरे मामले में बीसीसीआइ को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा, मैं बीसीसीआइ से एक सवाल करना चाहता हूं कि जब झारखंड नवंबर 2000 में बना तो उसे मान्यता 1935 में ही कैसे मिल गई। उन्होंने कहा कि अब बीसीसीआइ ही बताए कि क्या यह उनके रूल बुक के मुताबिक सही या गलत।