देश के लिए जान देने का जज्बा सिर्फ सैनिकों में नहीं होता, खिलाड़ियों के अंदर भी देश को जीत दिलाने के लिए वही जज्बा होता है। वह देश के लिए खून, पसीना बहाने को तैयार रहते हैं, कोई भी दर्द सहने को तैयार होते हैं। 1962 के एशियन गेम्स में भारतीय फैंस को ऐसा ही कुछ देखने को मिला जब सिर पर टांके लिए भारतीय फुटबॉलर जरनैल सिंह मैदान पर उतरे और देश को ऐतिहासिक फाइनल में पहुंचाया।
1962 एशियन गेम्स साउथ कोरिया में आयोजित हुए थे। भारतीय टीम ने ग्रुप राउंड तीन मैच खेले थे। पहले मैच में उसे साउथ कोरिया के खिलाफ 0-2 से मात मिली थी। अगले मैच में उन्होंने कमाल की वापसी और थाइलैंड को 1-4 से हराया। ग्रुप राउंड के आखिरी मैच में उन्होंने जापान पर 2-0 से जीत दर्ज की। इन सभी मैचों में भले ही जरनैल सिंह ने गोल नहीं किया रहा हो, लेकिन सभी मैच में उनकी भूमिका काफी अहम थी।
स्ट्रेचर पर मैदान से बाहर लाए गए थे जरनैल
थाइलैंड के खिलाफ मुकाबले में जरनैल सिंह विरोधी खिलाड़ी से भिड़ गए थे। इस कारण उन्हें चोट लग गई थी। जरनैल को स्ट्रेचर पर मैदान से बाहर ले जाया गया। इसी कारण वह अगले मैच में मैदान पर नहीं उतरे। डॉक्टर्स ने उनके सिर में 6 टांके भी लगाए थे। ये टांके भी उनकी हिम्मत नहीं तोड़ पाए थे। सिर पर पट्टी बांधकर जरनैल यह मैच खेलने उतरे।
टांको के साथ सेमीफाइनल खेलने उतरे थे जरनैल
1962 एशियाई खेलों में फुटबॉल के सेमीफाइनल मुकाबले में जरनैल को स्ट्राइकर नहीं डिफेंडर के तौर पर खिलाया गया था। सिर पर पट्टी बांधे जरनैल कोच का आदेश मानकर मैदान पर उतर गए। भारत ने यह मैच 3-2 से अपने नाम किया। तीन में से दो गोल चुन्नी गोस्वामी ने और एक गोल जरनैल सिंह दागा। इसी कारण टीम फाइनल में पहुंच पाई और फिर गोल्ड मेडल जीता।
ओलंपिक में भी दिखी थी जरनैल की हिम्मत
इससे पहले साल 1960 के रोम ओलंपिक में भी दुनिया को जरनैल सिंह की हिम्मत देखने को मिली थी। इस टूर्नामेंट में भारत का सामना हंगरी से था जिसके स्ट्राइक को फ्लोरियन एलबर्ट को दुनिया के सबसे शानदार स्ट्राइकर्स में शुमार माना जाता था। टीम के कप्तान पीके बनर्जी ने ड्रेसिंग रूम जरनैल सिंह को एलबर्ट से सतर्क रहने को कहा था। इसका जवाब देते हुए जरनैल ने कहा, ‘उसके पास भी दो पैर दो हाथ है मेरे पास भी तो भला मैं उससे क्यों डरूं.’ एलबर्ट जरनैल नाम की दीवार पूरे मैच में पार नहीं की पाए।