भारत में राष्ट्रपति देश का पहला नागरिक माना जाता है। इस पद पर विराजमान व्यक्ति के पास अनेक शक्तियां होती हैं। अगर राष्ट्रपति ठान लें तो सत्ताधारी राजनीतिक दल भी घुटनों पर आ सकते हैं, फांसी की सजा रुक सकती है, कानून ठंडे बस्ते में जा सकता है। बावजूद इसके इस संवैधानिक पद को रबर स्टैंप और सत्ता की कठपुतली आदि कहा जाता है।
ज्यादातर राष्ट्रपतियों का रिकॉर्ड भी रबर स्टैंप बने रहने का ही रहा है। चाहे वह फखरुद्दीन अली अहमद हों, जिन्होंने इंदिरा गांधी के कहने पर रात के 11 बजे आपातकाल की फाइल पर हस्ताक्षर कर दिया था या ज्ञानी जैल सिंह हों, जो राष्ट्रपति चुनाव के वक्त इंदिरा के कहने पर झाड़ू लगाने को तैयार थे। हालांकि भारत को कुछ ऐसे भी राष्ट्रपति मिले, जो कभी सरकार की गलत नीतियों पर उनसे भिड़ गए, तो कभी अपने मन की करने के लिए प्रधानमंत्री तक की सलाह को दरकिनार कर दिया था। आइए जानते हैं ऐसे ही राष्ट्रपतियों के किस्से जो प्रधानमंत्री से टकरा गए थे…
राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की एक न सुनी
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के बीच टकराव की शुरुआत नेहरू और राजेंद्र प्रसाद से ही हो गई थी। साल 1951 में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण का कार्य पूरा हो गया था। मंदिर के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भी बुलाया गया था। जब नेहरू को इसकी खबर मिली तो उन्होंने राष्ट्रपति से इस तरह के धार्मिक आयोजन में हिस्सा न लेने का आग्रह किया। लेकिन प्रसाद ने एक न सुनी और नेहरू को जवाब दिया, ”मैं अपने धर्म में विश्वास करता हूं और अपने आप को इससे अलग नहीं कर सकता।” नेहरू की आपत्ति के बावजूद राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद 11 मई 1951 को सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए।
जब शिक्षक रहे राधाकृष्णन ने नेहरू की लगाई क्लास
शिक्षाविद सर्वपल्ली राधाकृष्णन मई 1962 में राष्ट्रपति बने थे। साल 1962 में ही भारत-चीन युद्ध हुआ था। राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने चीन पर लापरवाही से भरोसा करने और हालत की अनदेखी करने के लिए नेहरू सरकार की जमकर क्लास लगाई थी। इतनी ही नहीं उन्होंने दबाव बनाकर रक्षामंत्री वीके मेनन को उनके पद से भी हटवा दिया था। नेहरू अपने चाणक्य के साथ ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहते थे लेकिन राष्ट्रपति के दबाव में आकर उन्हें यह करना पड़ा।
विदेशी शादी में जाने के लिए इंदिरा से भिड़ गए रेड्डी
आपातकाल के बाद 1977 में सत्ता में आयी जनता पार्टी ने नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति बनाया। यह पहले गैर कांग्रेसी राष्ट्रपति थे। इंदिरा और रेड्डी के बीच टकराव की स्थिति एक विदेशी शादी में जाने को लेकर बनी।
दरअसल रेड्डी प्रिंस चार्ल्स की शादी में जाना चाहते थे। उधर इंदिरा भी इस शादी में जाना चाहती थीं। अब एक ही विदेशी शादी में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों का शामिल होना कूटनीतिक रूप से सही नहीं होता। इंदिरा ने इस शादी में खुद जाने का फैसला किया, जिससे रेड्डी नाराज हो गए और उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार उन्हें नहीं भेजेगी तो वह निजी खर्च से जाएंगे। अंत में इंदिरा को मजबूर होना पड़ा।
पॉकेट वीटो से राजीव गांधी को दिया चकमा
जुलाई 1982 में ज्ञानी जैल सिंह को इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति बनाया था। उनका कार्यकाल 1987 तक रहा। इस बीच 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। राष्ट्रपति चुनाव के वक्त इंदिरा के प्रति अपनी वफादारी को साबित करने के लिए जैल सिंह ने कथित तौर पर कहा था कि मैडम कहेंगी तो झाड़ू भी लगाने को तैयार हूँ। हालांकि ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद जैल सिंह इंदिरा के खिलाफ हो गए थे।
इंदिरा की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। वह एक ऐसा बिल लेकर आए थे, जिससे सरकार को किसी की भी चिट्ठी पढ़ने का अधिकार मिल जाता। जैल सिंह इस बिल के खिलाफ थे। लेकिन राष्ट्रपति संसद में पारित बिल पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य होता है। जैल सिंह भी बाध्य थे, लेकिन उन्होंने एक युक्ति निकाली। संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति पारित बिल को पास करने के लिए बाधित तो है, लेकिन इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं थी। इसी लूप होल का फायदा उठाकर ज्ञानी जैल सिंह ने पोस्ट ऑफिस अमेंडमेंट बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसे राष्ट्रपति का पॉकेट वीटो कहा गया।
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