सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज संजय किशन कौल ने मोदी सरकार को लेकर अपनी राय व्यक्त की है। जस्टिस (रि.) कौल ने सरकार और न्यायपालिका की भूमिका पर भी रोशनी डाली है। संजय किशन कौल ने जनसत्ता डॉट कॉम के संपादक विजय कुमार झा के साथ बातचीत में कई मुद्दों पर खुलकर अपना मत व्यक्त किया।

वर्तमान सरकार को लेकर क्या सोचते हैं जस्टिस (रि.) कौल?

इस सवाल के जवाब में रिटायर्ड जज ने कहा, “मौजूदा नेतृत्व को पब्लिक सपोर्ट है। ये समझना चाहिए कि हमने डेमोक्रेसी को चुना है। डेमोक्रेसी में भी उसके एक मेथड को चुना है- फर्स्ट पास्ट द पोल। जिसने भी राज किया है, उसने 50 प्रतिशत के कम ही वोट पर राज किया है। … तो जो भी पार्टी पावर में आएगी, वो यही सोचेगी कि हम जनता द्वारा चुन के आए हैं, हम जो करना चाहते हैं करने दीजिए। न्यायपालिका का काम ही चेक एन्ड बैलेंस का है, इसलिए जो भी सरकार में रहेगा, उसे लगेगा कि उन्हें फ्री हैंड नहीं दिया जा रहा है क्योंकि कई बातों में न्यायपालिका का हस्तक्षेप होता है। लेकिन न्यायपालिका की भूमिका तो संविधान में तय है। हम एक अपना काम करते हैं। वो अपना काम करते हैं। विपक्षी अपना काम करते हैं।”

कमजोर विपक्ष के नुकसान?

जस्टिस (रि.) संजय किशन कौल ने आगे की बीतचीत में कमजोर विपक्ष के नुकसान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “जब विपक्ष कमजोर हो जाती है तो एक अलग तरह की समस्या होती है, जैसे आज कल है। जब गठबंधन की सरकारें थी तो बैलेंसिंग ज्यादा होती थीं। अलग-अलग विचारों को ज्यादा सुना जाता था। जब एक सरकार ज्यादा मैंडेट के साथ आती है तो वह समझती है कि उसे जनता द्वारा यह अधिकार दिया गया है कि वह जो चाहे करे। विपक्षी दल कहते हैं कि उनकी बात को भी सुना जाना चाहिए।”

पूरा इंटरव्यू:

बढ़ी है असहिष्णुता, लोग एक दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं- कौल

संजय किशन कौल ने अपनी रिटायरमेंट स्पीच में असहिष्णुता का मामला उठाया था। विजय कुमार झा ने सेवानिवृत्त जज से पूछा कि आपको क्यों लगता है कि आज असहिष्णुता का माहौल है और अगर है तो उसका समाज पर क्या असर पड़ रहा है?

जस्टिस (रि.) कौल ने कहा, “असहिष्णुता तो घर-घर में फैली हुआ है। पहले लोग एक-दूसरे की बात सुन लेते थे। लेकिन अब लोग एक-दूसरे के राजनीतिक विचार सुनने को तैयार नहीं है। इसलिए मैं तो अब हल्के-फुल्के अंदाज में यह कहने लगा हूं कि डिनर टेबल पर राजनीतिक बहस नहीं होनी चाहिए। कोई किसी का समर्थक होगा, कोई किसी का विरोधी होगा और फालतू का झगड़ा हो जाएगा। …ऐसा सीन मेरे यहां भी हो सकता है। इसलिए मैं कहता हूं कि राजनीतिक बहस नहीं होगी। अब अलग-अलग तरह के लोग बैठे हैं तो देखने का अलग-अलग नजरिया हो सकता है। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन किसी प्वाइंट ऑफ व्यू को एक हद तक ही जाना चाहिए। एक व्यू ऑफ एक्सप्रेशन होना चाहिए बस।”

धारा 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अलग से अपनी राय क्‍यों ल‍िखी?

मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को संसद के जरिए खत्म कर दिया था। जब सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तो अदालत ने अपने फैसले में संसद के निर्णय को वैध करार दिया। अनुच्छेद 370 पर फैसला सुनाने वाली बेंच में संजय किशन कौल भी शामिल थे, जो खुद मूल रूप से कश्मीरी हैं। उन्होंने फैसले में अलग से अपनी कुछ राय दर्ज कराई थी।

जनसत्ता के साथ बातचीत में जस्टिस (रि.) कौल ने ऐसा करने की पीछे दो प्रमुख वजह बताई। पहला- उन्हें कश्मीर के इतिहास और हालात के बारे में निजी तौर पर जानकारी है। दूसरा- कश्मीर में जो कुछ हुआ है वह कहीं न कहीं दर्ज रहे, उससे इनकार न क‍िया जा सके। (विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें)

Sanjay Kishan Kaul
(PC- Jansatta.com)