Punjab BJP and Shiromani Akali Dal: पंजाब में चार विधानसभा सीटों के लिए होने जा रहे उपचुनाव के बीच बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ के एक हालिया बयान की काफी चर्चा है। सुनील जाखड़ ने हाल ही में कहा है कि अकाली दल को फिर से खड़ा करने की जरूरत है। बताना होगा कि पंजाब में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल का लंबे वक्त तक गठबंधन रहा लेकिन साल 2020 में मोदी सरकार के द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया।
इसके बाद अकाली दल ने विधानसभा और लोकसभा का चुनाव अकेले ही लड़ा लेकिन इसमें उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा।
पंजाब में जिन चार सीटों के लिए उपचुनाव होने रहे हैं उनके नाम बरनाला, गिद्दड़बाहा, चब्बेवाल और डेरा बाबा नानक हैं। इन सभी चारों सीटों पर 20 नवंबर को वोटिंग होगी।
मुश्किल में है अकाली दल
बताना होगा कि शिरोमणि अकाली दल के भीतर लगातार घमासान चल रहा है। पार्टी दो धड़ों में बंट गई है और पार्टी के प्रधान सुखबीर सिंह बादल लगातार मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। पार्टी में लगातार बढ़ रही बगावत के बाद सुखबीर सिंह बादल ने इस साल अगस्त में पार्टी के बड़े नेताओं शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर, पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, पूर्व मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा, सिकंदर सिंह मलूका, सुरजीत सिंह रखड़ा, पूर्व विधायक गुरप्रताप सिंह वडाला, सुरिंदर सिंह ठेकेदार और सुखबीर सिंह बादल के राजनीतिक सचिव रहे चरणजीत सिंह बराड़ को बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
गिरता गया अकाली दल का वोट शेयर
साल | अकाली दल को मिले वोट (प्रतिशत में) |
2012 विधानसभा चुनाव | 34.73% |
2014 लोकसभा चुनाव | 26.4% |
2017 विधानसभा चुनाव | 25.4% |
2019 लोकसभा चुनाव | 27.45% |
2022 विधानसभा चुनाव | 18.38% |
2024 लोकसभा चुनाव | 13.42% |
उपचुनाव भी नहीं लड़ पा रही है पार्टी
अकाली दल के हालात इस कदर खराब हैं कि वह चारों सीटों पर उपचुनाव भी नहीं लड़ पा रही है और सुनील जाखड़ ने इस सवाल को उठाया है। उन्होंने पूछा है कि अकाली दल की हालत इतनी खराब क्यों है? हालांकि बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इन सभी सीटों पर पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रहे हैं।
सुनील जाखड़ ने सिखों की सुप्रीम धार्मिक संस्था अकाल तख्त से अपील की है कि वह दोषी व्यक्तियों को फटकार लगाए लेकिन यह जरूरी है कि पंजाब की इस पंथक पार्टी को बचाया जाना चाहिए।
अकाल तख्त ने 30 अगस्त को सुखबीर सिंह बादल को तन्खैया घोषित कर दिया था। तन्खैया का मतलब है किसी को सिख धर्म की धार्मिक आचार संहिता का उल्लंघन करने का दोषी पाया जाना। सुखबीर सिंह बादल पर आरोप है कि उन्होंने 2007 के ईशनिंदा मामले में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को माफी दी थी और 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी में शामिल लोगों को सजा नहीं दी। याद दिलाना होगा कि 2007 से 2017 तक पंजाब में अकाली दल-बीजेपी की सरकार थी।
प्रकाश सिंह बादल की तारीफ क्यों?
बरनाला सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे केवल ढिल्लों ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि अकाली दल के हटने से जो जगह खाली हुई है किसी ने किसी को उसे भरना होगा। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल लोगों की नब्ज पहचानते थे। ढिल्लों के अलावा भी कई भाजपा नेता ऐसे हैं जिन्होंने प्रकाश सिंह बादल की तारीफ की है।
प्रकाश सिंह बादल के भतीजे और बीजेपी नेता मनप्रीत सिंह बादल ने हाल ही में एक पुराना वीडियो पोस्ट किया है जिसमें प्रकाश सिंह बादल मनप्रीत की तारीफ कर रहे हैं। मनप्रीत बादल 1995 में पहली बार अकाली दल के टिकट पर गिद्दड़बाहा से चुनाव जीते थे। उसके बाद 1995, 1997, 2002 और 2007 में भी वह इस सीट से चुनाव जीते। बाद में वह अकाली दल से अलग हो गए और पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब बनाई लेकिन फिर इसका कांग्रेस में विलय कर दिया। पिछले साल मनप्रीत बादल बीजेपी में शामिल हो गए थे। ढिल्लों और बादल चुनावी सभाओं में अक्सर प्रकाश सिंह बादल का नाम लेते हैं। बीजेपी की कोशिश निश्चित रूप से अकाली दल को मिलने वाले वोटों पर कब्जा करने की है क्योंकि इस बार चुनाव मैदान से अकाली दल बाहर है और वह काफी कमजोर भी हो चुका है।
गिद्दड़बाहा वह सीट है, जहां से प्रकाश सिंह बादल ने 1967 में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। प्रकाश सिंह बादल पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे थे।
ढिल्लों, मनप्रीत बादल के अलावा चब्बेवाल और डेरा बाबा नानक से बीजेपी के उम्मीदवार क्रमश: रवि करण कहलों और सोहन सिंह ठंडल भी अकाली दल में रहे हैं।
आगे क्या करेगा अकाली दल?
निश्चित रूप से अकाली दल के लिए आगे की राह आसान नहीं है। पिछले दो विधानसभा चुनाव और इस बार के लोकसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन के बाद से ही अकाली दल में निराशा का माहौल है।
सवाल यह खड़ा होता है कि जब पंजाब बीजेपी के अध्यक्ष अकाली दल को फिर से खड़ा करने पर जोर दे रहे हैं तो क्या पंजाब में फिर से बीजेपी और अकाली दल साथ आ सकते हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी के उभार के बाद से ही अकाली दल को जबरदस्त नुकसान हुआ है।
पंजाब की राजनीति के लिहाज से बीजेपी और अकाली दल को साथ आने की जरूरत महसूस हो रही है लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर जरूर बड़ा है लेकिन अकाली दल का वोट शेयर लगातार गिरता जा रहा है।
बीजेपी का वोट शेयर हुआ दोगुना
साल | बीजेपी को मिले वोट (प्रतिशत में) |
2019 लोकसभा चुनाव | 9.63% |
2022 विधानसभा चुनाव | 6.60% |
2024 लोकसभा चुनाव | 18.56% |
लोकसभा चुनाव 2024 में भी अकाली दल के सामने करो या मरो का सवाल था। पार्टी ने पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा लेकिन वह सिर्फ बठिंडा सीट पर ही जीत हासिल कर सकी। बठिंडा सीट से सुखबीर सिंह बादल की पत्नी और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल चुनाव जीती हैं। लेकिन यहां भी अकाली दल के वोट शेयर में लगातार कमी आ रही है।

2019 में सुखबीर सिंह बादल जिस फिरोजपुर की लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे उस पर भी इस बार अकाली दल को हार मिली है।
जिस तरह के हालात अकाली दल के भीतर हैं, उसमें सवाल यही खड़ा होता है कि क्या पंजाब का यह सबसे पुराना राजनीतिक दल खुद को फिर से सियासत के मैदान में जिंदा कर पाएगा। क्या सुखबीर बादल पार्टी नेताओं को एकजुट रखते हुए 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को तैयार कर पाएंगे। क्या वह बीजेपी के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाएंगे?