भारत की खेल इतिहास में ऐसे बहुत कम खिलाड़ी हैं जिन्होंने ट्रैक इवेंट्स में सफलता हासिल की। ये लिस्ट बहुत छोटी है लेकिन हाल के अंतरराष्ट्रीय इवेंट्स में भारतीय खिलाड़ियों की सफलता ने ये दिखाया कि आने वाले समय में भारत एथलेटिक्स में एक बड़ा नाम होगा। इसका एक बड़ा श्रेय जमैका से आए क्वार्टरमाइलर कोच जेसन डॉसन को जाता है। उन्होंने भारतीय खिलाड़ियों की सोच को बदला जिसका परिणाम अब दिखने लगा है।

डॉसन के सामने थी बड़ी चुनौती

जेसन डॉसन ने इंडियन एक्सप्रेस को अपनी चुनौतियों के बारे में बताते हुए कहा, ‘जब मैं यहां आया मैं जानता था कि ये काम बहुत मुश्किल होने वाला है। जो मैंने आज तक किया ये उससे अलग होगा। इसमें काफी सारी रुकावटें थीं।’ डॉसन का मानना है कि जब तक खिलाड़ियों पर दबाव नहीं बनाया जाता वह अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते। भारतीय एथलीट्स को लगता था कि डॉसन के प्लान उनके लिए बहुत ज्यादा मुश्किल थे। भारतीय एथलीट ने बताया था कि ज्यादा लिफ्टिंग करने की वजह से उन्हें चोट लग जाती थी। खिलाड़ियों को बहुत मुश्किल हो रही थी लेकिन डॉसन पीछे नहीं हटे।

चोटिल होने से डरते थे खिलाड़ी

डॉसन ने कहा, ‘वह हमेशा चोटिल होने के बारे में सोचते थे। इसलिए मैंने उन्हें बताया कि खिलाड़ी चोट से सिर्फ तभी दूर रह सकता है जब वह रिटायर हो जाए। जब आप वॉर्म अप करेंगे तब भी आपको चोट लग सकती है। जब आप पुश अप करेंगे तब भी ऐसा हो सकता है। उनका सबसे बड़ा डर ये था कि उन्होंने पहले ऐसा कभी नहीं किया था।

रिले टीम पर दिखा असर

डॉसन का प्लान काम करना लगा और इसका पहला उदाहरण बने राजेश रमेश। जमैका के कोच और रिले कोच ने मिलकर ऐसी टीम को तैयार किया जिसने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में अमेरिकन एथलीट को चुनौती दी। डॉसन ने कहा कि खिलाड़ियों का आत्मविश्वास बढ़ाना बड़ी चुनौती थी। उन्होंने कहा, ‘वह काफी छोटे लक्ष्य रखते थे। थोड़े मुश्किल लक्ष्य रखना भी काफी नहीं था। जरूरी था कि किसी बड़ी प्रतियोगिता में जाने से पहले उनके अंदर का डर खत्म हो जाए। इसी का असर रिले रेस पर दिखा।’

वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के हीट्स में भारतीय टीम ने एशियन रिकॉर्ड कायम किया था और वह दूसरे स्थान पर रही। रेस के दौरान एक समय ऐसा आया जब राजेश अमेरिकी खिलाड़ी से आगे निकल गए। इस प्रदर्शन ने वैश्विक स्तर पर लोगों की भारत को लेकर सोच बदल दी।

अमेरिका ने माना भारत का लोहा

रिले टीम का हिस्सा रहे अमोज जैकब ने बताया कि उस रेस के बाद उन्हें वह बदलाव महसूस हुआ। एनएनआईएस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘जब रेस होने के बाद हम वापस कैंप में गए तो अमेरिका की टीम बैठी हुई थी और वह हमें ही घूर रहे थे। उन्हें लगा कि हमने पता नही क्या कर दिया है। इंग्लैंड की टीम की नजर भी हम पर थी। हमने सोचा हम जितना खुश दिखेंगे उतनी चीजें ठीक रहेंगी।’ अमोज ने बताया कि उस रेस के बाद कई टीम और उनके कोचिंग स्टाफ ने उन्हें आकर बधाई दी। सभी ये समझ गए थे कि भारत अब सभी के लिए प्रतिद्वंदी होगा। वह उसे कमजोर नहीं समझ सकते।