क्या करीब 30 साल बाद शिरोमणि अकाली दल की कमान बादल परिवार से बाहर किसी दूसरे नेता के हाथों में जा सकती है? यह सवाल पंजाब में हुए एक बड़े सियासी घटनाक्रम के बाद उठा है। घटनाक्रम यह है कि शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ खुली बगावत हुई है।
अकाली दल के पुराने पदाधिकारियों ने सुखबीर बादल से इस्तीफा देने की मांग की है और इस संबंध में बाकायदा प्रस्ताव भी पारित किया गया है।
इसके पीछे वजह लोकसभा चुनाव में अकाली दल के खराब प्रदर्शन को बताया गया है। अकाली दल इस लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर सका है।
लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद से ही अकाली दल के अंदर लगातार बवाल चल रहा है।

विधायक दल के नेता मनप्रीत सिंह अयाली ने चुनाव नतीजों के बाद बागी तेवर दिखाए थे और कहा था कि जब तक पार्टी इकबाल सिंह झुंडा कमेटी की सिफारिशों को लागू नहीं करती तब तक वह पार्टी के कार्यक्रमों में भाग नहीं लेंगे। झुंडा कमेटी ने पार्टी में सुधार के लिए कुछ सिफारिशें दी थी लेकिन इन पर अमल नहीं किया गया।
इधर सुखबीर उधर बागी नेता जुटे
मंगलवार को अकाली दल के अंदर दो बैठकें हुईं। अकाली दल के बागी नेताओं ने जालंधर में बैठक की और इस बैठक में पार्टी के कुछ जिलों के प्रधान भी शामिल हुए। जबकि दूसरी बैठक चंडीगढ़ में पार्टी के प्रधान सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्षता में हुई। यह बैठक लोकसभा चुनाव में अकाली दल के प्रदर्शन की समीक्षा को लेकर रखी गई थी।
शिरोमणि अकाली दल बचाओ आंदोलन की होगी शुरुआत
जालंधर में हुई बैठक के बाद बागी नेताओं ने ऐलान किया कि 1 जुलाई से शिरोमणि अकाली दल बचाओ आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। जालंधर के गांव वडाला में आयोजित बागी नेताओं की इस बैठक में पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, एसजीपीसी की पूर्व अध्यक्ष बीबी जगीर कौर, पूर्व मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा, पूर्व विधायक सिकंदर सिंह मलूका और सुरजीत सिंह रखड़ा जैसे बड़े नेता मौजूद रहे।
बागी नेताओं ने मांग की कि पार्टी के प्रधान सुखबीर सिंह बादल को पार्टी के कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझते हुए त्याग की भावना दिखानी चाहिए और किसी ऐसे नेता के हाथ में पार्टी की कमान सौंपनी चाहिए जो अकाली दल को मजबूत कर सके और धर्म और राजनीति के बीच संतुलन भी कायम कर सके।
अकाली दल के बागी नेताओं की बैठक में पार्टी का प्रधान पद संत समाज से जुड़े किसी बड़े चेहरे को देने पर भी विचार किया गया है।

शिअद बोला- बीजेपी के द्वारा प्रायोजित हैं बागी नेता
दूसरी ओर, चंडीगढ़ में हुई शिअद की बैठक में पार्टी के प्रधान सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में भरोसा जताया गया। अकाली दल ने कहा है कि यह सभी बागी नेता निराश हैं और बीजेपी के द्वारा प्रायोजित हैं। पार्टी ने कहा कि वे अकाली दल को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। सुखबीर सिंह बादल ने बैठक में कहा कि उन्होंने सभी को सम्मान दिया और पार्टी के हित से ऊपर उनके लिए कुछ भी नहीं है उनका अपना परिवार भी पार्टी के बाद है।
कब बना अकाली दल
14 दिसंबर, 1920 को एक शिअद का गठन किया गया था। इसके पीछे उद्देश्य यह बताया गया था कि गुरुद्वारों को ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त महंतों (पुजारियों) के नियंत्रण से मुक्त कराया जाएगा। शिअद के गठन से एक महीना पहले 15 नवंबर को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) का गठन हुआ था।
एसजीपीसी के पूर्व सचिव दलमेघ सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि ननकाना साहिब में मत्था टेकते समय एक डिप्टी कमिश्नर की बेटी के साथ छेड़छाड़ की घटना हुई थी और इस वजह से लोगों में गुस्सा था। तब यह मांग उठी थी कि गुरुद्वारों को महंतों से मुक्त कराया जाना चाहिए।
शिअद ने इसके खिलाफ संघर्ष छेड़ा और यह चार साल तक चला। इस दौरान महंतों और ब्रिटिश प्रशासन के हमलों में 4,000 लोगों की मौत हुई थी। आखिरकार सिख गुरुद्वारा एक्ट 1925 बनाया गया और सभी गुरुद्वारे एसजीपीसी के नियंत्रण में आ गए।
अकाली दल ने देश की आजादी से पहले कांग्रेस के साथ भी गठबंधन किया था। पूर्व अकाली नेता मास्टर तारा सिंह की पोती किरनजोत कौर ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि शिअद के नेता मास्टर तारा सिंह की वजह से ही बंटवारे के दौरान पंजाब के आधे हिस्से को पाकिस्तान में जाने से रोका गया था।

पंजाबी सूबा आंदोलन
दिसंबर, 1953 में जब भारत सरकार द्वारा राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया तो अकाली दल ने अलग पंजाबी सूबा बनाने की मांग उठाई। 1956 में संत फतेह सिंह के नेतृत्व में अकाली दल ने पंजाबी सूबा आंदोलन शुरू किया, जिसमें हजारों कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दी।
अकाली दल ने 1962 और 1965 की लड़ाई के दौरान पंजाबी सूबा आंदोलन को रोक दिया था और युद्ध में भाग लिया था। एक लंबे संघर्ष के बाद केंद्र की गुलजारी लाल नंदा सरकार को झुकना पड़ा और 1 नवंबर, 1966 को पंजाब अलग राज्य बना।
अकाली दल को टूट का शिकार भी होना पड़ा और 90 के दशक में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में नरमपंथी विचारधारा वाले कई नेता एक तरफ आ गए जबकि कट्टरपंथी नेताओं ने अकाली दल (अमृतसर) नाम का दल बना लिया।

1995 में सरदार प्रकाश सिंह बादल अकाली दल के प्रधान बने और 2008 तक उन्होंने ही यह पद संभाला। 2008 से उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल अकाली दल के प्रधान का पद संभाल रहे हैं।
अकाली दल के अब तक रहे अध्यक्ष
अध्यक्ष का नाम | |
1 | सरमुख सिंह झबल |
2 | खड़क सिंह |
3 | मास्टर तारा सिंह |
4 | गोपाल सिंह कौमी |
5 | तारा सिंह ठेठर |
6 | तेजा सिंह अकरपुरी |
7 | बाबू लाभ सिंह |
8 | उधम सिंह नागोके |
9 | ज्ञानी करतार सिंह |
10 | प्रीतम सिंह गोजराँ (गुजराँ संगरूर) |
11 | हुकम सिंह |
12 | फ़तेह सिंह |
13 | अचर सिंह |
14 | भूपिंदर सिंह |
15 | मोहन सिंह तूर |
16 | जगदेव सिंह तलवंडी |
17 | हरचंद सिंह लोंगोवाल |
18 | सुरजीत सिंह बरनाला |
19 | प्रकाश सिंह बादल |
20 | सुखबीर सिंह बादल |
अकेला रह गया अकाली दल
पंजाब में 1996 से लेकर 2019 तक शिअद और भाजपा मिलकर विधानसभा के चुनाव लड़ते रहे। इन दोनों दलों ने 2007 से 2017 तक पंजाब में मिलकर सरकार भी चलाई लेकिन कृषि कानूनों के मुद्दे पर शिअद ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया। इसके बाद शिअद ने 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन किया लेकिन उसे इसका कोई फायदा नहीं मिला। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले बीजेपी का वोट शेयर दोगुना हो गया है।
गिरता गया अकाली दल का वोट शेयर
साल | अकाली दल को मिले वोट (प्रतिशत में) |
2012 विधानसभा चुनाव | 34.73% |
2014 लोकसभा चुनाव | 26.4% |
2017 विधानसभा चुनाव | 25.4% |
2019 लोकसभा चुनाव | 27.45% |
2022 विधानसभा चुनाव | 18.38% |
2024 लोकसभा चुनाव | 13.42% |
बीजेपी का वोट शेयर हुआ दोगुना
साल | बीजेपी को मिले वोट (प्रतिशत में) |
2019 लोकसभा चुनाव | 9.63% |
2022 विधानसभा चुनाव | 6.60% |
2024 लोकसभा चुनाव | 18.56% |
अकाली दल ने इस बार लोकसभा चुनाव सभी 13 सीटों पर पूरी ताकत के साथ लड़ा। लेकिन उसे सिर्फ बठिंडा सीट पर ही जीत मिली। बठिंडा सीट से सुखबीर सिंह बादल की पत्नी और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल चुनाव जीती हैं। लेकिन यहां पर भी अकाली दल का वोट शेयर लगातार गिरता जा रहा है।

सुखबीर के साथ खड़ी है पार्टी: हरसिमरत
अकाली दल में शुरू हुए इस विद्रोह को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल का कहना है कि पार्टी पूरी तरह एकजुट है और सुखबीर सिंह बादल के साथ खड़ी है। उन्होंने कहा कि बीजेपी के कुछ पिट्ठू अकाली दल को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं और वे वैसा ही करना चाहते हैं जैसा उन्होंने महाराष्ट्र में किया था।” उन्होंने कहा कि 117 नेताओं में से केवल 5 नेता सुखबीर बादल के खिलाफ हैं जबकि 112 नेता पार्टी और सुखबीर बादल के साथ खड़े हैं।
सुखबीर बादल के सामने चुनौतियों का अंबार
पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जिस तरह का प्रदर्शन अकाली दल का रहा है उसके बाद निश्चित रूप से सुखबीर बादल के सामने बड़ा सवाल यह है कि क्या वह फिर पार्टी को खड़ा कर पाएंगे।
इस लोकसभा चुनाव में सुखबीर सिंह बादल ने पूरी ताकत लगाई लेकिन 2019 में वह जिस फिरोजपुर सीट से चुनाव जीते थे, वहां भी इस बार अकाली दल को जीत नहीं दिला सके। ऐसे वक्त में जब अकाली दल बेहद खराब दौर से गुजर रहा है और पार्टी के बड़े नेताओं ने खुलकर बगावत कर दी है तो देखना होगा कि सुखबीर सिंह बादल इन चुनौतियों से किस तरह निपटेंगे?