ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की एक मात्र महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है। गुरुवार (21 दिसंबर) को नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान साक्षी ने रोते हुए अपने फैसले की घोषणा की और अपने कुश्ती के जूतों को टेबल पर रख दिया।

तीन-चार साल की उम्र में जाने लगी थीं अखाड़ा

हरियाणा के रोहतक जिले के मोखरा गांव में कुश्ती खेल नहीं, एक जुनून है, एक इमोशन है। यही मोखरा साक्षी मलिक का पैतृक गांव है। साक्षी का जन्म 3 सितंबर, 1992 को हुआ था। गांव में एक 60 साल पुराना शंकर अखाड़ा है, जिसकी शुरुआत मदिया पहलवान ने 1963 में किया था। 89 वर्षीय मदिया गांव में गुरुजी (कोच) के नाम से जाने जाते हैं।

मदिया पहलवान की देखरेख में शंकर अखाड़े से भारत के कुछ सर्वश्रेष्ठ पहलवानों निकले है। दिलचस्प यह है कि इस अखाड़े से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले करीब ग्यारह जवान कारगिल युद्ध में देश के लिए लड़े थे। साक्षी जब करीब 3-4 साल की थीं, तो अन्य बच्चों के साथ शंकर अखाड़े में जाती थी। वह शायद कुश्ती से उनका पहला जुड़ाव था।

साक्षी ने बचपन में कबड्डी और क्रिकेट खेलने की कोशिश की। लेकिन कुश्ती में लगातार जीत मिलने की वजह से वही उनका पसंदीदा खेल बन गया। हालांकि तब उनके माता-पिता ने यह सोचा भी नहीं था कि उनकी बेटी एक दिन ओलंपिक पदक जीतने वाली देश की पहली महिला पहलवान बनेंगी।

Old photographs of wrestler Sakshi Malik
साक्षी मलिक की पुरानी तस्वीर (Express photo by Jaipal Singh)

दादा भी थे पहलवान, पिता ने किया बस कंडक्टर का काम

साक्षी के दादा बदलू राम भी अपने गांव के प्रमुख पहलवान थे। शायद उनका भी प्रभाव था जिसने साक्षी को कुश्ती में आने के लिए प्रेरित किया। साक्षी के पिता सुखबीर मलिक दिल्ली परिवहन निगम में बस कंडक्टर थे और मां ने रोहतक में एक लोकल हेल्थ क्लिनिक में सुपरवाइजर का काम किया है।

Old photographs of wrestler Sakshi Malik
मां की गोद में साक्षी मलिक (Express photo by Jaipal Singh)

हवाई जहाज में उड़ना था सपना

बचपन में हवाई जहाज में उड़ने की लालसा से लेकर खेल के सबसे बड़े मंच ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने तक सफर किसी परी-कथा की तरह है। साक्षी ने एक साक्षात्कार में पीटीआई से कहा था, “मुझे नहीं पता था कि ओलंपिक क्या होता है। मैं हवाई जहाज में बैठने के लिए एक खिलाड़ी बनना चाहती थी। मुझे पता था कि जो भारत की तरफ से खेलता है, वह विमान में चढ़ सकता है और उड़ सकता है।”

दिलचस्प बात यह है कि साक्षी के बड़े भाई का नाम क्रिकेट आइकन सचिन तेंदुलकर के नाम पर रखा गया था। सचिन, साक्षी से दो साल बड़े हैं। वह अक्सर साक्षी को क्रिकेट खेलने के लिए कहते थे, लेकिन वह ज्यादातर समय मना कर देतीं और आसमान में ऊंची उड़ान भर रहे हवाई जहाजों को देखती रहती थीं। उनके सपने को पूरा करने के लिए परिवार ने हमेशा समर्थन किया।

Padma Shri Award
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों पद्मश्री पुरस्कार ग्रहण करतीं साक्षी मलिक ( Express Photo by Renuka Puri. 13.04.2017)

“गीता दीदी ने दिखाया रास्ता”

साक्षी मलिक खुद मानती हैं कि उनपर फोगाट बहनों की छाया रही। रियो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “बुल्गारिया और स्पेन की तरह, वहां सभी फोगाट थे। मैं उनके बीच एकमात्र मलिक थी। लेकिन मुझे इससे कोई समस्या नहीं थी… वह गीता दीदी ही थीं जिन्होंने 2012 में हमें रास्ता दिखाया था।”

दरअसल, साल 2012 में गीता फोगाट लंदन में आयोजित समर ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बनी थीं। हालांकि वह पदक जीतने में कामयाब नहीं हुई थीं। साक्षी कहती हैं, “गीता दीदी ने भारत के लिए पदक जीते और मुझे प्रेरणा मिली और धीरे-धीरे मैंने जीतना शुरू कर दिया।”

साक्षी को पहली अंतरराष्ट्रीय सफलता तब मिली जब उन्होंने विश्व जूनियर चैंपियनशिप-2010 में 59 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीता। हालांकि इससे पहले वह 17 साल की उम्र में एशियाई जूनियर विश्व चैंपियनशिप-2009 में 59 किग्रा फ्रीस्टाइल में रजत पदक जीता चुकी थी।

मौज-मस्ती नहीं, नींद लेना है पसंद

साक्षी को फिल्म देखने जाना या दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उनके लिए सोना और घर में शांति से समय बिताना पसंद है। वह कहती हैं, “मैं सिर्फ एक शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहती हूं। मुझे घूमना-फिरना या फिल्मों के लिए बाहर जाना पसंद नहीं है। मैं शांति से रहना चाहती हूं। मैंने यह सब अपने लंबे संघर्ष की बदौलत हासिल किया है। मुझे बस शांति की जरूरत है। यही मेरे लिए आनंददायक है।”

साक्षी मलिक ने एक पहलवान से ही शादी की है। उनके पति का नाम सत्यव्रत कादियान है। कादियान ने साल 2010 के युवा ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीता था। वह 2016 के राष्ट्रमंडल चैंपियन भी हैं। सत्यव्रत कादियान रोहतक में रहते हैं।

कई महीनों में कभी एक बार खा पाती हैं आलू पराठा

साक्षी अपनी ट्रेनिंग प्रति बहुत अनुशासित रही हैं। वह वार्म-अप के दौरान प्रतिदिन 500 सिट-अप करती है। कुश्ती की मैट पर उन्हें अपनी पकड़ और चाल की घंटों प्रैक्टिस करते देखा गया है।

साक्षी की डाइट पर बहुत स्ट्रिक्ट है। उनका खाना कार्ब-मुक्त होती है। उनके आहार में मुख्य रूप से दूध, बादाम, सोयाबीन और दालें शामिल हैं। वह कई महीनों में कभी एक बार अपने पसंदीदा भोजन आलू परांठे का आनंद ले पाती हैं।

करियर

वर्षप्रतियोगितापदक
2022राष्ट्रमंडल खेल स्वर्ण पदक
2018राष्ट्रमंडल खेलकांस्य पदक
2016रियो ओलंपिककांस्य पदक
2014राष्ट्रमंडल खेलरजत पदक
2013राष्ट्रमंडल चैंपियनशिपकांस्य पदक
2010विश्व जूनियर चैंपियनशिपकांस्य पदक
2009एशियाई जूनियर विश्व चैंपियनशिपरजत पदक
ओलंपिक की वेबसाइट के मुताबिक, साक्षी मलिक ने अपने करियर में सीनियर एशियाई चैंपियनशिप में छह पदक जीते हैं। इन छह पदकों में से तीन रजत और तीन कांस्य हैं। (सोर्स- Olympics.Com)
रियो ओलंपिक से पदक जीतकर वापस आने के बाद अपनी मां के साथ साक्षी मलिक (Express photo by Jasbir Malhi)

क्यों किया संन्यास का ऐलान?

रोहतक से रियो ओलंपिक तक का सफर तय करने वाली साक्षी ने संन्यास का ऐलान संजय सिंह के कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष चुने जाने के तुरंत बाद किया। संजय सिंह पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के करीबी माने जाते हैं।

बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। भाजपा सांसद की गिरफ्तारी की मांग करते हुए साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया समेत तमाम खिलाड़ियों ने कई सप्ताहों तक दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था।

ऐसे में जब बृजभूषण शरण सिंह के करीबी की जीत हुई तो साक्षी ने कहा, “अगर प्रेसिडेंट बृजभूषण जैसा आदमी ही रहता है, जो उसका सहयोगी है, उसका बिजनेस पार्टनर है। वो अगर इस फेडरेशन में रहेगा तो मैं अपनी कुश्ती को त्यागती हूं। मैं आज के बाद आपको कभी भी वहां नहीं दिखूंगी।”