तोक्यो ओलंपिक अपने अंतिम चरण में है। भारत के लिए मुकाबलों में पदक का रुझान करीब-करीब रियो ओलंपिक की तरह ही नजर आ रहा है। हालांकि महिला खिलाड़ियों के उम्दा प्रदर्शन से देश को कुछ पदक मिले, वहीं पुरुष हॉकी में प्रगति से अगले ओलंपिक के लिए पदक की आस बढ़ी है। लेकिन जिन स्पर्धाओं में भारत के पदक पक्के माने जा रहे थे उनमें भी लचर खेल ने प्रशंसकों को जरूर निराश किया। निशानेबाजी में प्रबल दावेदार माने जा रहे सभी खिलाड़ी पदक के बिना ही वतन वापसी करेंगे। मुक्केबाजी में भी लवलिना बोरगोहेन के पदक को छोड़ दें तो कुछ खास हासिल नहीं हुआ। पीवी सिंधू ने बेहतर कर कांस्य दिलाया तो भारोत्तोलन में मीराबाई चानू ने खेलों के महाकुंभ के शुरुआती दिनों में ही देश को रजत पदक से नवाजा। अब तक हॉकी में भी महिला खिलाड़ियों का प्रदर्शन लाजवाब रहा है। 21वीं सदी की शुरुआत से भारत को जो 16 पदक मिले उनमेंं आठ महिलाओं के नाम रहे।
1900 के ओलंपिक में भारत ने पहली बार खेलों के महाकुंभ में पदार्पण किया था। करीब 121 साल बाद उसके पास 31 पदक हैं। इनमें 1980 तक 11 पदक हॉकी टीम के नाम हैं। इसके बाद 2000 तक भारतीय एथलीटों का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा। इस बीच पदकों के लिहाज से यादगार पलों में सिर्फ लिएंडर पेश का कांस्य शामिल है जो उन्होंने 1996 में हासिल किया था। साल 2000 के बाद भारतीय खेल में बड़ा बदलाव आया। इस साल ओलंपिक का मेजबान देश आॅस्ट्रेलिया था और शहर सिडनी। भारत ने इन 21 साल में 16 पदक जीते जिनमें आठ महिला खिलाड़ियों के नाम रहे। कई तरह की सामाजिक बंदिशें, आर्थिक मजबूरियां और खेल के मूलभूत सुविधाओं की कमी के बाद भी देश की बेटियों ने अपने शानदार खेल से भारत का मान बढ़ाया। 2000 में भारोत्तोलन में कर्णम मल्लेश्वरी के कांस्य पदक ने एक नई राह तैयार की। धीरे-धीरे ओलंपिक दल में भी लड़कियों की संख्या बढ़ी और प्रदर्शन में भी वे काफी आगे बढ़ीं।
रियो ओलंपिक के निराशाजनक प्रदर्शन के बीच पीवी सिंधू के रजत और साक्षी मलिक के कांस्य ने देश की लाज बचाई। तोक्यो ओलंपिक में भी हाल कुछ ऐसा ही है। चानू के रजत और सिंधू व बोरगोहेन के कांस्य से पदक तालिका में भारत तीन पदक के साथ जूझ रहा है। कुश्ती में भी महिला पहलवान से उम्मीद लगाई जा सकती है। इस लिहाज से भारतीय खेल जगत के लिए 21वीं सदी को महिला खिलाड़ियों की सदी कहना गलत नहीं होगा। इसका एक प्रमाण ओलंपिक दल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी भी है। साल 2000 में जहां 21 महिला खिलाड़ियों ने ओलंपिक का टिकट कटाया वहीं 2004 में 25, 2008 में 25, 2012 में 23, 2016 में 54 और तोक्यो ओलंपिक में 57 महिला एथलीट पदक के लिए उतरीं।
खेलों में भागीदारी के अलावा खिलाड़ियों व स्पर्धा में विविधता ने भी विश्व पटल पर लोगों का ध्यान खींचा है। सुविधाओं की कमी और गरीबी को मात दे कर अलग-अलग स्पर्धाओं में पहली बार मुकाबला पेश करना देश के लिए सम्मान की बात है। यही कारण है कि दीपा कर्माकर के पदक से चूकने के बाद भी उन्हें प्रशंसकों से वही प्यार व सम्मान मिला जितना पदक के साथ मिलता। कर्माकर ने दिखाया कि इच्छाशक्ति के सहारे कैसे ओलंपिक तक का सफर तय किया जा सकता है। तोक्यो में तलवारबाजी में सीए भवानी देवी और रोइंग में नेथ्रा कुमानन ने क्वालीफाई कर लड़कियों के लिए रास्ते खोले।
हॉकी में आॅस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीम को परास्त कर महिला खिलाड़ियों ने देश का मान बढ़ाया। भालाफेंक में अनु रानी ने भले ही क्वालीफाइंग चरण को पार नहीं किया लेकिन यहां तक के सफर से प्रभावित किया। पैदलचाल में प्रियंका गोस्वामी का तोक्यो तक का सफर भी काफी रोचक है। चक्का फेंक में कमलप्रीत कौर पदक से चूक गर्इं लेकिन उन्होंने एक बेहतर शुरुआत की।
विदेशी टीम की महिलाओं ने भी दिखाया दम : खेलों के महाकुंभ में पुरुष और महिला दोनों के लिए बराबर स्पर्धाओं का आयोजन किया जाता है। हालांकि बीते कुछ ओलंपिक में महिला एथलीटों ने अपनी मौजूदगी और पदकों में हिस्सेदारी से काफी हैरान किया है। तोक्यो ओलंपिक में 31 जुलाई तक हुए मुकाबलों की बात करें तो जिन पांच देशों ने शीर्ष पर जगह बनाई उनमें पुरुषों के मुकाबले महिला खिलाड़ियों ने ज्यादा पदक हासिल किए। कुल पदकों में महिला खिलाड़ियों की हिस्सेदारी पर गौर करें तो उन्होंने करीब 67 फीसद पर कब्जा किया। खेलों के शक्तिपुंज कहे जाने वाले अमरिका में जहां पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने तीन गुना अधिक पदक जीते वहीं उभरती हुई खेल महाशक्ति चीन की महिलाओं ने दोगुने पदक हासिल किए।
शीर्ष पर काबिज पांच देशों ने जो 210 पदक जीते उनमें से 194 महिला खिलाड़ियों के नाम रहे। पुरुषों ने 116 पदक हासिल किए। मेजबान देश जापान, रूस ओलंपिक समिति और आॅस्ट्रेलिया का हाल भी कुछ ऐसा ही है। यानी खेलों में जो देश अभी तक श्रेष्ठ रहे उनमें महिला खिलाड़ियों की भागीदारी अधिक रही है। तोक्यो में अब तक दो या इससे ज्यादा पदक जीतने वाली महिला खिलाड़ियों की संख्या 35 है। वहीं महज 19 पुरुष ही यह कारनामा कर सके हैं। आॅस्ट्रेलिया की एमा ने चार पदक जीत कर इतिहास रच दिया।