शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने पार्टी के आठ बड़े नेताओं की छुट्टी तो कर दी है लेकिन यह सवाल जिंदा है कि क्या सुखबीर बादल बागी नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर पार्टी को फिर से खड़ा कर पाएंगे?
बादल ने जिन बड़े नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है उनमें शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर, पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, पूर्व मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा, सिकंदर सिंह मलूका, सुरजीत सिंह रखड़ा, पूर्व विधायक गुरप्रताप सिंह वडाला, सुरिंदर सिंह ठेकेदार और सुखबीर सिंह बादल की राजनीतिक सचिव चरणजीत सिंह बराड़ का नाम शामिल है।
पंजाब में पिछले दो विधानसभा चुनाव और इस बार के लोकसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन और बड़े नेताओं की बगावत के बाद अकाली दल में निराशा का माहौल है।
नेताओं को एकजुट नहीं रख सके सुखबीर
जिन बागी नेताओं को सुखबीर बादल ने बाहर का रास्ता दिखाया है, उनमें से परविंदर ढींडसा और बीबी जागीर कौर को सुखबीर बादल इस साल मार्च में काफी मान-मनोव्वल के बाद पार्टी में वापस लाए थे। लेकिन अकाली दल में पिछले कुछ महीनों में हुए घटनाक्रम को देखें तो यह साफ है कि सुखबीर बादल पार्टी को एकजुट करने में नाकामयाब रहे हैं क्योंकि बागी नेताओं ने काफी दिनों से सुखबीर बादल के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था।
पिछले महीने ही इन बागी नेताओं ने एक बैठक कर सुखबीर बादल से मांग की थी कि उन्हें पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ देना चाहिए और किसी अन्य नेता को पार्टी की कमान संभालने का मौका देना चाहिए।
बागी नेताओं ने कुछ दिन पहले ही सुखबीर बादल के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाते हुए 103 साल पुरानी इस पार्टी में सुधार किए जाने की मांग की थी और ‘शिरोमणि अकाली दल सुधार लहर’ नाम से अभियान भी शुरू किया था। अकाली दल के भीतर और बाहर चुनौतियों से घिरे सुखबीर बादल ने कुछ दिन पहले कोर कमेटी को भी भंग कर दिया था। कोर कमेटी में लगभग 25 सदस्य थे जिनमें से 8 नेता बागी हो चुके थे।
यह अकाली दल नहीं बादल कंपनी है: बादल
सुखबीर बादल की कार्रवाई के जवाब में एसजीपीसी की पूर्व अध्यक्ष और बादल के खिलाफ काफी मुखर रहीं बीबी जागीर कौर ने कहा है कि वह अकाली दल में पैदा हुई हैं और अकाली दल में ही मरेंगी। बीबी जागीर कौर ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल कोई पार्टी नहीं बल्कि बादल कंपनी है, सारी पार्टी एक तरफ है और सिर्फ तीन-चार लोग मिलकर पार्टी को चला रहे हैं।
दूसरी ओर, शिरोमणि अकाली दल पार्टी से बाहर निकाले गए बागी नेताओं को बीजेपी का मोहरा बताता रहा है। पार्टी का कहना है कि बीजेपी के इशारे पर कुछ लोग अकाली दल को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
लगातार हार का मुंह देख रहा अकाली दल
जब तक बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन था तब तक दोनों दल पंजाब में मिलकर चुनाव लड़ते रहे और राज्य और केंद्र की सरकारों में भी साथ रहे। अकाली दल ने 2007 से 2017 तक पंजाब में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चलाई लेकिन कृषि कानूनों के मुद्दे पर दोनों की राहें अलग हो गई।
राहें अलग होने के बाद 2022 का विधानसभा चुनाव हो या फिर 2024 का लोकसभा चुनाव, अकाली दल की हालत बद से बदतर होती चली गई। दूसरी ओर 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा 2024 में अपना वोट शेयर दोगुना करने में कामयाब रही।
2012 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल का वोट शेयर 34.73% था जो 2024 के लोकसभा चुनाव में 13.42% हो गया।
गिरता गया अकाली दल का वोट शेयर
साल | अकाली दल को मिले वोट (प्रतिशत में) |
2012 विधानसभा चुनाव | 34.73% |
2014 लोकसभा चुनाव | 26.4% |
2017 विधानसभा चुनाव | 25.4% |
2019 लोकसभा चुनाव | 27.45% |
2022 विधानसभा चुनाव | 18.38% |
2024 लोकसभा चुनाव | 13.42% |
लोकसभा चुनाव 2024 में भी अकाली दल के सामने करो या मरो का सवाल था। पार्टी ने पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा लेकिन वह सिर्फ बठिंडा सीट पर ही जीत हासिल कर सकी। बठिंडा सीट से सुखबीर सिंह बादल की पत्नी और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल चुनाव जीती हैं। लेकिन यहां भी अकाली दल के वोट शेयर में लगातार कमी आ रही है।
2019 में सुखबीर सिंह बादल जिस फिरोजपुर की लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे उस पर भी इस बार अकाली दल को हार मिली है।
जालंधर वेस्ट में मिली बुरी हार
इस महीने की शुरुआत में हुए जालंधर वेस्ट विधानसभा सीट के उपचुनाव में भी सुखबीर बादल को शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी क्योंकि अकाली दल ने पहले सुरजीत कौर को उम्मीदवार बनाया लेकिन बाद में बसपा उम्मीदवार बिंदर कुमार को समर्थन दे दिया। सुरजीत कौर को 1,242 वोट मिले जबकि बिंदर सिर्फ 734 वोट ही ला सके और दोनों की ही जमानत जब्त हो गई।
2022 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल की हार के बाद पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिए इकबाल सिंह झुंडा कमेटी बनाई गई थी। झुंडा कमेटी ने पार्टी में सुधार के लिए कुछ सिफारिशें दी थी लेकिन इन पर अमल नहीं किया गया। शिअद के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अब समय आ गया है कि पार्टी नेतृत्व जनादेश और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की आवाज सुने।
अकाली दल के विधायक दल के नेता मनप्रीत सिंह अयाली भी बागी तेवर दिखा चुके हैं। अयाली ने कहा था कि जब तक पार्टी झुंडा कमेटी की सिफारिशों को लागू नहीं करती तब तक वह पार्टी के कार्यक्रमों में भाग नहीं लेंगे।
निश्चित रूप से जिस तरह के हालात अकाली दल के भीतर हैं, उसमें सवाल यही खड़ा होता है कि क्या पंजाब का यह सबसे पुराना राजनीतिक दल खुद को फिर से सियासत के मैदान में जिंदा कर पाएगा। क्या सुखबीर बादल पार्टी नेताओं को एकजुट रखते हुए 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को तैयार कर पाएंगे। अकाली दल के सामने सवाल हजार हैं और इन सवालों का जवाब सुखबीर बादल को देना ही होगा।
शिरोमणि अकाली दल जब तक मजबूत रहा तब तक पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में गुरुद्वारों के प्रबंधन का काम देखने वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) में अकाली दल का ही कब्जा रहा। यहां तक कि एसजीपीसी के अध्यक्ष पद पर भी बादल परिवार के भरोसेमंद नेताओं को ही बैठने का मौका मिला। बागी नेता बीबी जागीर कौर तीन बार एसजीपीसी की अध्यक्ष रहीं।
गुरुद्वारों के प्रबंधन के अलावा एसजीपीसी सिख धर्म के प्रचार प्रसार का काम करती है। यह दुनिया भर के सिखों को सिख धर्म की मर्यादा के बारे में बताती है और सिख मुद्दों को भी उठाती है। एसजीपीसी कई शिक्षण संस्थान भी चलाती है।