जानी-मानी भारतीय अमेरिकी लेखिका झुम्पा लाहिड़ी ने न्यूयॉर्क में स्थित नोगुची म्यूजियम से अवार्ड लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने ऐसा इस वजह से किया क्योंकि नोगुची म्यूजियम ने तीन कर्मचारियों को केफियेह हेडस्कार्फ पहनने की वजह से निकाल दिया था।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया था कि इस साल अगस्त में नोगुची म्यूजियम ने कर्मचारियों के लिए इस तरह के कपड़े या एक्सेसरीज पहनने पर रोक लगा दी थी जिन पर किसी भी तरह के राजनीतिक संदेश, नारे या चिन्ह होते हैं।

इस आर्टिकल में हम यह जानेंगे कि यह केफियेह हेडस्कार्फ क्या है और यह फिलिस्तीन के आंदोलन से किस तरह जुड़ा हुआ है।

यह एक बेडुइन हेडस्कार्फ है। 7वीं सदी में लिवैंट क्षेत्र (अब इराक) में यह सबसे पहले प्रचलन में आया था और समय बदलने के साथ इसमें कई बदलाव आए। इसे चरवाहों द्वारा सुरक्षा के लिए हेडगियर के रूप में पहना जाता था और 80 के दशक में आतंकवादियों द्वारा पहचान छिपाने वाले मुखौटे के रूप में इस्तेमाल किया गया। 90 के दशक में यह फैशन बन गया और हालिया वक्त में फिलिस्तीन समर्थकों की नाराजगी और आक्रोश का प्रतीक बन गया है। फिलिस्तीन का समर्थन करने वालों ने फिलिस्तीन के बाहर इंग्लैंड, फ्रांस, इटली, ऑस्ट्रेलिया और कुछ पश्चिम एशियाई शहरों में भी इसे पहना है।

इजराइल के विरोध का बना प्रतीक

पश्चिमी देशों में केफियेह हेडस्कार्फ को इजराइल के विरोध के रूप में देखा जाता है इसलिए कई बार इस पर प्रतिबंध भी लगाया गया है। हमास और इजराइल के बीच गाजा में चल रहे युद्ध में इजरायल के हमलों के विरोध में कई लोगों ने इस हेडस्कार्फ को पहना है।

मिडिल-ईस्ट में कई तरह के स्कार्फ पहने जाते हैं और इनमें से केफियेह हेडस्कार्फ भी एक है। आमतौर पर यह कॉटन या इसके मिक्स्चर से बना होता है और सफेद रंग का होता है। इसमें कुछ पैटर्न भी होते हैं। इसमें मछली पकड़ने के जाल जैसा पैटर्न होता है क्योंकि इस क्षेत्र में मछली पकड़ना एक प्रमुख व्यवसाय था। इसमें जैतून के पेड़ों की पत्तियां भी होती हैं क्योंकि यहां पर जैतून के पेड़ होते हैं।

फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आर्मिन लैंगर बताते हैं कि इस हेडस्कार्फ का इस्तेमाल रेगिस्तान में धूप में सिर को ढकने के लिए भी किया जाता था।

यह हेडस्कार्फ फिलिस्तीन संघर्ष से कैसे जुड़ गया?

1917 में ऑटोमन एंपायर खत्म होने के बाद फिलिस्तीन पर ब्रिटेन का कब्जा हो गया। लेकिन यहां के लोगों ने ब्रिटिश शासन का विरोध किया और इस विरोध का प्रतीक बना केफियेह हेडस्कार्फ। आर्मिन लैंगर लिखते हैं कि ब्रिटिश शासन का विद्रोह कर रहे कुछ लोगों ने रणनीतिक रूप से इसका इस्तेमाल ब्रिटिश अधिकारियों से अपने चेहरों को छुपाने के लिए किया।

एएफपी ने 2015 में अब्देलअज़ीज़ अल-कराकी नाम के शख्स के हवाले से कहा था कि ब्रिटिश यह मानते थे कि जो कोई भी इस हेडस्कार्फ को पहनता था, वह उसका विरोधी था लेकिन अचानक बड़ी संख्या में लोगों ने इसे पहनना शुरू कर दिया। अब्देलअज़ीज़ अल-कराकी ने चार दशक से अधिक समय तक केफियेह बनाने वाले कारखाने में काम किया था।

1948 में जब इजराइल बना और इसके बाद अरब और इजराइल का युद्ध हुआ तो 7.5 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनियों को अपना घर छोड़ना पड़ा। आर्मिन लैंगर लिखते हैं कि उस वक्त यह हेडस्कार्फ फिलिस्तीन लोगों के इजराइल के विरोध की पहचान बन गया था और अपनी जमीन से एक इमोशनल संबंध का गवाह भी।

यासिर अराफात ने दिलाई पहचान

अगर आप फिलिस्तीन से जुड़ी खबरों में दिलचस्पी रखते होंगे तो आपको फिलिस्तीन लिबरेशन आर्गेनाइजेशन के नेता यासिर अराफात की तस्वीर जरूर याद होगी। वह ऐसा ही हेडस्कार्फ पहनते थे। उनकी वजह से 1970 के दशक में यह हेडस्कार्फ काफी लोकप्रिय हो गया था। दक्षिण अफ्रीका के नेता नेल्सन मंडेला ने फिलिस्तिनियों के साथ एकजुटता दिखाते हुए इसे पहना था। मंडेला ने यह भी कहा था कि हमारी आजादी फिलिस्तीनियों की आजादी के बिना अधूरी है।