ऋषिका सिंह

द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK) नेता और तमिलनाडु के युवा कल्याण मंत्री उदयनिधि स्टालिन द्वारा ‘सनातन धर्म’ को लेकर दिए बयान से राजनीतिक विवाद पैदा हो गया है। उदयनिधि ने एक सम्मेलन में कहा था, “सनातन धर्म मलेरिया, डेंगू की तरह है जिसे मिटाना जरूरी है।” भाजपा का आरोप है, “अब यह स्पष्ट हो गया है कि विपक्षी गठबंधन INDIA का ‘प्राथमिक एजेंडा’ हिंदू धर्म का ‘पूर्ण उन्मूलन’ है। डीएमके INDIA गठबंधन का हिस्सा है।  

सनातन का मतलब क्या होता है?

सनातन मतलब शाश्वत अर्थात जिसे बदला नहीं जा सकता; जिस पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकताहै। उदयनिधि, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे हैं। उन्होंने शनिवार (2 सितंबर) को तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स एंड आर्टिस्ट एसोसिएशन की एक बैठक में कहा कि सनातन ने लोगों को जाति के आधार पर बांटा।

उदयनिधि ने बाद में एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट किया: “मैं किसी भी मंच पर पेरियार और आंबेडकर के वो लेख प्रस्तुत करने के लिए तैयार हूं, जिसमें उन्होंने सनातन धर्म और समाज पर इसके नकारात्मक प्रभाव का गहन शोध किया।”

DMK और पेरियार के विचार

तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी DMK की जड़ें ईवी रामास्वामी ‘पेरियार’ द्वारा शुरू किए गए आत्म-सम्मान आंदोलन से जुड़ी हैं। 20वीं सदी की शुरुआती में इस आंदोलन ने जाति और धर्म का खुलकर विरोध किया और खुद को सामाजिक बुराइयों के खिलाफ एक तर्कवादी आंदोलन के रूप में स्थापित किया। वर्षों से उस आंदोलन के आदर्शों राज्य की राजनीति को प्रभावित किया है। पेरियार के आंदोलन की छाप DMK और AIADMK दोनों पर दिखती है।

आत्मसम्मान आंदोलन और तमिलनाडु के राजनीतिक दल

आत्मसम्मान आंदोलन (1925) के संस्थापक पेरियार जाति और धर्म के घोर विरोधी थे। उन्होंने जाति और लिंग से संबंधित प्रमुख सामाजिक सुधारों की वकालत की और तमिल राष्ट्र की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान पर जोर देते हुए हिंदी के वर्चस्व का भी विरोध किया।

1938 में जस्टिस पार्टी (जिसके पेरियार सदस्य थे) और आत्म-सम्मान आंदोलन एक साथ आये। 1944 में नये संगठन का नाम द्रविड़ कषगम (DK) रखा गया। डीके का आंदोलन ब्राह्मण विरोधी, कांग्रेस विरोधी और आर्य विरोधी था। उसने एक स्वतंत्र द्रविड़ राष्ट्र के लिए आंदोलन चलाया। हालांकि, जनता का व्यापक समर्थन न मिलने से यह मांग धीरे-धीरे कम हो गई।

आज़ादी के बाद पेरियार ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। 1949 में, पेरियार के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक, सीएन अन्नादुरई, वैचारिक मतभेदों के कारण उनसे अलग हो गए। अन्नादुरई ने डीएमके बनाई, जो चुनावी प्रक्रिया में शामिल हुई। 1969 में अन्नादुराई की मृत्यु के बाद, एम करुणानिधि ने DMK की कमान संभाली। 1972 में उनके और अभिनेता-राजनेता एमजी रामचंद्रन के बीच मतभेद के कारण पार्टी में विभाजन हो गया। एमजीआर ने अन्नाद्रमुक (AIADMK) का गठन किया।

1977 में एमजीआर सत्ता में आए और 1987 में अपनी मृत्यु तक अपराजित रहे। उन्होंने पार्टी की विचारधारा के रूप में लोक-कल्याणवाद को चुना, इससे डीके का मूल तर्कवादी और ब्राह्मण विरोधी एजेंडा कमजोर हो गया।

हिन्दू धर्म और जाति पर पेरियार के क्या विचार थे?

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक ‘मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया’ में लिखा है कि तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह ब्राह्मण ही थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन का शुरुआती फायदा उठाया। वह अंग्रेजी भाषा सीखी और ब्रिटिश शासन में शिक्षक, वकील, डॉक्टर, क्लर्क, सिविल सेवक बन गए। उभरती हुई कांग्रेस पार्टी में भी उनका अच्छा प्रतिनिधित्व था। इसके अलावा उन्हें पारंपरिक रूप से समाज में उच्च सामाजिक दर्जा प्राप्त था ही।

गुहा लिखते हैं, “चाहे संयोगवश या जानबूझकर, राज की नीतियों ने उन्हें आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भी प्रभावशाली बना दिया। जीवन के सभी क्षेत्रों में ब्राह्मणों के आधिपत्य के खतरे की वजह से ही जोतीराव फुले और बीआर अंबेडकर को अपने- अपने समय सक्रिय हुए।”

पेरियार अपने लेखों में समाज के कुछ वर्गों को हाशिए पर धकेलने वाली हिंदू धार्मिक प्रथाओं की तीखी आलोचना करते थे। डॉ. कार्तिक राम मनोहरन के लेख ‘फ्रीडम फ्रॉम गॉड: पेरियार एंड रिलिजन’ के अनुसार, शुरुआत में पेरियार ने नास्तिकता और समाजवाद की वकालत करने वाले लेखों और किताबों का अनुवाद प्रकाशित किया, जैसे कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स की ‘द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो’, भगत सिंह की ‘क्यों’ मैं नास्तिक हूं’, बर्ट्रेंड रसेल की ‘मैं ईसाई क्यों नहीं हूं।’

गुहा की किताब में पेरियार के कुछ लेख और भाषण भी शामिल हैं। 1927 के एक भाषण में उन्होंने कहा, “भारत में आने के कुछ ही समय बाद ईसाइयों ने हमारे लोगों को एकजुट किया, उन्हें शिक्षा दी और खुद को हमारा स्वामी बना लिया… दूसरी हमारा धर्म, जिसे भगवान द्वारा बनाया गया और लाखों-करोड़ों साल पुराना कहा जाता है। वह मानता है कि उसके अधिकांश लोगों को अपना धर्म ग्रंथ नहीं पढ़ना चाहिए। यदि कोई इस आदेश का उल्लंघन करता है, तो धर्मग्रंथ पढ़ने वाले की जीभ काटने, सुनने वाले के कानों में सीसा पिघलाकर डालने और सीखने वालों का हृदय निकाल लेने जैसे दंड दिए जाते हैं।

पेरियार ने समाज में कुछ जाति समूहों के प्रभुत्व पर भी सवाल उठाया और उन्हें धर्म के अस्तित्व से जोड़ा। डॉ. मनोहरन के अनुसार, “पेरियार ने 7 जून 1931 को अपने पार्टी के पेपर कुडियारासु में लिखा था कि गैर-ब्राह्मण और अछूत जातियां, गरीब और श्रमिक वर्ग, यदि वे समानता और समाजवाद चाहते हैं, तो उन्हें पहले हिंदू धर्म को नष्ट करने की जरूरत है।” पेरियार ने रामायण जैसे हिंदू महाकाव्यों के आलोचनात्मक लेख भी लिखे।

उन्होंने 1969 में अपने मिशन का वर्णन करते हुए कहा: “मैं मानव समाज का सुधारक हूं। मुझे देश, भगवान, धर्म, भाषा या राज्य की परवाह नहीं है। मैं केवल मानव समाज के कल्याण और विकास के बारे में चिंतित हूं।”

मनोहरन ने लिखा, “पेरियार ने धर्म को सामाजिक शक्ति की एक संस्था के रूप में देखा। उनका मानना था कि हिंदू वर्ण व्यवस्था में महिलाओं और निचली जातियों की समानता और स्वतंत्रता को कम करने के लिए ब्राह्मणों को विशेषाधिकार दिया गया। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि इसमें कोई सुधार होगा। इसलिए उन्होंने धर्म को पूरी तरह खत्म करने का सुझाव दिया। पेरियार के सबसे प्रसिद्ध उद्धरणों में से एक, “कोई भगवान नहीं है। जिसने भगवान को बनाया वह मूर्ख है। जो ईश्वर का प्रचार करता है वह दुष्ट है। जो भगवान की पूजा करता है वह जंगली है।”

बाद की पीढ़ी ने क्या किया?

सीएन अन्नादुराई धर्म के मामले पर उदारवादी रुख अपनाएंगे। उन्होंने बाद में कहा, “मैं न तो गणेश की मूर्ति तोड़ूंगा और न ही नारियल (कोई धार्मिक भेंट नहीं चढ़ाऊंगा)।” उनके शिष्य और बाद में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने एम करुणानिधि भी नास्तिक थे। एक कवि और पटकथा लेखक के रूप में, उन्होंने लोकप्रिय नाटकों और फिल्मों के माध्यम से ब्राह्मणों और धर्म की आलोचना की।

शनिवार को अपने भाषण में उदयनिधि ने पेरियार द्वारा पहले कही गई बातों पर भी बात की। उन्होंने कहा, “सनातन ने महिलाओं के साथ क्या किया? इसने उन महिलाओं को आग में धकेल दिया, जिन्होंने अपने पतियों को खो दिया था (सती प्रथा), इसने विधवाओं के सिर मुंडवा दिए और उन्हें सफेद साड़ी पहनाई… द्रविड़म (द्रमुक शासन द्वारा अपनाई गई द्रविड़ विचारधारा) ने क्या किया? इसने बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा की सुविधा दी, छात्राओं को कॉलेज की शिक्षा के लिए 1,000 रुपये की मासिक सहायता दी।”

उदयनिधि ने आगे कहा, “आइए हम तमिलनाडु के सभी 39 संसदीय क्षेत्रों और पुडुचेरी के एक क्षेत्र (2024 के लोकसभा चुनाव में) में जीत हासिल करने का संकल्प लें। सनातन को गिरने दो, द्रविड़म को जीतने दो।”