4B Movement America: अमेरिकी चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के पुरुष समर्थक अभी जश्न ही मना रहे थे कि उनके सामने एक बड़ी मुसीबत आ गई है। यह मुसीबत 4B Movement के नाम से सामने आई है। अमेरिका में सोशल मीडिया पर 4B Movement रफ्तार पकड़ रहा है। क्या है यह 4B Movement और क्यों इसे लेकर अमेरिका के भीतर और बाहर जबरदस्त चर्चा हो रही है।

याद दिलाना होगा कि ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस को हराया है और वह अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति चुने गए हैं। राष्ट्रपति के तौर पर उनका यह दूसरा कार्यकाल होगा।

4B Movement से साफ दिखाई देता है कि अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत अमेरिका की लाखों महिलाओं को पसंद नहीं आई है और वे ट्रंप की जीत के लिए वहां के पुरुषों को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। इसी वजह से वे 4B Movement में शामिल हुई हैं। 4B Movement के तहत उन्होंने ट्रंप की जीत के विरोध में पुरुषों से बदला लेने के लिए सेक्स न करने, रिश्ते ना बनाने, शादी न करने और बच्चे ना पैदा करने की कसम खाई है।

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बताना होगा कि ट्रंप ने कई महिला विरोधी टिप्पणियां की हैं और अमेरिका में वोटिंग ट्रेंड से पता चलता है कि बड़ी संख्या में महिलाओं ने ट्रंप को वोट नहीं दिया है।

दक्षिण कोरिया में शुरू हुआ था आंदोलन

4B Movement नाम का यह आंदोलन कुछ साल पहले दक्षिण कोरिया में शुरू हुआ था और अब अमेरिका में आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है 4B का मतलब कोरिया भाषा में बिहोन, बिचुलसन, बियियोने और बिसकेसु है, क्रमशः इनका मतलब दूसरे जेंडर के साथ विवाह, बच्चे पैदा करना, पुरुषों के साथ डेटिंग और सेक्स करने से इनकार करना है।

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वीडियो पोस्ट कर रही हैं महिलाएं

अमेरिका में गूगल पर 4B Movement से जुड़ी चीजों को लगातार सर्च किया जा रहा है और इसे लेकर हैशटैग भी चलाए जा रहे हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं टिक टॉक और X पर इसे लेकर अपनी बात लोगों के सामने रख रही हैं। ऐसी सभी महिलाएं 2024 में अमेरिकी चुनाव के नतीजों से दुखी हैं और इस दुख को सोशल मीडिया पर जाहिर कर रही हैं। यह सबसे ज्यादा ट्रेंड करने वाले विषयों में से एक बन गया है। कई अमेरिकी महिलाओं ने सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो पोस्ट किए हैं जिनमें उन्हें ट्रंप की जीत पर आंसू बहाते हुए देखा जा सकता है।

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क्या कहता है 4B Movement?

4B Movement एक ऐसा विचार है जिसमें महिलाएं मानती हैं कि दूसरे जेंडर से रिलेशन बनाना ही महिलाओं के उत्पीड़न की वजह है और अगर महिलाएं वास्तव में आजाद और खुश रहना चाहती हैं तो उन्हें ऐसे रिश्तों से बाहर निकलने की जरूरत है।

अगर आप इसे आसान भाषा में समझें तो यह आंदोलन कहता है कि महिलाएं खुद को पत्नी और मां की भूमिका से ऊपर रखकर सोचें और वह अपने आराम, शौक, टारगेट और खुशी पर ध्यान केंद्रित रखें और दूसरी महिलाओं के साथ एकजुट होकर रहें। ‌‌

अगर इसे भारत के संदर्भ में देखा जाए तो यहां होने वाली शादियों में आमतौर पर दहेज दिया जाता है। भारत में घर चलाने और बच्चों की परवरिश का काम महिलाओं पर ही होता है। महिलाओं को घर के अलावा अपना दफ्तर भी संभालना होता है। उन्हें यह सब करना पड़ता है जबकि मर्दों से पैसे कमाने के अलावा बहुत ज्यादा अपेक्षाएं नहीं रखी जाती।

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क्यों शुरू हुआ था 4B Movement?

दक्षिण कोरिया में 4B Movement 2016 में शुरू हुआ था और इसके शुरू होने के पीछे वजह यह थी कि एक लड़की की हत्या कर दी गई थी। हत्या करने वाले का कहना था कि उसे महिलाओं द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा था। यह वह वक्त था जब कई महिलाओं ने कहा था कि पुरुषों द्वारा उनकी जासूसी की जा रही थी और पुलिस भी उनका साथ नहीं देती थी। इसके बाद मी टू आंदोलन शुरू हुआ और इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं सामने आई और उन्होंने अपने साथ हुए उत्पीड़न की बातों को दुनिया के सामने रखा।

झेलना पड़ा था विरोध

दक्षिण कोरिया में 4B Movement का काफी विरोध भी हुआ था और इसकी आलोचना की गई थी। 2021 में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यूं सुक येओल ने कहा था कि इस तरह के आंदोलन की वजह से उनके देश में महिलाओं और पुरुषों के बीच रिश्ते खराब हो रहे हैं।

क्या 4B कोई नया आइडिया है?

दक्षिण कोरिया और अमेरिका में 4B Movement के आने से पहले अमेरिका में ही सोशल मीडिया पर ‘बॉयसोबर’ नाम का एक ट्रेंड चलन में आया था, जिसमें महिलाएं अपनी खुशी, बेहतरी और सेफ्टी के लिए पुरुषों के साथ रोमांटिक होने और सेक्स रिलेशन से दूर रहती थीं।

4B Movement जैसे विचारों को दुनिया के सामने रखने वाला सबसे प्रसिद्ध रिसर्च पेपर ‘लव योर एनिमी’ है। इसे 1979 में शीला जेफरीस और कुछ और लोगों ने लिखा था। इस रिसर्च पेपर में कहा गया था कि महिलाओं को दूसरे जेंडर वाले रिश्तों से दूर रहना चाहिए और कोई भी महिला जो विषमलैंगिक जोड़े में शामिल होती है, वह पुरुष वर्चस्व की नींव को मजबूत बनाने में मदद करती है।

इसकी आलोचना करने वालों का कहना है कि सिर्फ पुरुषों से रिश्ते खत्म कर देना ही कोई समाधान नहीं है। इसके बजाय महिलाओं को पुरुषों से बदलाव करने और उनकी जवाबदेही तय करनी चाहिए। पुरुषों में जिम्मेदारी की भावना बढ़ाकर ही बदलाव लाया जा सकता है।