उत्तर प्रदेश पुलिस 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस नेता के भतीजे की तलाश कर रही है। 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान कानपुर के किदवई नगर क्षेत्र में तीन लोगों की हत्या हुई थी। 21 जून को यूपी पुलिस ने बताया कि वह इसी मामले कांग्रेस विधायक और मंत्री दिवंगत शिवनाथ सिंह कुशवाहा के भतीजे राघवेंद्र कुशवाहा की तलाश कर रही है।

1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़ी घटनाओं पर जब भी बात होती है, पूरा विमर्श देश की राजधानी दिल्ली के इर्द-गिर्द घूमता है। जबकि कई हिंसक घटनाएं कानपुर में भी हुई थीं। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों में 127 लोगों की जान चली गई थी। हिंसक घटनाओं के बाद कई सिख परिवार कानपुर छोड़कर चला गया और कभी नहीं लौटा।

कानपुर का आंखों देखा हाल

कानपुर में हुई हिंसा पर ज्यादातर लोग बात नहीं करना चाहते। हालांकि पिछले साल जुलाई में 75 वर्षीय हरमोहिंदर कौर ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’  से बात कर हिंसा का आंखों देखा हाल बताया था। भीड़ ने कौर के पति भगत सिंह (35) और उनके 32 वर्षीय बहनोई हरबंस सिंह की हत्या कर दी थी। कौर बताती हैं कि 1 नवंबर, 1984 को भीड़ ने उनके शारदा नगर (कानपुर) स्थित बंगले को घेर लिया था। तब घर में नौ बच्चों सहित परिवार के 20 सदस्य रहते थे। भीड़ लगातार चिल्ला रही थी- सरदारों को मार डालो।  हालांकि, कौर को हिंसा में शामिल लोगों के चेहरे याद न कर पाने का अफसोस है।

कौर 10 साल पहले कानपुर के सुंदर नगर स्थित गुरु नानक डिग्री कॉलेज से लेक्चरर के पद से सेवानिवृत्त हुईं। अब तक परिवार को दो बार मुआवजा मिला है। पहली बार साल 1984 में 20,000 रुपये और दूसरी बार 2004 में पांच लाख रुपये का मुआवजा मिला था। 1993 में परिवार को रियायती दरों पर 1.5 लाख रुपये में 200 वर्ग मीटर का प्लॉट भी मिला था।

35 साल बाद SIT का गठन

2019 में योगी आदित्यनाथ की नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने कानपुर में सिख विरोधी दंगों से जुड़े सभी 1,251 मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया था। यह दंगों के 35 साल बाद इस तरह की पहली कार्रवाई है। SIT ने 1,251 में से 40 मामलों को शॉर्टलिस्ट किया जो “गंभीर” प्रकृति के थे, जिनमें से पुलिस ने 11 में आरोपपत्र दायर किया और सबूतों की कमी का हवाला देते हुए शेष 29 में क्लोजर रिपोर्ट पेश की। एसआईटी ने चार मामलों में बरी किये जाने के खिलाफ अपील दायर करने की सिफारिश राज्य सरकार को भेजी थी।

जांच के दौरान SIT को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

चार सदस्यीय SIT का नेतृत्व उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक अतुल ने किया। अन्य सदस्यों में जिला न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) सुभाष चंद्र अग्रवाल, अतिरिक्त महानिदेशक (सेवानिवृत्त) योगेश्वर कृष्ण श्रीवास्तव, और पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) बालेंदु भूषण शामिल थे।

एसआईटी के एक अधिकारी ने कहा कि जिन लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों को खोया है, उनमें से ज्यादातर लोग भाग गए और कभी वापस नहीं आए। कुछ आरोपियों की 35 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी, जबकि अधिकांश वृद्ध थे और उम्र के कारण चलने-फिरने में असमर्थ थे। एसआईटी द्वारा चिन्हित 96 आरोपियों में से 73 जीवित हैं।

अब तक कितनों को गिरफ्तार किया गया है?

पहली गिरफ्तारी जून 2022 में हुई थी और एसआईटी अब तक 43 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। एसआईटी ने 60 से अधिक लोगों की मौत से जुड़े 11 मामलों में 40 से अधिक लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया है। 40 लोगों पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 396 (हत्या के साथ डकैती) और 436 (घर को नष्ट करने के इरादे से आग या विस्फोटक पदार्थ द्वारा उत्पात करना आदि) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

ये गिरफ्तारियां प्रत्यक्षदर्शियों, पीड़ितों और उनके परिवारों के बयानों सहित अन्य सबूतों के आधार पर की गई है। गिरफ्तार किए गए अधिकांश आरोपियों की उम्र 60 वर्ष से अधिक है। कुछ की पहचान राजन लाल पांडे (85), दीपक (70), धीरेंद्र कुमार तिवारी (70), सिद्ध गोपाल गुप्ता उर्फ बाबू (66), योगेश शर्मा (65), जसवंत (68), रमेश चंद्र दीक्षित (62), रविशंकर मिश्रा (76), सफीउल्लाह (64), और अब्दुल रहमान (65) के रूप में की गई है। धीरेंद्र कुमार तिवारी (70) की गिरफ्तारी के एक महीने बाद अगस्त 2020 में मृत्यु हो गई थी।

राघवेंद्र कुशवाहा पर क्या आरोप है?

किदवई नगर में हुई तीन लोगों की हत्या के मामले में पुलिस को ‘राघवेंद्र कुशवाहा की संलिप्तता’ मिली है। एक अधिकारी ने कहा कि पीड़ितों की हत्या कर दी गई और उनके शवों को आग लगा दी गई।

मामले में राघवेंद्र के अलावा करीब 17 अन्य आरोपी हैं। मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए गए अपने बयान में तीन गवाहों ने राघवेंद्र समेत आरोपियों की पहचान की पुष्टि की है। एसआईटी ने कहा कि उसने पाया कि कानपुर के एक प्रभावशाली व्यक्ति राघवेंद्र ने भीड़ का नेतृत्व किया था।

अब मामलों की जांच कौन कर रहा है?

राज्य सरकार के निर्देश पर इस साल मार्च में एसआईटी को भंग कर दिया गया था। कानपुर पुलिस मामलों की जांच कर रही है।