नौकरी/रोजगार का बाजार मंदा पड़ रहा है। कोव‍िड चले जाने के बाद भी हालात लगभग ऐसे ही हैं। सेंटर फॉर मॉनीटर‍िंंग इंड‍ियन इकोनॉमी (CMIE – सीएमआईई) के आंकड़े यही बता रहे हैं। हालांक‍ि, सरकार का नजर‍िया अलग है। उसका कहना है क‍ि हालात लगातार सुधर रहे हैं। ऐसा व‍िरोधाभासी दावा क्‍यों है, यह जानने से पहले जानते हैं दोनों के आंकड़े क्‍या बोलते हैं?

पहले CMIE का डेटा

बता दें क‍ि सीएमआईई प्राइवेट थ‍िंक टैंक (व‍िशेषज्ञों की संस्‍था) है जो देश की आर्थ‍िक हालत पर नजर रखता है। CMIE के मुताब‍िक, साल 2023 में जनवरी (7.14 प्रत‍िशत) से अप्रैल (8.11 फीसदी) तक हर महीने बेरोजगारी दर बढ़ी ही है। इससे पहले 2022 में भी स‍ितंबर से द‍िसंबर तक बेरोजगारी का आंकड़ा लगातार बढ़ा ही था। चार्ट पर नजर डाल‍िए:

महीना (2023)बेरोजगारी दर
अप्रैल8.11%
मार्च7.8%
फरवरी7.45%
जनवरी7.14%
साल 2023 का माहवार बेरोजगारी दर (सोर्स- Centre for Monitoring Indian Economy)
महीना (2022)बेरोजगारी दर
दिसंबर8.3%
नवंबर8%
अक्टूबर7.92%
सितंबर6.43%
अगस्त8.28%
जुलाई6.83%
जून7.83%
मई7.14%
साल 2022 का माहवार बेरोजगारी दर (सोर्स- Centre for Monitoring Indian Economy)

क्‍या कहता है एनएसओ, यानी सरकार का आंकड़ा

केंद्र सरकार का राष्‍ट्रीय सांख्‍य‍िकीय कार्यालय (एनएसओ) का आंकड़ा सीएमआईई से अलग है। एनएसओ पीर‍ियोड‍िक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) र‍िपोर्ट जारी करता है। सबसे ताजा र‍िपोर्ट साल 2021-22 की है। इसके मुताब‍िक बेरोजगारी दर 4.1 है, जो 2020-21 (4.2 प्रत‍िशत) से थोड़ा कम ही है।

unemployment rate
बेरोजगारी दर

अलग-अलग आंकड़े क्‍यों और इसका कारण क्‍या?

लेक‍िन, कई अर्थशास्‍त्र‍ियों का मानना है क‍ि सीएमआईई की र‍िपोर्ट ज्‍यादा व‍िश्‍वसनीय है। वे इसकी वजह बताते हैं क‍ि पीएलएफएस में उन लोगों को बेरोजगार नहीं माना जाता है जो ब‍िना पैसों के काम करते हैं, जबक‍ि सीएमआईई स‍िर्फ उन्‍हीं लोगों को बेरोजगार नहीं मानता है ज‍िन्‍हें काम के बदले पैसे म‍िलते हैं। सीएमआईई Consumer Pyramids Household Survey के जर‍िए आंकलन करता है। 

इसे उदाहरण से ऐसे समझ‍िए। आपकी कोई दुकान है। आप उसे चलाने में पर‍िवार के एक या दो सदस्‍यों की मदद ले रहे हैं। लेक‍िन, उन सदस्‍यों को मदद के बदले पैसा नहीं दे रहे हैं। यान‍ि, आपकी मदद कर वे कोई आय नहीं कमा रहे। ऐसे में उन एक या दो सदस्‍यों को सीएमआईई बेरोजगार ग‍िनेगा, जबक‍ि पीएलएफएस में वे बेरोजगार नहीं ग‍िने जाएंगे। 

सरकार मानती है घट रही बेरोजगारी, प्राइवेट थ‍िंंक टैंक की राय उलट

unemployment rate
पीएलएफएस और सीपीएचएस के मुताब‍िक बीते पांच सालों में बेरोजगारी दर के आंकड़े में क्‍या अंतर है, यह इस चार्ट में देख सकते हैं।

अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का भी कहना है क‍ि अगर क‍िसी व्‍यक्‍त‍ि को उसके द्वारा क‍िए गए काम के पैसे नहीं म‍िलते हैं तो वह उसके ल‍िए रोजगार नहीं माना जाएगा। 

द‍िल्‍ली का हाल अच्‍छा भी और नहीं भी

रोजगार के ल‍िहाज से देखें तो बीते कुछ सालों में द‍िल्‍ली में साल-दर-साल इसके अवसर बढ़े हैं। सीएमआईई बताता है क‍ि जनवरी-अप्रैल, 2020 में द‍िल्‍ली में 53 लाख लोग रोजगार में थे, जो जनवरी-अप्रैल, 2023 में 57 लाख हो गए। इस ल‍िहाज से तो द‍िल्‍ली का हाल अच्‍छा है।

unemployment rate
सोर्स- CMIE

लेक‍िन, इस दौरान छोटे कारोबार‍ियों और द‍िहाड़ी मजदूरों की संख्‍या सबसे ज्‍यादा (करीब दोगुनी – चार से आठ लाख) बढ़ी है। तीन साल में वेतनभोग‍ियों की संख्‍या केवल दो लाख (31 से 33) ही बढ़ी, जबक‍ि ब‍िजनेस करने वाले 18 लाख से घट कर 16 लाख ही रह गए। यह अच्‍छा हाल नहीं माना जा सकता है।

सैलरीड एम्‍पलॉइज क‍ितने

राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बात करें तो सरकारी आंकड़े बताते हैं क‍ि सैलरीड एम्‍पलॉइज 2011-12 में ग्रामीण इलाके में 9.6 फीसदी थे। दस साल में यह आंकड़ा 13 फीसदी पर पहुंचा। शहरी इलाकों में इस दौरान यह 41.7 से बढ़ कर 42.5 फीसदी ही हुआ। साल 2019-20 में सैलरीड लोग 21.2 प्रत‍िशत हुआ करते थे। 2021 में 19 प्रत‍िशत हो गए।

सरकारी नौकरी क‍ितनी

सरकारी नौकरी की बात करें तो केंद्र सरकार के कर्मचार‍ियों की संख्‍या 47.58 लाख बताई जाती है। 2014 में भी यह संख्‍या लगभग इतनी ही (47 लाख) बताई जाती थी। 27 जुलाई, 2022 को सरकार ने लोकसभा में बताया था क‍ि 2014 के बाद से 7.22 लाख युवाओं (कुल आवेदकों का 0.33 प्रत‍िशत) को केंद्र सरकार में पक्‍की नौकरी दी गई है। इन पदों के ल‍िए 22.6 करोड़ लोगों ने अर्जी दी थी। साल-दर-साल का आंकड़ा इस प्रकार था: 

सालकेंद्र सरकार द्वारा दी गई नौकरी
2014-151,30,423
2015-161,11,807
2016-171,01,333
2017-1876,147
2018-1938,100
2019-201,47,096
2020-2178,555
2021-2238,850
27 जुलाई, 2022 को मंत्री ने लोकसभा को जैसा बताया

सैलरीड एम्‍प्‍लाईज : एक पहलू यह भी

सैलरीड एम्‍प्‍लाईज की संख्‍या नहीं बढ़ने के पीछे एक समस्‍या और है। हुनरमंद लोगों की कमी। और, यह समस्‍या कोई नई नहीं है। करीब पांच साल पहले एक सर्वे हुआ था। उसमें पाया गया था क‍ि 48 फीसदी न‍ियोक्‍ताओं (नौकरी देने वालों) को सही उम्‍मीदवार नहीं म‍िलने के चलते खाली पद भरने में द‍िक्‍कत आई। आईटी सेक्‍टर में यह समस्‍या सबसे ज्‍यादा देखने को म‍िली थी।

2018 में आईटी से जुड़ी ड‍िग्री रखने वाले 140000 युवाओं को न‍ियोक्‍ताओं ने काम देने लायक नहीं पाया था। जबक‍ि उस समय आईटी सेक्‍टर में नौकर‍ियां थीं। उस साल इस सेक्‍टर में पांच लाख युवाओं को नौकरी दी गई थी। 

सीएमआईई की र‍िपोर्ट से तो यह भी पता चला क‍ि ज्‍यादा पढ़े-ल‍िखे युवाओं की संख्‍या बेरोजगार रहने के मामले में भी ज्‍यादा थी। सरकारी र‍िपोर्ट (पीएलएफएस सर्वे) में भी बताया गया था क‍ि 2018 में 15-29 साल के 38 प्रत‍िशत प्रशि‍क्ष‍ित युवा नौकरी नहीं पा सके। सीएमआईई के मुताबि‍क अगस्‍त 2020 में देश में सैलरीड एम्‍ललॉइज की संख्‍या  6.5 करोड़ थी, जो अक्‍टूबर 2022 में 8.6 करोड़ हो गई थी।