प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार (12 सितंबर) को ग्रेटर नोएडा में विश्व डेयरी सम्मेलन (World Dairy Summit) का उद्घाटन किया। इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहे। यह सम्मेलन 15 सितंबर तक चलेगा। विश्व डेयरी सम्मेलन की शुरुआत 1903 में हुई थी। भारत में आखिरी बार इसका आयोजन वर्ष 1974 में हुआ था। 48 साल बाद भारत में आयोजित इस सम्मेलन का विषय ‘पोषण और आजीविका के लिए डेयरी’ रखा गया।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, ”आज भारत पूरे विश्व में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन करने वाला देश है। 2014 में भारत में 146 मिलियन टन दूध का उत्पादन होता था। अब ये बढ़कर 210 मिलियन टन तक पहुंच गया है। यानी करीब-करीब 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।” 2005 से 2015 के बीच दुनिया भर में दूध का उत्पादन 30 प्रतिशत बढ़ा। जहां एक तरफ वृद्धि के इन आंकड़ों को पोषण, रोजगार, अर्थव्यवस्था और बिजनेस से जोड़कर देखा जा रहा है।

वहीं दूसरी तरफ दुनिया भर में डेयरी उत्पादों पर निर्भरता को पर्यावरण के लिए चुनौती माना जा रहा है। इस वर्ष के विश्व दुग्ध दिवस (World Milk Day 2022) का थीम भी जलवायु परिवर्तन रखा गया था और पूरी चर्चा ग्रीन हाउस उत्सर्जन को कम करने और कचरा प्रबंधन को बेहतर करने के इर्द-गिर्द हुई थी। इस बात पर विचार गया था कि कैसे डेयरी उद्योग पर्यावरणीय प्रभावों को कम कर सकता है। साथ ही 30 सालों में डेयरी नेट जीरो को हासिल करने का लक्ष्य भी रखा गया था।

पृथ्वी का तापमान बढ़ा रहा है दूध

बड़े उद्योगों की तरह गायों को भी मीथेन उत्सर्जन का प्रमुख कारक माना जाता है। मीथेन (CH4) एक पावरफुल ग्रीन हाउस गैस है। यह कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में पृथ्वी का तापमान 25 गुना ज्यादा बढ़ाता है। सिर्फ एक टन मीथेन में 28 टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर तापमान बढ़ाने की क्षमता होती है।

गाय जब जुगाली करती हैं तो भारी मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है। गोबर से भी मीथेन का उत्सर्जन होता है। डॉयचे वेले की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक गाय एक दिन में करीब 300-500 लीटर मीथेन का बनाती है। दुनिया भर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का करीब एक तिहाई हिस्सा जुगाली करने वाले जानवरों से आता है।

न्यूज़18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर के जितने मवेशी ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन करते हैं, उसमें से 44 प्रतिशत के लिए डेयरी में पाली जा रही करीब 27 करोड़ गायें जिम्मेदार हैं। दुनिया की 13 सबसे बड़ी डेयरी कंपनियां पूरे यूके के बराबर ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कर रही हैं।

डाउन टू अर्थ ने अपनी एक रिपोर्ट में जलवायु वैज्ञानिक ड्रेव शिन्डेल के हवाले बताया है कि अगर बीफ और डेयरी उत्पादों का उपभोग कम कर दिया जाए तो मीथेन के उत्सर्जन में काफी कटौती होगी। साथ ही लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर रहेगा।

वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ मैगजीन के मुताबिक, अमेरिका में एक गैलन दूध के लिए 144 गैलन पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है। इस पानी का 93 प्रतिशत से अधिक का उपयोग डेयरी पशुओं के लिए चारा उगाने के लिए किया जाता है। साथ ही गायों का चारा उगाने के लिए भी बड़ी मात्रा में जमीन का इस्तेमाल भी होता है।

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दूध के इस्तेमाल की शुरुआत

अधिकांश स्तनधारी जीवों के लिए जीवन की शुरुआत दूध से होती है। इंसानों ने लगभग 10,000 साल पहले पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य स्रोत के रूप में अन्य प्रजातियों के दूध का इस्तेमाल शुरु किया था। आज दूध, मक्खन, पनीर, दही, आइसक्रीम और अन्य डेयरी उत्पादों को भारी मात्रा में कंज्यूम किया जा रहा है। इसकी वजह से पर्यावरण और पशुओं पर दबाव भी बढ़ रहा है।

सिर्फ पोषण नहीं शोषण भी है सच्चाई

पशुओं के अधिकार के लिए काम करने वाली संस्था PETA (People for the Ethical Treatment of Animals) ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है, ”डेयरी कंपनियां में गायों से दूध पैदा करने वाली मशीनों की तरह व्यवहार किया जाता है। उन्हें अपने बछड़े के पालन-पोषण से अलग कर दिया जाता है। अधिक दूध का उत्पादन करने के लिए एंटीबायोटिक्स और दूसरे रासायनिक पदार्थों को गायों के शरीर में डाला जाता है। स्तन से दूध निकलने जैसी बेहद प्राकृतिक क्रिया को डेयरी कंपनियों ने मशीनी और अप्राकृतिक बना दिया है।

गायें भी मनुष्यों की तरह ही अपने बच्चे के लिए दूध का उत्पादन करती हैं। लेकिन डेयरी कंपनियां खून से लथपथ नवजात बछड़े को गायों से अलग कर देती हैं। ताकि उनका दूध बाजार में बेचा जा सके। ज्यादातर डेयरी फॉर्म्स में गायों को बेहद खराब हालत में रखा जाता है।”