विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar)  को जून 1911 में कालापानी की सजा हुई थी। वह 9 साल 10 महीने अंडमान के सेल्युलर जेल में रहे थे। इसके बाद महाराष्ट्र की अलग-अलग जेलों में रहे। रत्नागिरी की जेल में ही रहते हुए उन्होंने ‘हिंदुत्व – हू इज़ हिंदू?‘ नामक किताब लिख हिंदुत्व को एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर परिभाषित किया।

अंग्रेजों ने साल 1924 में सावरकर को पुणे की यरवदा जेल से दो शर्तों के साथ छोड़ा। पहला- वह राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेंगे। दूसरा-  रत्नागिरी से बाहर नहीं जाएंगे। अगर जरूरी हुआ तो जिला कलेक्टर की अनुमति लेंगे।

जेल से छूटने के बाद सावरकर (Savarkar) तेरह वर्ष (1924-1937) तक रत्नागिरी में रहे। रत्नागिरी सावरकर के सामाजिक अनुसंधानों की प्रयोगशाला बनी। मई 1937 में रत्नागिरी प्रवास की लंबी अवधि समाप्त होने पर उन्होंने उस जगह को भावभीनी श्रद्धांजलि दी थी।

रत्नागिरी से सावरकर को मिली 501 रु की भेंट

सावरकर की जीवनी ‘सावरकर-एक विवादित विरासत‘ में विक्रम सम्पत लिखते हैं, “18 जून 1937 को सावरकर ने एक संबोधन में रत्नागिरी और उसके लोगों का धन्यवाद दिया। इस अवसर पर रत्नागिरी के प्रतिष्ठित नागरिकों मोरोपंत जोशी (बलवंत के संपादक), वीजे शेट्ये (साहित्यकार और कानूनी विशेषज्ञ), एएस गुरुजी, देवरुखकर एवं राव बहादुर पारुलेकर ने भी भाषण दिए थे। समारोह में रत्नागिरी के नागरिकों की ओर से, सौहार्द्र एवं स्नेह स्वरूप सावरकर को एक प्रशस्ति पत्र तथा 501 रुपये भी भेंट किए गए।”

कांग्रेस को लेकर सावरकर ने क्या कहा?

कालापानी की सजा और अन्य जेलों में लंबी अवधि गुजारने के बाद जब सावरकर विभिन्न बाध्यताओं से मुक्त हो रहे थे, तब उनके सामने कई विकल्प थे। सम्पत लिखते हैं, “सावरकर जानते थे कि राजनीति में शामिल होने की बाध्यता समाप्त होने पर कांग्रेस सहित, तत्कालीन बड़े राजनीतिक दल उन्हें साथ जुड़ने का निवेदन करेंगे।

अतः अपने संबोधन में उन्होंने स्पष्ट किया: मैंने हमेशा जो कहा और किया, वह अलोकप्रिय रहा है। आज अस्पृश्यता उन्मूलन पर जब मैं आवाज उठाता हूं तो उस समय वैसा ही विरोध दिखता है जैसा युवावस्था के दौरान स्वतंत्रता की बात करने पर दिखता था। परंतु मैंने हमेशा वही किया जो ठीक समझा। आगे मैं जो कुछ भी करूंगा, राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर करूंगा। मैं जिस भी दल के साथ रहूं, कभी हिन्दू विषय को नहीं तजूंगा। मैं हिन्दुओं का मित्र ही नहीं, उनका पुत्र भी हूं। अतः मैं तब तक कांग्रेस से नहीं जुडूंगा जब तक वह मौजूदा विकृत मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से जुड़ी है।”