शांतिनिकेतन का नाम आते ही नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर का ख्याल आता है। यह पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले का वह शहर है, जहां टैगोर ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा बिताया। यूनेस्को ने शांतिनिकेतन को की वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट (विश्व धरोहरों की सूची) में शामिल किया है।

सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान और दार्जिलिंग माउंटेन रेलवे के बाद शांतिनिकेतन पश्चिम बंगाल का तीसरा और भारत का 41वां विश्व धरोहर स्थल है। टैगोर ने शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापन की थी, इसके बाद से ही पश्चिम बंगाल का यह शहर चर्चा में रहने लगा।

रवींद्रनाथ टैगोर के परपोते और टैगोर द्वारा शांतिनिकेतन में स्थापित स्कूल ‘पाठ भवन’ के पूर्व प्रिंसिपल सुप्रियो ठाकुर ने यूनेस्को टैग के महत्व पर द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत की है।

Supriyo Thakur
रवींद्रनाथ टैगोर के परपोते सुप्रियो ठाकुर (Express photo by Partha Paul)

शांतिनिकेतन की स्थापना कैसे हुई?

साल 1863 में रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर ने बीरभूम में रायपुर के तालुकदार भुबन मोहन सिन्हा से कुछ जमीन खरीदी। टैगोर के पिता ब्रह्म समाज के एक सक्रिय सदस्य थे। उन्होंने सबसे पहले खरीदी गई जमीन पर एक गेस्ट हाउस बनवाया और उसका नाम शांतिनिकेतन (शांति का निवास) रखा।

1867 में उन्होंने वहां प्रार्थना के लिए एक आश्रम स्थापित किया। धीरे-धीरे आश्रम और इसके आसपास के क्षेत्र को शांतिनिकेतन के नाम से भी जाना जाने लगा। 1901 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने केवल पांच छात्रों के साथ ब्रह्मचर्याश्रम शुरू किया, जो 1925 में पाठ भवन बन गया।

1921 में टैगोर ने विश्व भारती की स्थापना की, जिसे 1951 में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया।  विश्व भारती के लिए शहर में अधिक आवासीय परिसरों, छात्रावासों और भवनों का निर्माण हुआ, जिसे शांतिनिकेतन के विस्तार में योगदान के तौर पर देखा गया।

यदि शांतिनिकेतन का वर्णन किसी ऐसे व्यक्ति से करना हो जिसने इसे कभी नहीं देखा हो, तो उसे क्या बताना चाहिए?

शांतिनिकेतन की स्थापना मानव और प्रकृति के बीच संबंध स्थापित करने के लिए की गई थी। यह एक ऐसा स्थान है जो न केवल शिक्षा प्रदान करता है बल्कि छात्रों को चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य और नाटक जैसी कला के विभिन्न रूप भी सिखाता है। यह एक ऐसा स्थान है जो टैगोर के दृष्टिकोण का प्रतीक और दुनिया भर के छात्रों और विद्वानों का मिलन स्थल है।

Santiniketan
शांतिनिकेतन आश्रम (Express photo by Partha Paul)

विश्व भारती और शांतिनिकेतन शहर के पीछे टैगोर का क्या दृष्टिकोण था?

रवीन्द्रनाथ टैगोर का आदर्श वाक्य था ‘यत्र विश्वं भवति एक नीड्म ‘ (जहां सारा विश्व चिड़ियों का एक घोंसला बन कर रहे।)। एक शिक्षण संस्थान स्थापित करने के पीछे उनका यही दृष्टिकोण था, जहां छात्रों को अपने परिवेश का पता लगाने, प्रकृति से ज्ञान इकट्ठा करने और विभिन्न संस्कृतियों को आत्मसात करने की स्वतंत्रता होगी। विश्वभारती सीखने का घर था जो वैश्विक संस्कृतियों के लिए मिलन स्थल बन गया।

आज, विश्वविद्यालय और शहर टैगोर के दृष्टिकोण के कितने करीब हैं?

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज हम उस दृष्टिकोण के करीब भी नहीं हैं। आज विश्वविद्यालय एक ऐसी जगह बन गया है जो केवल डिग्री प्रदान करता है, न कि टैगोर के शिक्षा के विचार को। शांतिनिकेतन की अवधारणा समय के साथ अपना अर्थ खो चुकी है।

शांतिनिकेतन के लिए यूनेस्को टैग का महत्व?

वर्तमान शिक्षा प्रणाली और शांतिनिकेतन के वातावरण में टैगोर के दृष्टिकोण को वापस लाना कठिन है। हमें छात्रों और आसपास के लोगों के बीच उनके दृष्टिकोण को आत्मसात करने के लिए बड़े पैमाने पर बदलाव की जरूरत है। हालांकि, इस यूनेस्को टैग से शांतिनिकेतन को निश्चित रूप से नया रूप मिलेगा। विश्व भारती विश्वविद्यालय के अंदर के ऐतिहासिक आवासों और भवनों को संरक्षित किया जाना चाहिए। टैगोर की विरासत और उनकी शिक्षाएं जारी रहनी चाहिए।