विश्व मधुमेह दिवस (World Diabetes Day) प्रतिवर्ष 14 नवंबर को मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के समर्थन से 1991 में अंतरराष्ट्रीय मधुमेह संघ बनाया था। साल 2006 से विश्व मधुमेह दिवस संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक दिवस है। दिलचस्प बात यह है कि 14 नवंबर को ही रसगुल्ला दिवस (Rasgulla Day) भी मनाया जाता है।

क्यों मनाया जाता है रसगुल्ला दिवस?

साल 2017 में 14 नवंबर को भारत सरकार के वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय ने माना था कि रसगुल्ला का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था। तब रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट 1999 के तहत रसगुल्ले को जी.आई. (जियोग्राफिकल इंडीकेशन अर्थात भौगोलिक सांकेतिक) टैग  हासिल हुआ था। जीआई टैग किसी वस्तु के किसी खास क्षेत्र या इलाके में विशेष होने की मान्यता देता है।

यह एक पुरानी मांग थी, जिसे सरकार ने पूरा कर दिया था। जीआई टैग मिलने की पहली वर्षगांठ पर पश्चिम बंगाल सरकार ने 14 नवंबर को रसगुल्ला दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया था। हालांकि बाद में सरकार ने ओडिशा के रसगुल्ला (Odisha Rasagola) को जी.आई. टैग दे दिया था। लेकिन बंगाल ने रसगुल्ला दिवस मनाना जारी रखा।

किसने बनाया था रसगुल्ला?

पश्चिम बंगाल सरकार का दावा है कि नबीन चंद्र दास ने साल 1868 में रोशोगुल्ला यानी रसगुल्ला पहली बार बनाया था। दास का जन्म साल 1845 में कोलकाता के बाघ बाजार इलाके में हुआ था। नबीन के पिता एक चीनी व्यापारी थे, जिनकी मृत्यु नबीन के जन्म से कुछ महीने पहले हो गई थी।

किंवदंती यह है कि दास ने चीनी की चाशनी में छेना और सूजी के गोल मिश्रण को उबालकर रसगुल्ले बनाया। 1930 में नबीन के बेटे कृष्णा ने मिठाई को अधिक समय तक ताज़ा रखने के लिए वैक्यूम पैकिंग की शुरुआत की। अगले दो दशकों में परिवार ने मिठाई बनाने पैक करने और बेचने के लिए कंपनियों की स्थापना की।

वहीं, रसगुल्ला के ईजाद को लेकर ओडिशा का दावा है कि 12वीं शताब्दी में पहली बार पुरी में भगवान जगन्नाथ के मंदिर में यह मिठाई परोसी गई थी। हालांकि बंगाली इसे खारिज करने के लिए कहते हैं कि 17वीं शताब्दी तक रसगुल्ला भारत में बन ही नहीं सकता था क्योंकि तब तक भारतीय मिठाइयाँ खोया से बनाई जाती थीं, छेना से नहीं। दूध को फाड़कर छेना और पनीर बनाने की विधि भारत में पुर्तगाली लेकर आए थे।