आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता झेल रहे श्रीलंका को संभालने के लिए एक बार फिर सरकार के गठन का प्रयास किया जा रहा है। गोटबाया राजपक्षे के देश छोड़कर भागने और अपने पद से इस्तीफा देने के बाद रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति का पद संभाला है। और प्रधानमंत्री के रूप में श्रीलंका के वरिष्ठ वामपंथी नेता दिनेश गुणावर्धने ने शपथ ली है।

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कौन हैं दिनेश गुणावर्धने?

गोटबाया-महिंदा सरकार में गृह मंत्री रह चुके दिनेश गुणावर्धने वामपंथी महाजन एकथ पेरामुना (MEP) पार्टी के नेता हैं। 73 वर्षीय गुणावर्धने श्रीलंका सरकार में विदेश और शिक्षा मंत्रालय भी संभाल चुके हैं। इनके पिता फिलिप गुणावर्धने और माता कुसुमा का भारत से गहरा जुड़ाव रहा है। दिनेश गुणावर्धने का जन्म 2 मार्च, 1949 को श्रीलंका के एक सम्मानित राजनीतिक परिवार में हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई कोलंबो से ही हुई।

बाद में बिजनेस की पढ़ाई के लिए वह नीदरलैंड गए। वहां से अमेरिका के ओरेगन विश्वविद्यालय पहुंचे, जहां वह छात्र आंदोलन में शामिल हुए। वियतनाम युद्ध के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। 1972 में जब उनके पिता फिलिप गुणावर्धने की मौत हुई तो वह श्रीलंका वापस लौटें। पिता की बनाई पार्टी महाजन एकथ पेरामुना में गुणावर्धने को 1974 में महासचिव बना दिया गया। उसके बाद से आज तक उनकी राजनीतिक यात्रा जारी है।

क्रांतिकारी पिता के बेटे हैं दिनेश गुणावर्धने

फिलिप गुणावर्धने की 50वीं पुण्यतिथि पर श्रीलंकाई मीडिया संस्थान ‘कोलंबो टेलीग्राफ’ ने उन्हें देश का प्रकाशस्तंभ बताया था। उन्हें अपने देश में सच्चाई और निष्पक्षता के लिए जाने जाते हैं। श्रीलंका में समाजवाद की नींव रखने वाले फिलिप गुणावर्धने 1920 के दशक में अर्थशास्त्र की पढ़ाई के लिए अमेरिका गए थे। वहीं उन्होंने उग्र वामपंथी का रास्ता चुना। पढ़ाई के दौरान ही फिलिप साम्राज्यवाद विरोधी ग्रुप के हिस्सा बन गए थे।

यूके पहुंचने के बाद उन्होंने राजनीति में अधिक बढ़ चढ़कर भाग लेना शुरू किया। यहीं उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण और कृष्ण मेनन जैसे नेताओं से हुई। इसके अलावा केन्या के जोमो केनिटा, मैक्सिको के जोस वास्कोनसेलोस और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त समकालीनों से भी घनिष्ठता रही।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लिया हिस्सा

फिलिप गुणावर्धने ने साल 1935 में ‘सामा समाज पार्टी’ (LSSP) की स्थापना की थी। यह एक वामपंथी दल था। भारत की तरह तब सीलोन (श्रीलंका का पुराना नाम) भी अंग्रेजों का गुलाम था। पार्टी की क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण साल 1940 में LSSP पर प्रतिबंध लगाकर फिलिप के साथ ही पार्टी अन्य नेताओं और उनके विद्रोही भाई रॉबर्ट गुणावर्धने भी कैद कर लिया गया था।

1942 में जेल से छूटने के बाद फिलिप अपनी पत्नी के साथ भारत भाग आए। यहां उन्होंने अपना नाम बदलकर गुरुसामी कर लिया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम शामिल हो गए। हालांकि 1943 में दोनों को ब्रिटिश खुफिया विभाग ने पकड़ लिया। कुछ समय के लिए उन्हें बॉम्बे के आर्थर रोड जेल में रखा गया और बाद में श्रीलंका वापस भेज दिया गया। वहां उन्हें 6 माह की जेल हुई। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नेहरू अपने कोलंबो दौरे के वक्त फिलिप के घर भी गए थे। और उनके योगदान के लिए व्यक्तिगत रूप से परिवार का धन्यवाद किया था।

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First published on: 22-07-2022 at 21:02 IST