ऋषिका सिंह
क्रिसमस के मौके पर एक-दूसरे को गिफ्ट देना अब त्योहार का हिस्सा बन चुका है। परिजन बच्चों के लिए उपहार खरीदते हैं। दोस्तों और दफ्तर में सहकर्मियों के बीच गिफ्ट्स का आदान-प्रदान होता है। इन उपहारों को लोग अक्सर सीक्रेट सेंटा बनकर देते हैं। सेंटा क्लॉज़ की छवि बहुत दिलचस्प है। वह एक बूढ़ा व्यक्ति होता है, जिसे परोपकारी माना जाता है। आइए जानते हैं, सेंटा क्लॉज़ क्रिसमस और उपहार देने की परंपरा से कैसा जुड़ा?
सेंटा क्लॉज़ से जुड़ी हैं कई किंवदंतियां
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, सेंटा क्लॉज़ की लोकप्रिय छवि चौथी शताब्दी के ईसाई संत सेंट निकोलस से जुड़ी परंपराओं पर आधारित है। उन्हें बच्चों को आश्रय देने वाले संत के रूप में देखा जाता था। बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि निकोलस को चौथी शताब्दी में छोटे रोमन शहर मायरा (वर्तमान तुर्की) का बिशप माना जाता था।
एक संत के रूप में निकोलस डचों के बीच प्रसिद्ध थे। उन्हें सिंटरक्लास कहते थे। जब 17वीं शताब्दी में डच वर्तमान न्यूयॉर्क के आसपास के इलाकों को उपनिवेश बनाने आए, तो वे सिंटरक्लास सहित अपनी अनूठी परंपराएं लेकर आए।
फ़िनलैंड सेंटा क्लॉज़ की पौराणिक कथाओं पर भी दावा करता है। बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि “मध्य युग में फिनलैंड में ईसाई धर्म आने से पहले, फिन्स ने यूल मनाया था। यह सर्दियों के मौसम में दावत के साथ मनाया जाने वाला एक मूर्ति पूजा का त्योहार था।” बुतपरस्ती प्रमुख आधुनिक धर्मों के आने से पहले मौजूद थीं।
कई नॉर्डिक देशों में 13 जनवरी को सेंट नट डे मनाया जाता था। सेंट नट डे नॉर्डिक देशों में छुट्टियों के मौसम के अंत को चिह्नित करता था। उस दिन फर वाले जैकेट, मास्क और सींग पहने पुरुष, घर-घर जाकर उपहार मांगते थे। उन्हें नुट्टीपुक्की कहा जाता था। उन्हें बुरी आत्मा माना जाता था।
1800 के दशक में संत निकोलस की कहानियां नॉर्डिक देशों फैलती देखी गईं। बाद में नुट्टीपुक्की और सेंट निकोलस की परंपरा मिक्स हो गईं। अब एक व्यक्ति लाल वस्त्र पहनकर उपहार देने जाने लगा।
दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटेन में फादर क्रिसमस नामक एक शख्स पहले से मौजूद था। यॉर्क विश्वविद्यालय ने एक लेख में लिखा है कि सेंटा के विपरीत वह “उत्सव पार्टियों, दावतों और शराब पीने के लिए जाना जाता था… क्रिसमस बच्चों के बजाय वयस्कों के मनोरंजन पर अधिक केंद्रित था।”
19वीं शताब्दी में विक्टोरियन काल के साथ इसमें बदलाव आया, जिसके साथ पारिवारिक जीवन पर अधिक ध्यान देने जैसे सामाजिक परिवर्तन भी आए।
यूरोप के बच्चों की दुनिया में एक और ऐसी ही शख्सियत क्रैम्पस की है। वह एक राक्षस था जिसका आधा शरीर बकरी का था। उसे बुरा सेंटा माना जाता था। जिसके बारे में यह कहानी थी कि वह शरारती बच्चों को दंडित करता है। जबकि अच्छे सेंटा उन्हें अच्छा होने के लिए उपहारों से पुरस्कृत करते थे।
सेंटा उपहार देने वाला क्यों बन गया?
इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर पॉल रिंगेल ने 2015 में द अटलांटिक में लिखा था कि क्रिसमस पर उपहार देने का चलन कई कारणों से शुरू हुआ। इसमें 1800 के दशक की शुरुआत में खिलौना उद्योग का उदय, बढ़ता व्यावसायीकरण और न्यूयॉर्क की बढ़ती आबादी, आदि शामिल हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि समाज के संभ्रांत वर्गों के बीच इस बात को लेकर चिंता है कि त्योहार के दौरान मजदूर वर्ग को कैसे शांत रखा जाए। प्रोफेसर रिंगेल लिखते हैं, “नए भीड़भाड़ वाले शहरी माहौल में अभिजात वर्ग की चिंता अनोखी थी। उन्हें पता था कि अगर कंपनियां मजदूरों को त्योहार पर छुट्टी नहीं देंगी तो ऐसे उत्सव विरोध का माध्यम बन सकते हैं। वैसे भी क्रिससम के दौरान मौसमी मजदूर बेरोजगारी से जूझ रहे होते हैं।” ऐसे में अभिजात वर्ग ने अपने बच्चों को उपहार देना शुरू किया। यह सड़क के शोर-शराबे से दूर अपने घरों में बच्चों के साथ सुरक्षित त्योहार मनाने का तरीका था।
हर किसी को सेंटा पसंद नहीं है
जहां बच्चे सेंटा को उपहार लाने वाले के रूप में देखते हैं, वहीं कुछ वयस्क उसकी उपस्थिति के प्रति अधिक सशंकित रहते हैं। 2018 में साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, एक उत्तरी चीनी शहर ने अपने अधिकारियों को उत्सव की सजावट को हटाने का आदेश दिया था। यह एक ऐसे देश में “धर्म के प्रसार” को रोकने का प्रयास था जहां सरकार आधिकारिक तौर पर नास्तिक है।
रिपोर्ट में बताया गया, “लैंगफैंग अधिकारियों ने बयान में कहा कि शहर में क्रिसमस ट्री, फूलों की मालाएं, मोज़ा या सेंटा क्लॉज़ की मूर्तियां बेचते हुए पकड़े गए किसी भी व्यक्ति को दंडित किया जाएगा।”
1922 में सोवियत संघ में नए कम्युनिस्ट शासन के तहत इसी तरह की चीजों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था। टाइम मैगज़ीन के एक लेख में बताया गया है कि रूसी सेंटा कहे जाने वाले जादूगर डेड मोरोज़ को निर्वासित कर दिया गया था क्योंकि उपहार देने से जुड़े व्यावसायीकरण को उस समय की प्रचलित विचारधारा के खिलाफ माना गया था।
भारत में भी सेंटा की लोकप्रियता को चुनौती मिली है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक याचिका में मांग की गई थी कि अन्य बातों के अलावा, दिल्ली सरकार को “ऊनी और कपास को बर्बाद होने से बचाने” के लिए सेंटा क्लॉज़ की पोशाक बनाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए । हालांकि, पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि संरक्षण के मामले को “सांप्रदायिक रंग” दिया जा रहा है।
2022 में विश्व हिंदू परिषद ने स्कूलों से कहा था कि वे छात्रों को अपने माता-पिता की अनुमति के बिना सेंटा क्लॉज़ की तरह कपड़े पहनने या क्रिसमस ट्री लाने के लिए न कहें। उन्होंने दावा किया था कि यह “हिंदू संस्कृति पर हमला” और “हिंदू बच्चों को ईसाई धर्म से प्रभावित करने की साजिश” है। इसी तरह का निर्देश इस साल मध्य प्रदेश के शाजापुर जिला शिक्षा अधिकारी ने स्कूलों को जारी किया है।
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