स्वतंत्रता सेनानी और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित को उनके जन्म के वक्त स्वरूप नेहरू नाम दिया गया था। वह अपने जमाने के एक शक्तिशाली, मिलनसार और बेहद अमीर वकील वह मोतीलाल नेहरू की दूसरी संतान थीं। वह अपने बड़े भाई जवाहरलाल के सबसे करीब थीं।

घर में उन्हें प्यार से ‘नान’ कहा जाता था। उनकी स्कूली शिक्षा प्राइवेट टीचर के माध्यम से हुई। उन्होंने इंटरमीडिएट तक की ही पढ़ाई की थी। लेकिन शिक्षा के प्रति उनके प्यार और आनंद भवन की शानदार लाइब्रेरी ने उन्हें बौद्धिक रूप संपन्न बनाया।

विजयलक्ष्मी पंडित के जीवन में कई पल बेहद यादगार रहे। ऐसे कुछ पलों का जिक्र मनु बाघवन ने पेंगुइन इंडिया से प्रकाशित विजयलक्ष्मी पंडित की जीवनी में की है। बाघवन के मुताबिक, “जब विजयलक्ष्मी पंडित बच्ची ही थीं, तो उन्हें और उनके परिवार के बाकी सदस्यों को किंग जॉर्ज और क्वीन मैरी ने विशेष सम्मान दिया था। बाद में जब वह पहली बार यूरोप का दौरा कर रही थी, तो मुसोलिनी की हत्या के प्रयास के आरोप में पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया था।”

बेनिटो मुसोलिनी इटली का फासिस्ट तानाशाह था। मुसोलिनी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान खूब चर्चित हुआ था। मुसोलिनी की तानाशाही से तंग आकर मौका पाते ही उसके देश के लोगों ने ही उसे गोली मार (28 अप्रैल, 1945) दी थी। लोग उससे इतना नफरत करने लगे थे कि मारने के बाद उसकी लाश को उल्टा लटका दिया था।

अमेरिका के टैक्सी ड्राइवर भी करने लगे थे पंडित की प्रशंसा

विजयालक्ष्मी पंडित का दशकों से अधिक का शानदार करियर था। वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष (1953) बनने वाली विश्व की पहली महिला थीं। उन्होंने UN की प्रमुख संस्थापक सदस्य के रूप में कार्य किया। बाद में कोरियाई युद्ध को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाघवन के मुताबिक, “वह इतनी प्रिय और प्रसिद्ध हो गई थीं कि अमेरिका में टैक्सी ड्राइवर जैसे सामान्य लोग उनकी प्रशंसा करने लगे थे। यहां तक कि उनकी तारीफ खडूस विंस्टन चर्चिल ने भी की थी।”

उन्होंने परमाणु आपदा को रोकने के लिए बर्ट्रेंड रसेल और रॉबर्ट ओपेनहाइमर जैसे लोगों के साथ काम किया। अपने अंतरराष्ट्रीय करियर के अंत में उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी से डलास न जाने के लिए कहा। उन्होंने भारत में 1975 के आपातकाल को समाप्त करने और लोकतंत्र को बहाल करने के लिए अपनी भतीजी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विरोध किया था, उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और उन्हें हराने में मदद की थी।”

कई महत्वपूर्ण पदों पर किया काम

विजयलक्ष्मी पंडित भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री थीं। उन्हें अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया था, जहां उन्होंने अपने एजेंडे को अधिक जन-उन्मुख बनाने की कोशिश की। पंडित को भारत की संविधान सभा का सदस्य चुना गया था। वह संयुक्त राष्ट्र और मॉस्को में भारत की पहली राजदूत थीं। वह अमेरिका में भारत की पहली महिला राजदूत थीं। उन्हें मैक्सिको, आयरलैंड और स्पेन में भी नियुक्त किया गया। वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष, भारतीय संसद की सदस्य, यूनाइटेड किंगडम की उच्चायुक्त, महाराष्ट्र की राज्यपाल और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की प्रतिनिधि भी बनीं।

अपने पूरे करियर के दौरान उन्होंने लिंग भेद का विरोध किया और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में पुरुषों और महिलाओं दोनों को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा था, “यह न केवल नारीत्व का पहलू है जो आज हमें चिंतित करता है, बल्कि पुरुषत्व का भी है। दोनों अलग-अलग नहीं हैं जैसा कि कुछ लोग हमें विश्वास दिलाएंगे और हम उन्हें अलग-अलग हिस्सों में नहीं रख सकते और उनके साथ अलग-अलग व्यवहार नहीं कर सकते।”

संविधान सभा में सिर्फ एक बार दिया भाषण

ब्रिटिश काल में पहली महिला कैबिनेट मंत्री विजयालक्ष्मी, संविधान बनाने के लिए भारतीय संविधान सभा का आह्वान करने वाले पहले नेताओं में से एक थीं। हालांकि उन्होंने संविधान सभा को सिर्फ एक बार 20 जनवरी, 1947 को संबोधित किया था। अपने भाषण में उन्होंने अन्य देशों के प्रति स्वतंत्र भारत की जिम्मेदारियों पर जोर दिया था। विजयलक्ष्मी पंडित ने कहा था, “एक स्वतंत्र भारत निस्संदेह न केवल एशिया का बल्कि विश्व का नेतृत्व करेगा, इसलिए जब हम यहां इस सभा में अपने देश के भावी संविधान को तैयार करने के लिए मिल रहे हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा कर्तव्य उस दुनिया के प्रति भी है, जो हमारी ओर देख रही है।”