आरएसएस और जनसंघ की पृष्ठभूमि से देश के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान नेहरूवादी कहा जाने लगा था। यह दावा वाजपेयी की जिंदगी पर लिखी एक नई किताब में किया गया है। लेखक अभिषेक चौधरी ने अपनी किताब ‘वाजपेयी – द एसेंट ऑफ द हिंदू राइट 1924-1977’ में बताया है चीन-भारत युद्ध के मद्देनजर विपक्ष नेहरू से इस्तीफा मांग रहा था। लेकिन वाजपेयी इसके खिलाफ थे। इस बात से कृपलानी इतने नाखुश थे कि उन्होंने चिढ़ कर वाजपेयी को जनसंघी वेश में नेहरूवादी घोषित कर दिया था।

7 नवंबर, 1962 को गैर-कम्युनिस्ट विपक्षी दलों द्वारा आयोजित एक रैली में कृपलानी ने स्वतंत्र पार्टी की नेता मीनू मसानी को चेतावनी दी थी, “उस आदमी पर भरोसा मत करो, वह एक नेहरूवादी है। वह हम में से एक नहीं।”

पूर्वाग्रह से पैदा हुई थी कृपलानी की टिप्पणी

हालांक‍ि, लेखक ने यह भी ल‍िखा है कि कृपलानी की यह ट‍िप्‍पणी पूर्वाग्रह से प्रेर‍ित थी, क्‍योंक‍ि इस सवाल पर अन्‍य व‍िपक्षी नेताओं से वाजपेयी के मतभेद का आधार इस मुद्दे तक ही सीम‍ित था। यह मतभेद नेहरू के गुण-दोषों के व‍िश्‍लेषण के आधार पर नहीं था। वाजपेयी महसूस कर रहे थे कि जो सरकार छह माह पहले ही दो-तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में लौटी हो उसे युद्ध के बीच में इस्तीफा देने के लिए कहना बेकार और अव्यावहारिक है।


किताब में “बेवॉल्ड नेमेसिस: द नेहरू इयर्स” शीर्षक से एक अध्याय है, जिसमें युवा वाजपेयी द्वारा की गई नेहरू की प्रशंसा के साक्ष्य मिलते हैं।

जब वाजपेयी पहली बार भारतीय जनसंघ (BJS) के उम्मीदवार के रूप में चुनकर संसद पहुंचे थे, तब नेहरू की उम्र 68 वर्ष थी। 32 साल का युवा सांसद होने के बावजूद वह नेहरू की नजरों में आ गए थे। वाजपेयी को लेकर उनका मानना था कि वह एक गैर प्रगत‍िशील पार्टी के तेजस्‍वी और पसंद करने लायक युवा हैं।

वाजपेयी के भाषण पर नेहरू ने ली चुटकी

पहले कई लोग यह दावा कर चुके हैं कि नेहरू ने वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी नहीं की थी। हालांकि चौधरी अपनी किताब में इस बात को खारिज करते हैं। वह बताते हैं कि वाजपेयी 1957 में बलरामपुर सीट (अब रद्द कर दी गई) से जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे थे। उस वर्ष 15 मई को अपने पहले लोकसभा भाषण में वाजपेयी ने नेहरू की कई मुद्दों पर आलोचना की थी, जिसमें उनकी कश्मीर नीति भी शामिल थी। किताब में वाजपेयी के हवाले से बताया गया है कि वह अपने भाषण में नेहरू की आलोचना करते रहे और प्रधानमंत्री चुपचाप सुनते रहे।

अगले दिन नेहरू ने वाजपेयी का नाम लिए बिना जवाब दिया, जो उनके लिए चुभने वाला था। नेहरू ने कहा ‘हमारी विपक्षी पार्टी के नए नेताजी’ केवल तुच्छ बातों पर मंथन करने में अच्छे हैं। नेहरू ने चुटकी लेते हुए कहा, “उनके हथियार मुझे जरा बाजारू मालूम हुए… चुनाव अभी भी उनके दिमाग पर भारी है, ऐसा लगता है कि वह लोकसभा को भी एक चुनावी सभा समझते हैं।”

जब नाइटक्लब गए वाजपेयी

किताब में बताया गया है कि साल 1960 में पीएम नेहरू ने वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र महासभा सेशन के लिए भेजे जाने वाले भारतीय प्रतिनिधियों की सूची में शामिल किया था। वह वाजपेयी की पहली विदेश यात्रा थी। न्यूयॉर्क में अपने प्रवास के दौरान, वाजपेयी ज्यादातर संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में तैनात फॉरेन सर्विस ऑफिसर एमके रसगोत्रा (M K Rasgotra) के साथ थे। रसगोत्रा ने लेखक को बताया कि लगता है कि वाजपेयी के मन में ‘पंडितजी के लिए बहुत सम्मान’ था और दोनों के बीच अनजाने में एक रिश्ता बन रहा था।

जब वाजपेयी और रसगोत्रा मिले थे, तो दोनों अपनी तीस के उम्र के शुरुआती दशक में थे। दोनों एक दूसरे से बातें शेयर करते थे। यात्रा के दौरान युवा राजनयिक रासगोत्रा अपने युवा सांसद वापजेयी को म्यूजियम और आर्ट गैलरी दिखाने ले गए। लेकिन वाजपेयी को बहुत मजा नहीं आया।

इसके बाद रसगोत्रा वाजपेयी को नाइट क्लब लेकर गए। वाजपेयी को यह पता नहीं था कि नाइट क्लब क्या होता है। रसगोत्रा ने उन्हें आश्वासन दिया कि यह कोई स्ट्रिप क्लब नहीं है, “वहां नग्न नृत्य नहीं होता है।” वाजपेयी को बताया कि वहां आपको यह देखने को मिलेगा कि मॉडर्न म्यूजिक क्या आकार ले रहा है। जैज़, इंस्ट्रूमेंटल और लोकल म्यूजिक सुनने को मिलेगा। यह सब जान कर वाजपेयी रोमांच‍ित हो गए थे और बोले थे, ‘चलिए, ये भी एक नई दुनिया है।’