गीता प्रेस गोरखपुर 100 साल की यात्रा पूरी कर चुका है। पिछले दिनों संस्कृति मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने सर्वसम्मति से गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार के रूप में चुना है। पुरस्कार की घोषणा के बाद से गीता प्रेस चर्चा में है।

गीता प्रेस 100 साल में 42 करोड़ क‍िताबें छाप चुका है। गीता प्रेस का बेस्टसेलर श्रीमद्भगवद गीता है, जिसकी 16 करोड़ प्रतियां छप चुकी हैं। इसके अलावा प्रेस भारी मात्रा में रामायण, पुराण, उपनिषद, भक्त-चरित्र आदि भी छापता है। लेकिन वेद नहीं छापता। क्यों?

इस ‘क्यों’ का जवाब खुद गीता प्रेस के 11 ट्रस्टियों में से एक ईश्वर प्रसाद ने जनसत्ता डॉट कॉम के सीनियर असिस्टेंट एडिटर प्रभात कुमार उपाध्याय को दिया। उन्होंने बताया कि “हम वेद नहीं छापते। वेद न छापने की कोई खास वजह तो नहीं है। लेकिन वेद बहुत गुढ़ हैं। जनसामान्य के समझ में आना कठिन है। हमारे संस्थापक का यह लक्ष्य था कि प्रत्येक व्यक्ति सहजता और सरलता से भगवत् प्राप्ति कर सके। उसके लिए गीता सबसे सरल माध्यम है। भगवान ने सभी वेदों का निचोड़ इस छोटे से ग्रंथ में ला दिया है।”

प्रसाद आगे कहते हैं कि “गीता का अनुशीलन कर व्यक्ति सहजता से भगवत् प्राप्ति कर सकता है। यह किसी धर्म, पंथ का ग्रंथ नहीं है। गीता में भगवान ने सभी मनुष्यों को संबोधित किया है। गीता हमें मानव बनना सिखाती है।”

बता दें कि गीता प्रेस ने चारों वेदों में से कोई भी वेद प्रकाशित नहीं किया है। उन्होंने किसी भी निर्गुण भक्ति कवि की रचनाएं प्रकाशित नहीं की हैं। न ही जैन और बौद्ध साहित्य प्रकाशित किया है।

गीता प्रेस मुस्लिम कर्मचारियों को क्यों नहीं रखता?

जनसत्ता डॉट कॉम ने गीता प्रेस के ट्रस्टी से पूछा कि क्या उनके प्रेस में कोई गैर हिन्दू कर्मचारी नहीं है? कुछ क्षण ठहरकर ईश्वर प्रसाद ने जवाब दिया कि उनके प्रेस में एक भी गैर-हिन्दू कर्मचारी काम नहीं हैं। सिर्फ हिंदू धर्मावलंबी ही काम करते हैं।

अब सवाल उठता है कि गीता प्रेस गैर हिंदू कर्मचारियों को काम पर क्यों नही रखता? इस सवाल के जवाब में ईश्वर प्रसाद कहते हैं, “यह स्वाभाविक है। ऐसे ही शुरू से रहा है।”

अपने जवाब को थोड़ा विस्तार देते हुए प्रसाद कहते हैं, “अब तो जरूरत नहीं पड़ती लेकिन पहले किताबों को बाइंडिंग के लिए बाहर भेजना पड़ता था। बाइंडिंग करने वाले सभी मुस्लिम ही होते थे। ऐसा नहीं है कि मुस्लिमों से परहेज है। लेकिन परिसर में ऐसा कोई कर्मचारी नहीं है।” प्रसाद के मुताबिक ही वर्तमान में गीता प्रेस गोरखपुर में करीब 300 से कर्मचारी काम करते हैं।

राम मंदिर आंदोलन में गीता प्रेस की भूमिका?

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘श्री भाईजी-एक अलौकिक विभूति’ नामक किताब में बताया गया है कि गीता प्रेस की पत्रिका ‘कल्याण’ के संस्थापक संपादक पोद्दार ने राम जन्मभूमि आंदोलन में योगदान दिया था। उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन के पक्ष में लहर पैदा करने के लिए इस्लाम के कुछ कथित विशेषज्ञों को अयोध्या भी भेजा था। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)

पुरस्कार राशि न लेने की वजह?

साल 1995 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर उनके आदर्शों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए गांधी शांति पुरस्कार की स्थापना की गई थी। इस वार्षिक पुरस्कार को पाने वाले को प्रशस्ति पत्र, पट्टिका, आदि के अलावा एक करोड़ रुपए की राशि भी दी जाती है। लेकिन गीता प्रेस ने राशि लेने से इनकार कर दिया।

जनसत्ता डॉट कॉम से बात करते हुए गीता प्रेस के ट्रस्टी ईश्वर प्रसाद ने पुरस्कार राशि न लेने की वजह बताई। प्रसाद ने कहा, “हम लोग अनुदान या सहयोग नहीं लेते हैं। हमारे संस्थापक इस पक्ष में नहीं थे। उनका कहना था कि आप जिससे भी सहयोग लेंगे वह आपके ऊपर अपनी इच्छा थोपने का प्रयास करेगा। उन्होंने आपने कहा था कि आप अच्छा काम करेंगे तो धन की कमी नहीं होगी। हम उन्हीं के सिद्धांतों पर चल रहे हैं और हमें अब तक कभी धन की कमी महसूस नहीं हुई।”