अमृतसर के मियादी कलां गांव की रहने वाली गुरजीत के परिवार का हॉकी से कुछ लेना देना नहीं था। अब तोक्यो ओलंपिक में उसने इतिहास रच दिया। भारत की महिला हॉकी टीम ने तोक्यो ओलंपिक में सबको चौंकाते हुए आॅस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर पहली बार सेमीफाइनल में कदम रख दिया है।
यह कारनामा गुरजीत कौर के दागे गए गोल से संभव हुआ। इस मैच में ड्रैग फ्लिकर गुरजीत कौर के गोल से ही भारत ने आॅस्ट्रेलिया को मात दी। जीत का गोल इस मायने में खास है कि आॅस्ट्रेलिया के ऊपर पूल स्टेज में पांच मैचों में सिर्फ एक गोल हुआ था। ड्रैग फ्लिक को रोकने में आॅस्ट्रेलिया की डिफेंडर्स माहिर मानी जाती हैं। लेकिन, गुरजीत की झन्नाटेदार फ्लिक को वे काबू में नहीं कर सकीं। ड्रैग फ्लिक से गुरजीत को टीम में अलग पहचान मिली।

अपनी टीम के लिए एक अच्छी ड्रैग फ्लिकर बनने के लिए गुरजीत को कोच से हमेशा मदद मिलती रही। जूनियर नेशनल कैंप से जुड़ने से पहले वह ड्रैग फ्लिकिंग की कला से खास अवगत नहीं थी। 2012 जूनियर कैंप से जुड़ने के बाद उसने ड्रैग फ्लिकिंग का हुनर सीखा। इस कैंप से जुड़ने से पहले ड्रैग फ्लिक का अभ्यास किया था, लेकिन उसने इस तकनीक के बेसिक्स को अच्छी तरह से नहीं सीखा था। जीत खालसा कॉलेज फॉर वुमन में पढ़ी हैं।उनकी बहन प्रदीप कौर पंजाब खेल विभाग में हॉकी कोच हैं। खालसा कॉलेज में ही गुरजीत ने हॉकी की बारीकियों को सीखा। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारतीय महिला टीम ओलिंपिक मेडल जरूर जीतेगी।

उनके पिता सतनाम सिंह के लिए तो बेटी की पढ़ाई ही सबसे पहले थी। गुरजीत और उनकी बहन प्रदीप ने शुरुआती शिक्षा गांव के पास के निजी स्कूल से ली। इसके बाद वे तरनतारन के कैरों गांव में एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने गई। यहीं हॉकी के लिए उनका लगाव शुरू हुआ। वे लड़कियों को हॉकी खेलते देख प्रभावित हुई और उन्होंने इसमें हाथ आजमाने का फैसला किया।

दोनों बहनों ने जल्द ही खेल में महारत हासिल की और छात्रवृत्ति पा ली। इसके बाद गुरजीत कौर ने जालंधर के लायलपुर खालसा कॉलेज से स्नातक किया। करीब पांच साल तक कॉलेज की अकादमी में वे खेलती रहीं। गुरजीत कौर को हर समय प्रैक्टिस को लेकर जुनून रहता था और उससे कभी छुट्टी कर मैदान नहीं छोड़ा। हर समय खेल अभ्यास को ही प्राथमिकता देती रही। गुरजीत कौर अब तक करीब 53 इंटरनेशनल मैच खेल चुकी हैं। वह उत्तर मध्य रेलवे (एनसीआर) प्रयागराज में सीनियर क्लर्क के पद पर तैनात है।