अजमेर की एक विशेष अदालत ने गुरुवार (29 फरवरी, 2024) को 1993 सीरियल बम ब्लास्ट मामले में 80 वर्षीय अब्दुल करीम ‘टुंडा’ को बरी कर दिया। इसी मामले में दो अन्य आरोपियों इरफान (70) और हमीदुद्दीन (44) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
आरोपियों के वकील ने कहा है कि वे इरफान और हमीदुद्दीन को दी गई सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे।
पांच शहरों में सीरियल बम ब्लास्ट
पुलिस कड़ी सुरक्षा के बीच गुरुवार सुबह करीब 11:15 बजे टुंडा, इरफान और हमीदुद्दीन को लेकर टाडा (Terrorist and Disruptive Activities (Prevention) Act) अदालत पहुंची। ये तीनों बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की बरसी पर 6 दिसंबर, 1993 को लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई में ट्रेनों में हुए बम धमाकों के मामले में आरोपी थे ।
1993 में पांच शहरों में ट्रेनों में हुए विस्फोटों में दो लोग की जान गई थी और कई लोग घायल हुए थे। सीबीआई ने सभी मामलों को एक साथ जोड़ दिया था और 1994 में इसे अजमेर की टाडा अदालत में भेज दिया था। सभी आरोपी अजमेर की जेल में हैं।
अब्दुल करीम ‘टुंडा’ को साल 2013 में भारत-नेपाल सीमा के करीब स्थित उत्तराखंड के बनबसा में गिरफ्तार किया गया था। इसके चार साल बाद हरियाणा की एक अदालत ने टुंडा को 1996 विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
टुंडा के वकील ने क्या कहा?
गुरुवार को व्हीलचेयर पर बैठकर अदालत पहुंचे टुंडा के वकील शफ़ीकतुल्ली सुल्तानी ने फैसले के पहले मीडिया से बातचीत में कहा कि सीबीआई ने टुंडे पर आरोप तो लगा दिए लेकिन आज तक चार्जशीट दाखिल नहीं कर पायी।
अदालत का फैसला आ जाने के बाद वकील ने कहा, “मेरे मुवक्किल अब्दुल करीम टुंडा पूर्णतः निर्दोष हैं। माननीय न्यायालय ने आज उन्हें सभी धाराओं, सभी सेक्शन और सभी एक्ट से बरी करने का फैसला सुनाया है। सीबीआई अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ टाडा एक्ट, आईपीसी, रेलवे एक्ट, आर्म्स एक्ट, विस्फोटक अधिनियम मामले में कोई सबूत पेश नहीं कर सकी। शुरू से हमारा कहना था कि अब्दुल करीम टुंडा निर्दोष हैं, ये आज न्यायालय में फिर साबित हुआ है।”
टुंडा का परिचय
अब्दुल करीम ‘टुंडा’ का जन्म तो दिल्ली (पुरानी दिल्ली के दरियागंज) में हुआ था लेकिन बचपन उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुवा में बीता। एनडीटीवी की 10 साल पुरानी ग्राउंड रिपोर्ट में गांव वालों के हवाले से बताया गया है कि टुंडा बढ़ई का काम करता था। टुंडा ने तीन शादियां की है और कुल छह बच्चे हैं।
1980 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन के समय टुंडा के जीवन में बदलाव आया। विश्व हिंदू परिषद (VHP) और भाजपा के नेताओं ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग तेज की। दावा किया गया था कि जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद है, वहीं राम का जन्म हुआ था।
हिंदुओं का समर्थन जुटाने के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली। यात्रा के बीच में आने वाले कुछ कुछ कस्बों और शहरों में सांप्रदायिक दंगे हुए।
माना जाता है कि इन घटनाओं के कारण टुंडा के विश्वदृष्टिकोण में बदलाव आया। कथित तौर पर मुसलमानों की दुकानों और एक मस्जिद को निशाना बनाने वाली भीड़ ने अब्दुल करीम टुंडा के रिश्तेदारों जिंदा जला दिया था। टुंडा ने दावा किया कि पुलिस मुसलमानों पर हमला करने वाली भीड़ में शामिल थी।
6 दिसंबर, 1992 को भाजपा, संघ और अन्य हिंदुत्ववादी नेताओं की मौजूदगी में बाबरी मस्जिद को भीड़ ने ढाह दिया। इसके एक साल बाद पांच शहरों में बम धमाके हुए। बम ब्लास्ट में नाम आने के बाद टुंडा लापता हो गया। टुंडा पर उन बमों को बनाने का आरोप लगा, जो ब्लास्ट किए गए।
जेल और मुसलमान
कई साल भागने और 10 साल जेल में बिताने के बाद ‘टुंडा’ पर लगे आरोप तो खारिज हो गए। लेकिन इस दौरान उनकी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बेकार हो गया। भारतीय जेल विचाराधीन कैदियों से भरे हुए हैं। बिना अपराध साबित हुए सालों-साल कैद झेलने वाले कैदियों को विचाराधीन कैदी कहते हैं।
NCRB के ‘प्रिजनर्स स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2022’ के डेटा के मुताबिक, भारतीय जेलों में बंद 75.8% कैदी विचाराधीन हैं। विचाराधीन कैदियों में मुसलमानों की बड़ी संख्या है। वह अपनी आबादी के अनुपात में जेल में अधिक हैं। देश में मुसलमानों की हिस्सेदारी 14.2% है, लेकिन विचाराधीन कैदियों के रूप में जेल में उनकी हिस्सेदारी 19.3% है। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)