बहुजन समाज पार्टी की स्थापना करने वाले कांशीराम की राजनीति में साइकिल की अहम भूमिका थी। उन्होंने अपना राजनीतिक आधार साइकिल से घूम-घूमकर ही तैयार किया था। उन्हें अपनी साइकिल बहुत प्रिय थी। एक बार जब उनकी साइकिल चोरी हो गई थी, तो वह रोने लगे थे। बकौल कांशीराम उन्हें लगा था कि उनकी जिंदगी खो गई।
ये किस्सा तब का है, जब कांशीराम पूना में रहते थे। प्रोफेसर बद्री नारायण अपनी किताब ‘कांशीराम-बहुजनों के नायक‘ में कांशीराम के घनिष्ठ मित्र और सहयोगी मनोहर आटे हवाले से साइकिल चोरी का किस्सा लिखा है।
चाय पर चर्चा और साइकिल की चोरी
पुणे में महाराष्ट्र सरकार के मुख्यालय के सामने स्थित पार्क में डॉ. आंबेडकर की एक प्रतिमा है। तब आंबेडकरवादी आंदोलन के बहुत सारे कार्यकर्ता शाम को पार्क में इकट्ठा होते हैं। प्रतिमा के सामने एक छोटा ईरानी होटल है, जहां की चाय बहुत लोकप्रिय है। कार्यकर्ता चाय पीते हुए बहस करते थे। कांशीराम और मनोहर आटे भी पार्क में अक्सर आया करते थे और बहुत देर तक चाय पीते हुए बहस करते थे।
आटे बताते हैं, “एक रोज, रात को 11 बजे थे और हम लोग बात कर रहे थे। ईरानी होटल का मालिक होटल बंद करने जा रहा था, इसलिए हम लोग बामसेफ के ऑफिस की ओर बढ़े। हमने होटल के सामने अपनी साइकिलें खड़ी कीं और मैंने स्वयं कांशीराम की साइकिल को लॉक किया था। जब हम वापस पहुंचे तो देखा कि कांशीराम की साइकिल गायब थी। साइकिल गायब है ये देख, कांशीराम बहुत परेशान हो गए थे। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। उत्तेजना में वे साइकिल को इधर-उधर खोजने लगे। यहाँ तक कि उन्होंने साइकिल की ठीक से देखभाल न करने के लिए मुझे डांटा भी। मैंने उनसे कहा कि मैंने स्वयं साइकिल का ताला बंद किया था और उन्हें चाभी भी दिखाई। हमें ईरानी होटल के वेटर पर संदेह हुआ। होटल के मालिक ने भी तर्क करना शुरू कर दिया और एक तीखी बहस शुरू हो गई। काफी देर की बहस के बाद साइकिल मिल गई।”
किसने चुराई थी साइकिल?
आटे के मुताबिक, साइकिल होटल के वेटर ने ही चुराई थी। पुलिस बुलाने की धमकी देने के बाद उसने साइकिल वापस की। साइकिल पाकर कांशीराम की आँख एक बार फिर आँसुओं से भर आई, लेकिन इस बार ये खुशी के आँसू थे। हालांकि इसके बाद भी कांशीराम का गुस्सा शांत नहीं हुआ। उन्होंने वेटर को पीटा और उसे पुलिस स्टेशन ले गए। रिपोर्ट दर्ज होने के बाद वेटर को गिरफ्तार कर लिया गया।
‘मेरी जिंदगी खो गई…’
पुलिस स्टेशन से वापस लौटते वक्त आटे ने कांशीराम से पूछा कि एक साइकिल के खोने पर वे इतना नाराज क्यों हुए। कांशीराम ने जवाब दिया, “मेरे लिए यह साइकिल केवल एक लोहे का वाहन नहीं है, मेरे आन्दोलन को गति देने वाला यह सबसे महत्त्वपूर्ण उपकरण है। मैंने इसकी सवारी करते हुए बहुजन समाज के मिशन को फैलाया है। इसी कारण मैं इसके खो जाने से इतना परेशान था। जब साइकिल गायब हुई थी, तो मुझे लगा कि जैसे मेरी जिन्दगी खो गई ।”