मोदी सरकार 30 सितंबर तक डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम के अंतिम नियमों को अधिसूचित करने की तैयारी कर रही है। इस कानून को लागू करने के लिए सरकार को स्टेकहोल्डर्स और नागरिकों से पहले ही 6,915 प्रतिक्रियाएं मिल चुकी हैं, जो जनता की गहरी भागीदारी को दर्शाता है। डीपीडीपी 30 सितंबर को कानून बनने के लिए राष्ट्रपति के पास जाएगा।

आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने क्या कहा?

आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पहले 28 सितंबर की समयसीमा तय की थी। साथ ही बताया था कि कानून के तहत नियमों को अंतिम रूप दे दिया गया है और सितंबर के अंत से पहले उन्हें सार्वजनिक कर दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा था कि मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया सोच-समझकर की गई थी, जिसमें उद्योग समूहों, नागरिक समाज और प्रेस के उन वर्गों के साथ विस्तृत परामर्श शामिल था जिन्होंने अपनी चिंताएं व्यक्त की थीं। उन्होंने कहा कि इन मुद्दों के समाधान के बाद ही सरकार ने आगे बढ़ने का फैसला किया।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव एस. कृष्णन ने भी हाल ही में कहा था कि अंतिम पाठ प्रकाशन के लिए तैयार है, जिससे लंबी बहस और ड्राफ्ट तैयार करने की अवधि समाप्त हो गई। उन्होंने कहा कि मंत्रालय से प्राप्त पूर्व संकेतों के अनुरूप कार्यान्वयन चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ेगा।

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क्या है DPDP एक्ट?

डीपीडीपी कानून की शुरुआत 2018 में हुई थी। इसे पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल के रूप में जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाली समिति ने पेश किया था। हालांकि इसके बाद इसमें कई संशोधन हुए और 3 अगस्त 2023 को संसद में इसे फिर से पेश किया गया और 12 अगस्त को राष्ट्रपति से मंजूरी मिली थी। हालांकि नियम अधिसूचित नहीं होने की वजह से इसे अब तक लागू नहीं किया जा सकता था। सरकार ने साफ कर दिया था पहले नियम जारी किए जाएंगे और फिर पूछे जाने वाले सवालों की विस्तृत गाइडलाइन प्रकाशित की जाएगी। ताकि प्राइवेसी कानून को समझने और पालन करने में कंपनियों को आसानी हो।

2023 में पारित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के संग्रह और प्रसंस्करण के लिए नियम निर्धारित करता है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों और वैध डेटा उपयोग की आवश्यकता के बीच संतुलन स्थापित करना है। इस कानून का उद्देश्य एक अधिक सुरक्षित और जवाबदेह डिजिटल वातावरण को बढ़ावा देना है। सरकार ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि जागरूकता और क्षमता निर्माण इसके कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण होंगे।

मीडिया जगत चिंतित?

सूत्रों के अनुसार सरकार द्वारा संशोधन या विस्तृत दिशानिर्देश पेश करने की संभावना नहीं है और इसके बजाय वह अधिनियम से संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों (FAQ) का एक सेट जारी कर सकती है। इसके कारण मीडिया समूहों चिंतित है, जिनका कहना है कि उनकी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है। सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक धारा 7 है, जिसके तहत किसी व्यक्ति की जानकारी इकट्ठा करने या प्रकाशित करने से पहले उसकी सहमति आवश्यक है।

एक सुरक्षा उपाय के रूप में, पत्रकार संगठनों का तर्क है कि यह खोजी रिपोर्टिंग को कमजोर कर सकता है। इसके अलावा डेटा संरक्षण बोर्ड को सूचना के प्रकटीकरण की मांग करने का अधिकार देने वाले प्रावधानों से यह आशंका बढ़ जाती है कि पत्रकारों को गोपनीय स्रोतों का खुलासा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। मीडिया समूह यह भी चेतावनी देते हैं कि यह कानून सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम को कमजोर कर सकता है, जिससे महत्वपूर्ण डेटा तक जनता की पहुंच सीमित हो सकती है। अधिनियम के तहत भारी जुर्माना (जो 200 करोड़ रुपये तक है) बेचैनी को बढ़ाता है।