Nayab Singh Saini Ladwa Election 2024: हरियाणा के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है। हरियाणा की सबसे हॉट सीटों में शुमार कुरुक्षेत्र जिले की लाडवा सीट है क्योंकि इस सीट से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी चुनाव मैदान में हैं। बीजेपी ने चुनाव का ऐलान होने से पहले ही सैनी को अपना चेहरा घोषित कर कर दिया था।
लेकिन क्या सैनी लाडवा सीट बीजेपी की झोली में डाल पाएंगे। इस सवाल के जवाब के लिए हम इस सीट पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के साथ ही, लाडवा के जातीय समीकरणों और पुराने चुनाव नतीजों पर भी नजर डालेंगे।
लाडवा में नायब सिंह सैनी के अलावा, कांग्रेस के मेवा सिंह, बसपा-इनेलो गठबंधन की उम्मीदवार सपना बड़शामी, आप उम्मीदवार जोगा सिंह और जेजेपी-आसपा उम्मीदवार विनोद शर्मा भी दम दिखा रहे हैं।
लाडवा के जातीय समीकरण
सबसे पहले लाडवा के जातीय समीकरण को समझते हैं। लाडवा सीट पर सबसे ज्यादा लगभग 19% मतदाता सैनी समाज के हैं। इसके बाद लगभग 16% मतदाता जाट समाज के हैं। ऐसे में किसी भी प्रत्याशी की जीत और हार तय करने में जाट और सैनी मतदाताओं का अहम रोल रहता है। जाट और सैनी मतदाताओं के अलावा यहां लगभग 7% मतदाता ब्राह्मण समाज के भी हैं। बाकी मतदाता दलित, पंजाबी, मुस्लिम और वैश्य समुदाय के हैं।
हरियाणा में 2008 में हुए परिसीमन के बाद लाडवा सीट बनी थी। आईए जानते हैं कि पिछले तीन चुनाव में इस विधानसभा सीट पर क्या नतीजे रहे।
विधानसभा चुनाव | कौन बना विधायक | राजनीतिक दल |
2009 | शेर सिंह बड़शामी | इनेलो |
2014 | पवन सैनी | बीजेपी |
2019 | मेवा सिंह | कांग्रेस |
टेबल
लाडवा से नहीं लड़ना चाहते थे सैनी
विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे से पहले ही नायब सिंह सैनी लाडवा सीट से चुनाव लड़ने के लिए बहुत ज्यादा तैयार नहीं थे लेकिन पार्टी नेतृत्व के आदेश पर उन्हें इस सीट से चुनाव मैदान में उतरना पड़ा। नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री बनने के बाद करनाल की विधानसभा सीट से उपचुनाव जीते थे और वह करनाल से ही चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन अंत समय में उन्हें लाडवा भेज दिया गया।
सैनी के सामने एक बड़ी जिम्मेदारी लाडवा सीट जीतने के साथ ही पूरे प्रदेश में पार्टी का प्रचार करना भी है हालांकि प्रचार में उन्हें केंद्रीय नेतृत्व का और पार्टी के बड़े नेताओं का पूरा साथ मिला है लेकिन राज्य की सरकार चुनते वक्त मतदाता स्थानीय चेहरे को तवज्जो देते हैं। ऐसे में जब नायब सिंह सैनी पूरे प्रदेश में पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं तो लाडवा में उनकी पत्नी सुमन सैनी और करीबियों ने चुनाव प्रचार का काम संभाला हुआ है।
लाडवा में सैनी के पक्ष में क्या है?
नायब सिंह सैनी के लिए पॉजिटिव फैक्टर यहां यह है कि लाडवा सीट कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट का हिस्सा है और सैनी 2019 में कुरुक्षेत्र से ही लोकसभा का चुनाव जीते थे। ऐसे में क्षेत्र के मतदाताओं के लिए सैनी बाहरी नहीं हैं जैसा उनके विरोधी प्रचार कर रहे हैं। कुरुक्षेत्र में उनकी जीत का अंतर 6.8 लाख वोटों का रहा था और यह एक बड़ी जीत थी इसलिए बीजेपी नेतृत्व को उम्मीद है कि लाडवा सीट पर सैनी के लिए कोई बड़ी मुश्किल पेश नहीं आएगी।
सैनी का पैतृक गांव सैनी माजरा भी लाडवा सीट के अंतर्गत ही आता है। सैनी हरियाणा में बीजेपी के ओबीसी चेहरे हैं इसलिए पार्टी को उम्मीद है कि यहां उसे ओबीसी मतों का फायदा मिलेगा।
सैनी के पक्ष में पॉजिटिव फैक्टर यह भी है कि मेवा सिंह और सपना बड़शामी दोनों ही जाट समुदाय से आते हैं इसलिए जाट वोट बंट सकता है और लाडवा के लोग इस बात के लिए मतदान कर सकते हैं कि अगर नायब सिंह सैनी यहां से जीत कर फिर मुख्यमंत्री बने तो उनके क्षेत्र का अच्छा विकास होगा। साथ ही सैनी समुदाय भी एकजुट होकर नायब सिंह सैनी के पक्ष में मतदान कर सकता है।
सैनी के सामने क्या हैं चुनौतियां?
अब बात करते हैं कि सैनी के सामने चुनौतियां क्या हैं। इस इलाके में किसान भी अच्छी-खासी संख्या में हैं और किसान आंदोलन का यहां असर भी रहा था। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान भी कई जगहों पर बीजेपी के उम्मीदवारों को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस ने प्रदेश में बेरोजगारी, अग्निवीर योजना, किसान आंदोलन को मुद्दा बनाया है।
12 हजार वोटों से हारी थी बीजेपी
लाडवा में पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे अगर आप देखें तो बीजेपी के लिए या सीट काफी मुश्किल रही थी। मेवा सिंह ने 2019 में हरियाणा बीजेपी के महामंत्री पवन सैनी को 12000 से ज्यादा वोटों से चुनाव हराया था।
कांग्रेस के उम्मीदवार मेवा सिंह इस इलाके में काफी सक्रिय रहे हैं और किसानों की कथित नाराजगी को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। मेवा सिंह जाट समाज से आते हैं इसलिए उन्हें इस समाज के और किसानों के वोट मिलने की उम्मीद है।
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शेर सिंह बड़शामी की बहू हैं मैदान में
लाडवा में बसपा-इनेलो गठबंधन की उम्मीदवार शेर सिंह बड़शामी की बहू सपना बड़शामी हैं। 2009 के विधानसभा चुनाव में शेर सिंह बड़शामी यहां से इनेलो के टिकट पर जीते थे। उसके बाद दो बार बड़शामी की पत्नी बचन कौर ने यहां से चुनाव लड़ा लेकिन वह हार गई थीं। सपना बड़शामी के पक्ष में बड़ी बात यह है कि उनके ससुर यहां से विधायक रहे हैं और सास भी दो बार चुनाव लड़ चुकी हैं इसलिए उन्हें चुनाव में इसका फायदा मिल रहा है। बसपा का साथ होने से उन्हें दलित समाज के वोट भी मिल सकते हैं।
संदीप गर्ग ने भी चुनाव में लगाया पूरा जोर
लाडवा में एक चुनौती निर्दलीय उम्मीदवार संदीप गर्ग भी हैं। विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान संदीप गर्ग ने ठीक-ठाक माहौल बनाया। वह बीजेपी से टिकट मांग रहे थे लेकिन टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए। संदीप गर्ग की लाडवा में समाज सेवक के रूप में अच्छी पहचान है और वह लगातार क्षेत्र में सक्रिय भी रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार जोगा सिंह और जेजेपी-आसपा के उम्मीदवार विनोद शर्मा भी यहां पर कुछ वोटों में सेंध लगा सकते हैं। आम आदमी पार्टी थोड़ा-बहुत इसलिए मजबूत है क्योंकि लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस-आप के उम्मीदवार के रूप में सुशील गुप्ता लड़े थे तो उन्हें लाडवा में 40.91% वोट मिले थे लेकिन तब उन्हें कांग्रेस का भी साथ मिला था।
इन तमाम चुनौतियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि लाडवा हलके का चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं है।