Char Dham Yatra: उत्तराखंड में सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, चार धामों की पावन पवित्र तीर्थ यात्रा इस साल भी 30 अप्रैल अक्षय तृतीया से शुरू होगी। अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट खुलेंगे इसके बाद दो मई को केदारनाथ धाम और चार मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे और इसी के साथ उत्तराखंड की चार धाम यात्रा का आगाज हो जाएगा। हेमकुंड साहिब के कपाट 25 मई को खुलेंगे।
उत्तराखंड की चार धाम यात्रा का सही क्रम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ माना जाता है। उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसी के साथ ही यह यात्रा देश की सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए हैं और राष्ट्रीय एकता और अखंडता की प्रतीक है।
सनातन धर्म में अक्षय तृतीया को युगादि पर्व कहा जाता है। इस दिन जप, तप, दान और पूजा का अक्षय पुण्यफल मिलता है। इस साल अक्षय तृतीया की पावन तिथि 30 अप्रैल बुधवार को है। तृतीया तिथि का आगमन 29 अप्रैल की सायं काल 5:29 पर होगा, जो 30 अप्रैल की दोपहर 2:12 तक विद्यमान रहेगी।
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अबूझ मुहूर्त है अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया से चारधाम यात्रा शुरू करने के पीछे कई तर्क दिए गए हैं। अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना जाता है, यानि इस दिन शुभ समय देखने की आवश्यकता नहीं होती और यह तिथि अक्षय है यानी इसका क्षय नहीं है और ना ही अतिथि अकाट्य है। मान्यता है कि इसी दिन गंगा स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी लोक पर अवतरित हुई थी इसलिए भी चारधाम यात्रा को इस दिन से शुरू करना शुभ माना जाता है और उत्तराखंड के चार धामों को गंगा का मायका माना गया है, गंगा का उद्गम स्थल गोमुख गंगोत्री हैं। इसीलिए गंगा के मायके में स्थित चार धामों की यात्रा अक्षय तृतीया से शुरू होने का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।
अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्री परशुराम का अवतरण दिवस है और भगवान श्री परशुराम हमारा अजर अमर हैं। पौराणिक मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन सृष्टि की शुरुआत हुई थी और सतयुग का प्रारंभ हुआ था और अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग के काल का समापन होकर त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी। अक्षय तृतीया की तिथि के दिन किया गया यह या कोई भी पुण्य कार्य अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्रान और तीर्थ में दान करना बहुत ही पवित्र और फलदायी माना जाता है।
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शुभ माना जाता है मांगलिक कार्य करना
अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन कोई भी नवीन या मांगलिक कार्य करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। अक्षय तृतीया का दिन इतना शुभ एवं पवित्र माना जाता है कि इस दिन जो भी कार्य आरंभ किया जाए तो उसमें सफलता मिलना निश्चित है। अक्षय तृतीया के दिन गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने की कथा अत्यंत विशिष्ट है। ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि का निर्माण किया तो उन्होंने अपने कमंडल से गंगा के जल से भगवान श्री हरि विष्णु के चरण कमल धोए, भगवान विष्णु के श्री चरणों से होती हुई गंगा जी कैलाश पर्वत पर साधना लीन शिव की जटाओं में समाहित हो गई और गंगा ने स्वयं को शिव की जटाओं से पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान शिव की आराधना की।
दरअसल, ब्रह्मा जी के कमंडल से होती हुई शिव के चरणों को स्पर्श करती हुई जब गंगा जी पृथ्वी लोक पर आ रही थी तो उनका वेग इतना अधिक था कि पृथ्वी के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया तो पृथ्वी का अस्तित्व बचाने के लिए गंगा जी भगवान शिव की शरण में गई और भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण करके उनके वेग को कम किया और भगवान शिव ने अपनी जटाओं के केवल एक भाग को खोला, जिससे गंगा जी पृथ्वी पर पदार्पण कर सकी। जिस दिन गंगा जी ने शिव की जटाओं से पृथ्वी पर पदार्पण किया और नदी के रूप में प्रवाहित हुई, उस दिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि थी और उस दिन गंगा का जन्मदिन मनाया जाने लगा।
इस तरह गंगा की पृथ्वी पर यात्रा की शुरूआत वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि यानी अक्षय तृतीया से हुई। और गंगा सप्तमी के दिन पूर्ण हुई है।
इसलिए माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन किसी भी कार्य का शुभारंभ किया जाए तो वह अवश्य पूर्ण होता है। इसका सबसे उत्तम उदाहरण गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने की गाथा है। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन स्वर्ण की खरीदारी करने से भगवान श्री हरि विष्णु की अर्धांगिनी लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को संपन्नता तथा वैभव प्रदान करती है। इसलिए व्यापारी लोग अक्षय तृतीया के दिन सोने की खरीददारी करते हैं।
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हरि विष्णु की साधना स्थली है बद्रीनाथ धाम
उत्तराखंड देवभूमि जहां गंगा जी और उनकी बहन यमुनाजी मायका माना जाता है। वही उत्तराखंड में सृष्टि के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु की साधना स्थली बद्रीनाथ धाम स्थित है और देवों के देव महादेव की तपस्थली केदारनाथ धाम स्थित है। इसीलिए भगवान विष्णु और महादेव के धाम होने के कारण गंगा का उत्तराखंड से विशेष लगाव है क्योंकि गंगा का उद्गम स्थल गोमुख गंगोत्री है।इसलिए उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा का शुभारंभ अक्षय तृतीया से होता है।
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