हिंद महासागर में भारत का पड़ोसी श्रीलंका साल 1948 में अंग्रेजों की डेढ़ सौ साल की गुलामी से आजाद हुआ था। आज यह देश अपने आधुनिक इतिहास का सबसे गंभीर आर्थिक संकट झेल रहा है। मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही जनता पिछले कई महीनों से आंदोलनरत थी। अब लोगों ने राष्ट्रपति भवन में डेरा डाल दिया है। कभी जो सुविधाएं सत्ता प्रतिष्ठान के लोगों के लिए आरक्षित थीं, आज उनका लुफ्त श्रीलंका की आम जनता उठा रही है। कुल मिलाकर देश से शासन-प्रशासन विलुप्त हो चुका है। माहौल अराजक हो चुका है। आंदोलनकारी एक स्वर में ‘गो होम गोटा’ के नारे लगा रहे हैं और राजपक्षे परिवार को सत्ता से बाहर होने का आदेश दे रहे हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य के पर्याय इस द्वीप को खस्ताहाल में पहुंचाने के लिए राजपक्षे परिवार को जिम्मेदार माना जा रहा है। अप्रैल 2022 में जब सरकार के खिलाफ जनता उग्र हुई तो तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और उनके भाई राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के अलावा सरकार के सभी 26 मंत्रियों ने इस्तीफा दिया था। इनमें से तीन मंत्री राजपक्षे परिवार से थे। महिंदा राजपक्षे ने अपने भाई चमल राजपक्षे को सिंचाई मंत्री बना रखा था, दूसरे भाई बासिल राजपक्षे को वित्त मंत्री बनाया था और अपने बेटे नमल राजपक्षे को खेल मंत्रालय दे रखा था।
गोटाबाया और महिंदा के नेतृत्व में जब सरकार चल रही थी, तब राजपक्षे परिवार के सदस्यों ने 11 मंत्रालयों का प्रभार लिया हुआ था। परिवार के अन्य सदस्यों को पीएम और राष्ट्रपति सचिवालय में सेट कर दिया गया था।
2010-15 में महिंदा राजपक्षे ने जब राष्ट्रपति के तौर पर दूसरा कार्यकाल संभाला था, तब कैबिनेट के अलावा, सरकारी पदों पर राजपक्षे परिवार के 40 से अधिक सदस्य बैठाए गए थे। 2015 का राष्ट्रपति चुनाव महिंदा हार गए थे। तब मैत्रीपाला सिरिसेना राष्ट्रपति बने थे। उस वक्त महिंदा की हार के लिए भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) को दोषी बताया गया था। चुनाव से ठीक पहले दिसंबर 2014 में रॉ के कोलंबो स्टेशन चीफ को निष्कासित कर दिया गया था। 28 दिसंबर 2014 को श्रीलंका के अखबार ‘संडे टाइम्स’ ने लिखा था कि विरोधी दलों के साथ संबंधों के कारण रॉ के स्टेशन चीफ को नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
खैर, 2015 में सत्ता से बाहर होते ही राजपक्षे परिवार के कई सदस्यों को वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में पूछताछ का सामना करना पड़ा था। महिंदा के भाई बेसिल, जो एक अमेरिकी नागरिक भी है, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। बेसिल की पत्नी और सबसे बड़ी बेटी से भी पूछताछ की गई थी। हालांकि 2018 के बाद राजपक्षे परिवार के सत्ता का सूरज फिर से उरूज पर पहुंचा और तमाम मुकदमे दब गएं।
श्रीलंका की राजनीति और राजपक्षे परिवार : दक्षिण एशिया में किसी दूसरे राजनीतिक वंश ने इतने आत्मविश्वास से भाई-भतीजावाद नहीं किया है। राजपक्षे परिवार हंबनटोटा जिले का रहने वाला है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके भाई चमल, पूर्व पीएम महिंदा और बसिल परिवार के तीसरी पीढ़ी के नेता हैं। चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व महिंदा और चमल के बेटे नमल, योसिता और शशिंद्र कर रहे हैं। नमल मई 2022 तक प्रधानमंत्री रहे महिंदा राजपक्षे के बेटे हैं। 3 अप्रैल तक यह युवा और खेल मंत्री हुआ करते थे। महिंदा के दूसरे बेटे योसिता पीएम के चीफ ऑफ स्टाफ थे। चमल के बेटे शशिंद्र राजपक्षे उच्च तकनीक कृषि के राज्य मंत्री थे।
शुरुआत : आजादी के बाद साल 1948 में श्रीलंका की संसद में दो राजपक्षे थे। उनमें से एक गोटबाया और महिंदा के पिता थे। श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (SFLP) के संस्थापक सदस्य डॉन एल्विन राजपक्षे दो बार के सांसद थे। उस समय पार्टी एक अन्य संस्थापक सदस्य एस डब्ल्यू आर डी बनादरनायके के हाथों में थी, जो कोलंबो के बाहरी इलाके के एक धनी परिवार के वंशज थे। 1959 में उनकी हत्या के बाद, उनकी पत्नी सिरिमावो ने कार्यभार संभाला।
जब चंद्रिका कुमारतुंगा को 1994 में सिरीमावो भंडारनायके (यह विश्व की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं) से एसएलएफपी का नेतृत्व विरासत में मिला, तब महिंदा राजपक्षे राजनीति में दो दशक से अधिक समय बिता चुके थे। लेकिन वह कुमारतुंगा के नेतृत्व के लिए कोई चुनौती नहीं थे। जब चंद्रिका देश की कमान संभाल रही थी, तब महिंदा कैबिनेट मंत्री थे। परिवार के अन्य सदस्य भी राजनीति में सक्रिय थे, विशेष रूप से बड़े भाई चमल और चचेरे भाई निरुपमा।
जब मिली देश की कमान : कुमारतुंगा के राजनीति से हटने के बाद 2005 के राष्ट्रपति चुनाव में महिंदा की उम्मीदवारी आई। 2004 से 2005 तक महिंदा प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद 2005 से 2015 के बीच करीब एक दशक तक देश के राष्ट्रपति रहे। इस दौरान 2009 में राष्ट्रपति रहते हुए महिंदा ने तमिल विद्रोही गुट लिट्टे को खत्म करने के नाम पर आम तमिल नागरिकों पर भी जमकर बर्बरता करवाई। तब गोटबाया रक्षा मंत्री हुआ करते थे। चामल सदन के स्पीकर थे और बासिल को मंत्री बनाया गया था। कई रिपोर्ट में दावा किया गया कि गोटबाया ने करीब 40,000 तमिल नागरिकों को नरसंहार कराया था।
इस घटना के बाद यह परिवार श्रीलंका की बहुसंख्या आबादी को वहां के अल्पसंख्यकों का डर दिखाकर बढ़ता रहा। इस दौरान परिवार पर कई बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे। जनता को शांत रखने के लिए उन्होंने अल्पसंख्यकों के डर को और अधिक बढ़ा चढ़ाकर दिखाया, साथ ही सिंहल-बौद्धों का सैन्यीकरण किया। जिन पत्रकारों ने आवाज उठाई वो गायब कर दिए गए। संडे लीडर के संपादक लसंथा विक्रमतुंगे की हत्या के बाद पत्रकारों को अपनी जान का डर अधिक सताने लगा।
इस बीच 2015 में महिंदा के हाथ से सत्ता निकल गई लेकिन 2018 के उन्होंने वापसी कर ली। गोटाबाया ने 2019 का राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया। महिंदा ने 2020 के मध्य में दो-तिहाई बहुमत के साथ संसदीय चुनाव जीत लिया। लेकिन खराब नीति, भ्रष्टाचार और इन सब को छिपाने के लिए हुई साम्प्रदायिक राजनीति ने अर्थव्यवस्था को तोड़ दिया। जनता के आक्रोश से घबराए प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने मई 2022 में इस्तीफा दिया।
तब श्रीलंका के लोगों को आश्वासन दिया गया था कि अब किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा, जो राजपक्षे परिवार से न हो। ऐसा हुआ भी दूसरे दल के रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री बनाया गया। हालांकि ये श्रीलंका की जनता के साथ धोखा था क्योंकि विक्रमसिंघे राजपक्षे परिवार के बहुत ही खास व्यक्ति हैं। यानी राजपक्षे परिवार रीमोट से सत्ता चलाने की कोशिश कर रहा था, जो असफल रहा।