अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद् (आईसीसी) की बैठक में क्रिेकेट खेलने वाले देशों के बीच पैसों के बंटवारे को लेकर नए प्रस्ताव पर बात होनी है। तीन साल में पहली बार हो रही आईसीसी बोर्ड मीटिंग में साल 2014 में पास किए गए प्रस्ताव को वापस लिए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है तो बीसीसीआई को आईसीसी से मिलने वाली रकम में एक हजार करोड़ रुपये की कमी होगी। हालांकि बावजूद इसके उसे साल 2023 तक 2500 करोड़ रुपये मिलेंगे जो कि किसी भी अन्य देश से ज्यादा है।
तीन साल पहले एन श्रीनिवासन के कार्यकाल में जो प्रस्ताव लाया गया था उसके अनुसार बीसीसीआई को 3400 करोड़ रुपये मिलने हैं। हालांकि इस प्रस्ताव पर कई देशों ने आपत्ति जताई थी। क्योंकि इसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड को सबसे ज्यादा रकम दी गई थी। इसके पीछे श्रीनिवासन का तर्क था कि इन तीनों देशों से ही सबसे ज्यादा कमाई होती है, इसलिए इनका हक भी ज्यादा बनता है।
शशांक मनोहर ने आईसीसी में पद संभालने के बाद इस प्रस्ताव को गलत बताया। उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव दूसरे देशों और छोटे क्रिकेट बोर्ड पर धौंस जमाने वाला है। उन्होंने नया प्रस्ताव रखा जिसमें बीसीसीआई को पहले के 507 मिलियन डॉलर के बजाय 357 मिलियन डॉलर मिलेंगे। वहीं दूसरे नंबर पर इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड होगा जिसे 85 मिलियन डॉलर मिलेंगे। मनोहर के प्रस्ताव में बीसीसीआई के पर्स से 6 और इंग्लैंड की जेब से 1 प्रतिशत की कटौती की गई है।

वहीं ऑस्ट्रेलिया का पर्स पुराने फॉर्मूले पर ही रखा गया है। लेकिन दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान सहित बाकी क्रिकेट संघों की रकम बढ़ा दी गई है। नए प्रस्ताव के अनुसार पर्स में कटौती के बाद भी जो रकम भारत को मिलेगी वह इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और वेस्ट इंडीज की संयुक्त कमाई से भी ज्यादा है।
बीसीसीआई इसका विरोध कर रहा है। उसका कहना है कि जब वह आईसीसी को सबसे ज्यादा रेवेन्यू देता है तो उसका पर्स भी बड़ा होना चाहिए। बोर्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट में भी कहा गया था कि नया प्रस्ताव लागू होने पर एक हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा। हालांकि बाद में बीसीसीआई के अधिकारियों ने भी इसे मंजूरी दे दी। 2014 के प्रस्ताव से पहले टेस्ट खेलने वाले सभी 10 देशों को 67 मिलियन डॉलर मिलते थे। दुबई में होने वाली बैठक पर सबकी नजरें हैं। अगर नया प्रस्ताव पास होता है तो न्यूजीलैंड, जिम्बाब्वे, बांग्लादेश जैसे छोटे देशों को काफी फायदा होगा। इन देशों का फंड काफी बढ़ जाएगा। ये बोर्ड वैसे भी फंड की कमी से जूझ रहे हैं।

