इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को एक जानेमाने कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था, जो इलाहाबाद में बस गया था। उनके दादा मोतीलाल नेहरू एक चर्चित वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे। वह एक संयुक्त परिवार में पली बढ़ीं। उनके पिता जवाहरलाल नेहरू, मां कमला, और उनकी बुआ विजया लक्ष्मी पंडित समेत सभी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल थे।

इंदिरा गांधी बचपन में अपने दादा मोतीलाल नेहरू की लाडली थीं। वह जहां जाते थे, अपनी पोती को साथ ले जाते थे। साल 1921 की बात है। तब इंदिरा गांधी चार साल की थीं। उसी दौरान मोतीलाल नेहरू पर सिविल नाफरमानी का केस चल रहा था। स्वतंत्रता सेनानी मोतीलाल नेहरू कोर्ट रूम में अपनी पोती को गोद में लेकर बैठे थे।

गुड़िया के लिए हुई भयंकर लड़ाई

पत्रकार निधि शर्मा ने अपनी नई किताब, ‘शी द लीडर: वीमेन इन इंडियन पॉलिटिक्स’ में बताया है कि कैसे बचपन में इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे एक गुड़िया के लिए आपस में भिड़ गए थे। यह साल 1922 की बात है। इंदिरा गांधी अपने दादा के साथ उनके एक दोस्त से मिलने गई थीं। वह दोस्त बंगाल के स्वतंत्रता सेनानी ‘देशबंधु’ चितरंजन दास थे और उन दिनों इलाहाबाद आए हुए थे।

दास के साथ उनका पोता सिद्धार्थ शंकर रे भी आए थे। हालांकि मोतीलाल नेहरू को यह याद नहीं था कि दास के साथ आया बच्चा, लड़का है या लड़की। उन्होंने बच्चे को उपहार स्वरूप एक गुड़िया देने का फैसला किया। सिद्धार्थ शंकर रे इंदिरा गांधी से दो साल छोटा थे। मोतीलाल नेहरू ने जब उन्हें गुड़िया दिया, तो यह इंदिरा गांधी को बिल्कुल पसंद नहीं आया।

उन्होंने सिद्धार्थ शंकर रे से गुड़िया छीन लिया। कुछ ही मिनटों में दोनों गुड़िया को लेकर झगड़ने लगे। गुड़िया टुकड़ों में बिखर गई, जिसका हाथ इंदिरा गांधी के पास और पैर दास के पोते के पास था। शरीर लापता हो गया था।

बाल चरखा संघ की आयोजक थीं इंदिरा

एक बच्चे के रूप में इंदिरा महलनुमा आनंद भवन के बैठक कक्ष में सविनय अवज्ञा और कांग्रेस कार्य समिति की गुप्त बैठकों पर बातचीत से घिरी रहती थीं। निधि शर्मा अपनी किताब में बताती हैं कि इंदिरा गांधी का अपनी गुड़िया के साथ जो खेल खेलती थी, उसके केंद्र में भी स्वतंत्रता संग्राम ही होता था। वह झाँसी की रानी और जोन ऑफ आर्क होने का नाटक करती थीं। जब वह लगभग ग्यारह वर्ष की थीं, तो उनके दादाजी ने उन्हें एक छोटा चरखा दिया था। जल्द ही वह एक बाल चरखा संघ का आयोजन करने लगी थीं जहां छोटे बच्चे कताई और बुनाई सीखते थे। परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी उनके लिए आम बात थी।

आपातकाल, इंदिरा और सिद्धार्थ शंकर रे

गुड़िया के लिए लड़ने वाली लड़की बाद में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी। गुड़िया वाली घटना के लगभग तैंतीस साल बाद, सिद्धार्थ शंकर रे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। उन्हें इंदिरा के करीबी विश्वासपात्र के रूप में जाना गया। ऐसा कहा जाता है कि 1975 में आपातकाल लागू करने का विचार जिस व्यक्ति का था वह इंदिरा गांधी नहीं बल्कि सिद्धार्थ शंकर रे थे।

इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन ने इंडियन एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम के दौरान आपातकाल से जुड़े कई सवालों के जवाब दिया था। आरके धवन के अनुसार, सिद्धार्थ शंकर रे ने ही इंदिरा गांधी को आपातकाल के बारे में विस्तार से बताया था। साथ ही इस बात के लिए भी आश्वस्त किया था कि यह भारत के संविधान के कानूनों के अनुसार किया जा सकता है। इंदिरा गांधी को समझाने से पहले उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति से भी बात की थी। इस संबंध में इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से बात करने गए थे।