राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी ‘यंग इंडिया’ नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका निकालते थे। अंग्रेजी में निकलने वाली इस पत्रिका में गांधी के अपने विचार और दर्शन होते थे। 21 जुलाई, 1920 को प्रकाशित हुआ यंग इंडिया का अंक बहुत खास था, उसमें गांधी ने मुगल शासक औरंगजेब की सादगी और श्रम प्रति उनकी निष्ठा का उदाहरण दिया है।
गांधी ने दिया औरंगजेब की श्रमनिष्ठा का उदाहरण
पंडित मदन मोहन मालवीय ने राजघरानों को चेतावनी देते हुए कहा था, ”मुझे तब तक संतोष नहीं होगा, जब तक भारत की रानी-महारानियां सूत नहीं काटने लगतीं और राजे-महाराजे करघों पर बैठकर राष्ट्र के लिए कपड़े नहीं बुनने लगते।” गांधी ने मालवीय की इसी बात को आगे बढ़ाते हुए यंग इंडिया में लिखा था कि राजा-महाराजाओं को औरंगजेब से सीखना चाहिए, जो अपनी टोपिया खुद बनाते थे।
औरंगजेब द्वारा टोपी सिले जाने का उदाहरण गांधी ने अपनी पत्रिकाओं में कई बार दिया। बीबीसी के एक लेख में ऐसे कई अंकों का जिक्र मिलता है। 20 अक्टूबर, 1921 को गांधी ने अपनी गुजराती पत्रिका ‘नवजीवन’ में लिखा था, ”जो धनवान हो वह श्रम न करे, ऐसा विचार तो हमारे मन में आना ही नहीं चाहिए। इस विचार से हम आलसी और दीन हो गए हैं। औरंगजेब को काम करने की कोई ज़रूरत नहीं थी, फिर भी वह टोपी सीता था। हम तो दरिद्र हो चुके हैं, इसलिए श्रम करना हमारा दोहरा फर्ज है।”
लंदन में अंग्रेज इतिहासकारों के सामने गांधी
गांधी 1 नवंबर, 1931 को लंदन की यात्रा पर थे। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के पेमब्रोक कॉलेज में उनका भाषण होना था। सुनने वालों में ब्रिटिश इतिहासकार, लेखक, दार्शनिक, धर्मशास्त्री आदि कई महान विभूति शामिल थे। गांधी ने खुलकर बोला और विदेशी इतिहासकारों पर दुर्भावना और राजनीति से प्रेरित होकर भारतीय इतिहास लिखने का आरोप लगाया।
कैम्ब्रिज में ही ‘इंडियन मजलिस’ को संबोधित करते हुए गांधी ने मौलाना मुहम्मद अली के वक्तव्य को कोट करते हुए कहा, ”औरंगजेब उतना बुरा नहीं था जितना बुरा अंग्रेज इतिहासकारों ने दिखाया है, मुग़ल हुक़ूमत इतनी खराब नहीं थी जितनी खराब अंग्रेज इतिहासकारों ने बताई है।”
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