18वीं सदी को मणिपुर (Manipur) के इतिहास का स्वर्णिम काल कहा जाता है। इसकी शुरुआत साल 1709 में मैतेई वंश के शासक पम्हीबा (Pamheiba) के गद्दी संभालने के साथ हुई। 1690 में जन्में पम्हीबा करीब चार दशक तक मणिपुर के राजा रहे। उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि उन्हें ‘गरीब नवाज’ यानी गरीबों का मसीहा भी कहा जाता था। पम्हीबा के बचपन की कहानी भी दिलचस्प है।

उन दिनों मणिपुर में एक बर्बर परंपरा थी। इस परंपरा के मुताबिक बड़ी रानी के अलावा दूसरी रानियों के बेटों को मौत के घाट उतार दिया जाता था, ताकि बड़े बेटे के उत्तराधिकार की राह में कोई दूसरा बेटा ना आए। इतिहासकार और लेखक विक्रम संपत पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब ‘शौर्यगाथाएं: भारतीय इतिहास के अविस्मरणीय योद्धा’ में लिखते हैं कि पम्हीबा, राजा चराइरोंग्बा की छोटी रानी नंगशेल छाइबी बेटे थे। चूंकि पम्हीबा का जन्म छोटी रानी के यहां हुआ था, ऐसे में जन्म लेते ही मार दिया जाना था।

नागा सरदार के यहां बीता बचपन

पम्हीबा की मां और रानी नंगशेल छाइबी ने अपने बेटे को बचाने के लिए पैदा होते ही एक नागा कबीले के प्रमुख के यहां भिजवा दिया। बाद में जब बड़ी रानी को पता चला कि छोटी रानी का बेटा जिंदा है, तो मरवाने की कोशिश करती रहीं। लेकिन हर बार पम्हीबा बचते रहे। विक्रम संपत लिखते हैं कि राजा चराइरोंग्बा को कोई और बेटा नहीं हुआ और आखिरकार उत्तराधिकारी की तलाश करने लगे। एक दिन एक गांव से गुजर रहे थे और उनकी नजर एक होशियार बालक पर। संयोगवश वह उनका बेटा पम्हीबा ही निकला और वापस राजभवन पहुंचा। पिता की मौत के बाद पम्हीबा गद्दी पर बैठे।

पम्हीबा ने पहली बार बर्मा को चटाई धूल

यह वो दौर था जब मणिपुर और बर्मा (अब म्यांमार) के बीच रिश्ते ठीक नहीं थे। बर्मी सेना लगातार मणिपुर पर हमला और लूटपाट करती रहती थी। पम्हीबा के गद्दी संभालने से पहले साल 1562 में तो बर्मा के तोंगू वंश के शासक बाइनोंग ने मणिपुर को एक तरीके से कब्जा लिया था। हालांकि जैसे-जैसे मणिपुर ने ताकत हासिल, अपनी स्वतंत्रता भी हासिल करता चला गया। साल 1725 में पम्हीबा ने पहली बार बर्मा पर हमला कर उसकी सेना को बुरी तरह हराया।

बेटी की शादी में मचाया कत्लेआम

संपत लिखते हैं कि बर्मा के राजा तानिंगान्वे लड़ाई में हार गए। पम्हीबा ने उन्हें शांति वार्ता के लिए बुलाया। बातचीत की टेबल पर तानिंगान्वे ने दंभपूर्ण रवैया अपनाते हुए पम्हीबा की बेटी सत्यमाला से विवाह का प्रस्ताव रख दिया। पम्हीबा के मन में कुछ और चल रहा था। उन्होंने शादी की हामी भर दी। संपत लिखते हैं कि शादी वाले दिन पम्हीबा मणिपुर के सैनिकों के साथ वेष बदलकर बारात वाली जगह पहुंचे और वहां कत्लेआम मचा दिया। बर्मा के सैनिकों को चुन-चुनकर मारा। बाद के सालों में भी मणिपुर और बर्मा के संबंधों में कड़वाहट बनी रही।

पम्हीबा ने ही दिया था ‘मणिपुर’ नाम

संपत लिखते हैं कि साल 1717 में हिंदू धर्म, खासकर रामानंदी संप्रदाय के वैष्णव मत को मणिपुर में स्थापित करने का श्रेय पम्हीबा को ही जाता है। साल 1724 में पम्हीबा ने ही अपने प्रांत को संस्कृतनिष्ठ नाम ”मणिपुर” दिया था।