भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने मंगलवार (16 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उसके 18 जुलाई के फैसले की समीक्षा करने की अपील की है। उस फैसले में कोर्ट ने इस क्रिकेट संस्था में सुधारों के संबंध में आरएम लोढ़ा समिति की अधिकतर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। बीसीसीआइ के उच्च अधिकारियों ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुआई वाली पीठ का उनके खिलाफ ‘रवैया पूर्वग्रह से प्रभावित’ रहा है और उन्हें इस मामले की सुनवाई से हट जाना चाहिए। बीसीसीआइ ने इसके साथ ही दलील दी कि फैसला तर्कहीन था और इसमें निजी स्वायत्त संस्था के लिए कानून बनाने को कोशिश की गई है, जबकि उसके लिए पहले से ही कानून हैं।
बोर्ड ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति एफएमआइ कलिफुल (अब सेवानिवृत्त) के फैसले में दलीलों और तथ्यों का सही तरह से उल्लेख नहीं किया गया और ना ही उनसे सही तरह से निबटा गया। उन्होंने कहा कि फैसला असंवैधानिक और इस अदालत के पूर्व के कई फैसलों के विपरीत है और यह संविधान के अनुच्छेद 19:1 के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने और उन्हें अमान्य ठहराने वाला है। फैसले से सेवानिवृत्त न्यायधीशों की समिति को न्यायिक अधिकार आउटसोर्स किए गए, जो कानून में अस्वीकार्य हैं। समीक्षा याचिका में खुली सुनवाई की भी मांग की गई है।

