हिंदुत्व की परिभाषा देने वाले विनायक दामोदर सावरकर का व्यक्तित्व बहुमुखी है। वह अलग-अलग कालखंड में अलग-अलग तरह से सोच रहे हैं। पहले वह जाति आधारित भेदभाव के उन्मूलन के लिए अभियान चला रहे थे। वहीं बाद में डॉ. अम्बेडकर द्वारा बुद्ध धर्म अपनाने की आलोचना करते हैं।

युवावस्था में वह अंग्रेजों का साथ देने वालों को देशद्रोही कहते हैं। लेकिन अंडमान की सेल्यूलर जेल से माफी मांग कर बाहर आने के बाद खुद अंग्रेजों का साथ देते हैं।

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गाय के मामले में वह आम परंपरावादियों से अलग विचार रखते हैं। वह गाय को पवित्र मानने के खिलाफ थे। साथ ही उन्हें गौ हत्या से भी परहेज न था। वहीं दूसरी तरफ वह सती प्रथा के समर्थक और विधवा विवाह के आलोचक थे।

सती प्रथा के समर्थक सावरकर

सावरकर समग्र के खंड पांच के पेज नंबर 62 पर सावरकर को सती प्रथा निवारण और विधवा विवाह जैसे सामाजिक सुधारों की आलोचना करते पढ़ा जा सकता है। वह अपनी किताब ‘द वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस ऑफ 1857’ में भी सती प्रथा को गैर कानूनी बताने पर रोष व्यक्त कर चुके हैं। सावरकर सती प्रथा को खत्म करने की कोशिश को गलत और हिंदू आदर्शों की बेअदबी बताते हैं। इसके खिलाफ कानून बनाने वाले अंग्रेजों की आलोचना करते हैं।

वह लिखते हैं,  ”हिंदू और मुस्लिम धर्म की जड़ों को हिलाने के लिए अंग्रेज सरकार लगातार कानून बना रही है। रेलवे के जरिए धर्म और जाति का बंटवारा किया जा रहा था। एक के बाद एक देश में ईसाई मिशन के स्कूल खोले जा रहे थे। ऐसे मिशन को खुले हाथों से सरकार पैसे दे रही थी ताकि गैर हिंदू और गैर मुस्लिम आबादी की संख्या को बढ़ा सकें।”

सावरकर जिस ‘केसरी’ अखबार में लिखा करते थे, उस अखबार के संस्थापक और सावरकर के आदर्शों में से एक बाल गंगाधर तिलक भी हिंदू धर्म की कई कुरीतियों के समर्थक थे। तिलक ने विधवा स्त्रियों की शिक्षा का विरोध किया था। उन्होंने ‘केसरी’ में नारीवादी पंडिता रमाबाई द्वारा चलाए जा रहे शारदा सदन के खिलाफ अभियान चलाया था। बाल गंगाधर तिलक बाल विवाह को भी बनाए रखने के समर्थक थे। वह चाहते थे कि लड़कियों की शादी 10 साल में हो जानी चाहिए।

‘मुसलमान भारतीय नहीं’

ऊपर जिस किताब का जिक्र है, उसे सावरकर ने लंदन में पढ़ाई के दौरान लिखा था। अंडमान जेल से वापसी के बाद वह ‘हिंदुत्व – हू इज़ हिंदू?’ नामक किताब लिखते हैं। इसमें वह मुसलमानों को भारतीय मानने से इनकार कर देते हैं। वह लिखते हैं, “इस देश का इंसान मूलत: हिंदू है। इस देश का नागरिक वही हो सकता है जिसकी पितृ भूमि, मातृभूमि और पुण्य भूमि यही हो।

पितृ और मातृ भूमि तो किसी की हो सकती है, लेकिन पुण्य भूमि तो सिर्फ हिंदुओं, सिखों, बौद्ध और जैनियों की हो हो सकती है। मुसलमानों और ईसाइयों की ये पुण्य भूमि नहीं है। इस परिभाषा के अनुसार मुसलमान और ईसाई तो इस देश के नागरिक कभी हो ही नहीं सकते।”

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First published on: 24-10-2022 at 10:27 IST