निर्देशक ओम राउत की हिंदी फिल्म ‘आदिपुरुष’ के रिलीज होने के बाद से राम कथा एक बार फिर चर्चा में है। ‘आदिपुरुष’ के संवाद से आहत लोग और फिल्म समीक्षक रामानंद सागर के रामायण को याद कर रहे हैं। साल 1987 में ‘रामायण’ धारावाहिक का प्रसारण डीडी नेशनल पर हुआ था। तब देश में राजीव गांधी की सरकार थी।
राजीव गांधी सरकार के मंत्रियों और नौकरशाहों में इस बात को लेकर मतभेद था कि रामानंद सागर के ‘रामायण’ को सरकारी चैनल पर प्रसारित किया जाना चाहिए या नहीं। रामायण के बनने और उसके प्रसारण की कहानी को बहुत ही दिलचस्प तरीके से रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने अपनी किताब ‘An Epic Life: Ramanand Sagar: From Barsaat to Ramayan’ में लिखी है। दरअसल, यह किताब रामानंद सागर की जीवनी है।
कैसे आया रामायण बनाने का आइडिया?
साल 1976 की बात है। तब रामानंद सागर और उनका परिवार एक प्रोडक्शन हाउस चलाता था, जो व्यावसायिक रूप से काफी सफल था। रामानंद सागर अपने बेटे प्रेम, आनंद और सुभाष के साथ स्विट्जरलैंड में चरस फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे। ऐल्प्स शहर में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। पिता-पुत्र सड़क किनारे बने एक छोटे से लोकल कैफे में बैठे थे। रामानंद ने एक वाइन ऑर्डर किया। शराब लेकर कैफे का जो व्यक्ति आया, उसने ही एक बटन दबाकर टीवी भी चालू कर दी। यह एक रंगीन टीवी था, जो रामानंद और उनके बेटों के लिए दुर्लभ था। बकौल प्रेम सागर रंगीन टीवी देख बाप-बेटे दंग रह गए थे।
रामानंद सागर वाइन का ग्लास लिए कुछ विचार करते रहे। इसके बाद उन्होंने अचानक अपने बेटों के सामने घोषणा कि “मैं सिनेमा छोड़ रहा हूं। मेरे जीवन का मिशन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पुण्य कथा को मानव जाति तक पहुंचाना है; उसके बाद सोलह गुणों वाले कृष्ण और अंत में अनंत शक्ति वाली मां दुर्गा की कथा लोगों को दिखाउंगा।”
प्रेम अपनी किताब में लिखते हैं, “इंडस्ट्री के लोगों को लगा कि सागर परिवार का दिमाग खराब हो गया है। आखिरकार, हम एक सफल प्रोडक्शन हाउस थे और सिनेमा में हमारे लिए चीजें ठीक चल रही थीं, तो हम टीवी पर जाने के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं? मुकुट और मूंछ वाला सीरियल कौन देखेगा?”
नहीं मिला फाइनेंसर
इंडस्ट्री के लोगों के हतोत्साहित करने वाले बयान के बाद भी रामानंद सागर ने रामायण बनाने का विचार नहीं छोड़ा। उन्होंने घोषणा कर दी कि वह रामायण और श्री कृष्ण बना रहे हैं, जो वीडियो कैसेट में उपलब्ध होगा। अपने विशाल ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए रामानंद सागर ने बेटे प्रेम को धन जुटाने का काम सौंपा। उन्होंने अपने अमीर NRI दोस्तों का पता दिया और प्रेम को बिजनेस ट्रिप पर रवाना कर दिया।
प्रेम लिखते हैं कि “रामानंद सागर के ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में सुनकर उनके कई दोस्तों को हैरानी हुई। कुछ लोगों ने अपने सेक्रेटरी से कहकर प्रेम को दफ्तर से बाहर का रास्ता दिखा दिया। करीबी दोस्तों ने सलाह दी कि वह अपने पिता को ऐसा न करने के लिए समझाएं।” करीब एक महीने की यात्रा के बाद प्रेम सागर खाली हाथ लौटे। बकौल प्रेम रामानंद सागर की दृष्टि और रामायण के शून्य खरीदार थे।
काम कर गया ‘मुकुट और मूछ’
रामायण के लिए फाइनेंसर न मिलने पर Sagar Pictures Entertainment ने सोमदेव भट्ट की भारतीय क्लासिक बेताल पच्चीसी से टीवी सीरियल ‘विक्रम और बेताल’ बनाई। धारावाहिक को बच्चों और परिवारों के लिए डिज़ाइन किया गया था। विक्रम और बेताल हिट हुई और रामानंद सागर को विश्वास हो गया कि ‘मुकुट और मूछ’ काम करेगा।
विक्रम और बेताल की पूरी कास्ट को रामायण में लाया गया। राजा विक्रम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल को राम के रूप में लिया गया; विक्रम और बेताल के कई एपिसोड में राजकुमारी दीपिका चिखलिया सीता थीं; कई प्रसंगों में राजकुमार बने सुनील लहरी, लक्ष्मण बने; और दारा सिंह, जिन्होंने योद्धा वीरवर की भूमिका निभाई थी, अब शक्तिशाली हनुमान थे।
कांग्रेस, रामायण और भाजपा
प्रेम अपनी किताब में बताते हैं कि शुरुआत में भारत सरकार का थिंक टैंक रामायण और महाभारत को डीडी पर लाने के विचार के खिलाफ था। लेकिन डीडी के अधिकारियों ने तर्क दिया कि ये सब महाकाव्य हैं, जो हमारी संस्कृति को दर्शाते हैं। वाल्मीकि ने राम को एक मानव के रूप में माना, जो एक आदर्श पुरुष ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ हैं।
ऐसा लग रहा था कि सब कुछ ठीक चल रहा है। सरकार में सब इस विचार को लेकर एकमत नहीं थे। एक पक्ष ऐसा भी था, जिसे लग रहा था कि रामायण का सरकारी चैनल पर प्रसारण ठीक नहीं है। जाहिरा तौर पर सूचना और प्रसारण मंत्री वीएन गाडगिल को आपत्ति आई थी।
प्रेम लिखते हैं, “उन्होंने (वीएन गाडगिल) महसूस किया कि एक सार्वजनिक चैनल पर एक हिंदू पौराणिक धारावाहिक भाजपा के वोट बैंक को लाभ पहुंचाएगा। उन्हें डर था कि रामायण हिंदू समुदाय में गर्व की भावना पैदा करेगी और भाजपा के सत्ता में आने की संभावना को बढ़ाएगी। दूसरी ओर कानाफूसी थी कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने खुद सुझाव दिया था कि डीडी के अधिकारी रामायण और महाभारत जैसे महान भारतीय महाकाव्यों का प्रसारण करें, ये महाकाव्य हमारी सांस्कृतिक विरासत है और उन्हें गर्व के साथ और हर तरह से दिखाने की जरूरत है।”
गौरतलब है कि ये वही वक्त (1986) है जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी शाहबानो केस में अदालत का फैसला बदल बहुसंख्यक हिंदुओं को नाराज कर चुके थे। ऐसा कहा जाता है कि डैमेज कंट्रोल कर हिंदुओं को खुश करने के लिए राजीव गांधी ने साल 1986 में बाबरी मस्जिद के कपाट खुलवा दिया था। इसी बीच रामानंद सागर के रामायण का मामला भी आया, जिसे राजीव गांधी हाथ नहीं निकलने देना चाहते थे।
हालांकि मंडी हाउस स्थित डीडी मुख्यालय में बैठे कुछ अधिकारियों और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अब भी रामायण को डीडी पर दिखाए जाने के खिलाफ थे। प्रेम लिखते हैं कि “रामायण को प्रसारित न होने देने के लिए उसमें दोष और खामियां ढूंढने का काम शुरू हुआ। कई महीनों तक पापाजी चक्कर लगाते रहे। कभी-कभी वह मंडी हाउस या सचिवालय के गलियारों में कार्यालयों के बाहर घंटों इंतजार करते। चार पायलट एपिसोड को घटाकर एक कर दिया गया। और अंत में डीडी हाउस के एक चपरासी ने वीडियो कैसेट वापस सौंपते हुए आधिकारिक तौर पर पापाजी को बता दिया कि डीडी के बाबुओं को क्या लगता है। बाबुओं का मानना था कि रामानंद सागर को डायलॉग लिखना नहीं आता। उनकी भाषा पर पकड़ नहीं है। रामानंद सागर की हैसियत के एक लेखक के लिए, जिसने इतनी सारी किताबें और फिल्म की पटकथाएं लिखी हैं, यह सुनना अपमानजनक था।”
मंत्रालय से लेकर सचिवालय तक में हो गया फेरबदल
ऐसा लग रहा था कि रामानंद सागर के रामायण का प्रसारण नहीं हो पाएगा। तभी नौकरशाही में बड़ा फेरबदल हुआ। बकौल प्रेम, “मंत्रालय द्वारा लगाए गए सचिवों, संयुक्त सचिवों समेत तमाम रामायण विरोधी समूह को अन्य विभागों में स्थानांतरित कर दिया गया। वीएन गाडगिल को पहले ही नवंबर 1986 के आसपास एक नया मंत्रालय दे दिया गया था। अब सूचना और प्रसारण मंत्रालय या डीडी में उनकी कोई पहुंच नहीं थी। नए I&B मंत्री अजीत कुमार पांजा सिनेमा के अधिक अनुकूल थे।” इस तरह डीडी पर रामानंद सागर के रामायण का प्रसारण हुआ।