महेंद्र सिंह धोनी को विश्व का बेहतरीन विकेटकीपर माना जाता है। साथ ही इनसे बेहतरीन मैच फिनिशर शायद ही कोई और हो। वनडे और टी-10 फॉर्मेट में देश को विश्व कप दिलाने वाले धोनी का मैच खत्म करने का अपना ही अंदाज है। एक ओर जहां दिग्गज बल्लेबाज मैच के अंतिम पल बेहद संभल कर खेलने की कोशिश करते हैं और इस कोशिश में कई बार मैच भी गंवा देते हैं वहीं दूसरी ओर माही क्रिटिकल कंडीशन में भी मैच का रुख अपनी टीम की ओर कर देते हैं। आज हम आपको ऐसे ही मैच की याद ताजा करवाने जा रहे हैं।

ये मैच ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच 2012 में त्रिकोणीय श्रृंखला का मैच खेला जा रहा था। 270 रन के लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम इंडिया को गौतम गंभीर ने शानदार शुरुआत दी लेकिन 35 ओवर में 178 रन पर भारत के 4 विकेट गिर जाने से मेजबान टीम को जीत करीब आती दिखने लगी। इसके बाद सुरेश रैना ने कप्तान धोनी का बेहतरीन साथ निभाया लेकिन मैच के अंतिम क्षण तक आते-आते रैना और जडेजा का विकेट गिर चुका था। भारत को जीत के लिए आखिरी ओवर में 13 रन की जरूरत थी और सट्राइक पर मौजूद थे रविचंद्रन अश्विन।

आखिरी और निर्णायक ओवर क्लिंट मेक्के को मिला। पहली बॉल पर अश्विन ने अटपटा शॉट खेलन की कोशिश की और वो क्लीन बोल्ड होने से बाल-बाल बचे। इस गेंद पर कोई रन नहीं बना। दूसरी बॉल पर अश्विन ने सिंगल लिया वह इसे डबल में तब्दील करना चाह रहे थे मगर धोनी स्ट्राइक अपने ही पास रखना चाहते थे। तीसरी गेंद 135.9 किमी/प्रतिघंटा की रफ्तार से फेंकी गई, जिसपर धोनी ने छक्का लगाया। अगली गेंद पर धोनी ने शॉट हवा में खेला, जिसे बाउंड्री के पास मौजूद खिलाड़ी ने कैच कर लिया मगर ये बॉल वेस्ट से ऊपर फंकी गई थी। इस वजह से भारत को कोई नुकसान नहीं हुआ। इस गेंद पर धोनी ने दो रन लिए ऊपर से नो-बॉल होने के चलते एक रन और भारत के खाते में जुड़ गया।

अब भारत को जीत के लिए तीन गेंदों पर 3 रन की जरूरत थी। धोनी ने चौथी बॉल पर तेज शॉट लगाया। ये गेंद भले ही बाउंड्री के पास रोक ली गई। मगर इस दौरान दोनों बल्लेबाज जीत के लिए तीन रन पूरे कर चुके थे। धोनी ने भारत को ऐसे वक्त में ये मैच जिताया, जिस पल लगभग सभी उम्मीद छोड़ चुके थे। धोनी ने टीम को ये जीत दिलाई वो भी अपने ही खास अंदाज में। धोनी ने इस मैच में नाबाद रहते हुए शानदार 44 रन की पारी खेली।