कभी सिंध कश्मीरी ब्राह्मणों से आबाद हुआ करता था। सिंध के अंतिम हिंदू शासक राजा दाहिर थे। वह एकइंसाफ़-पसंद राजा थे। राजा दाहिर, राजा चच के सबसे छोटे बेटे थे। सिंध में अरब इतिहास की पहली किताब ‘चचनामा’ से पता चलता है कि आठवीं सदी में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला कर राजा दाहिर को हरा दिया था। यह सिंध के आखिरी हिंदू शासक का पतन था और कासिम की हुकूमत का आगाज़।
कासिम ने राजा दाहिर की गर्दन काट बग़दाद के खलीफा अल वलीद प्रथम को तोहफे में भेजा था। इसके बाद सिंध की राजधानी की आखिरी दीवार भी गिरा दी गई। विक्रम संपत अपनी किताब ‘शौर्यगाथाएं-भारतीय इतिहास के अविस्मरणीय योद्धा’ में बताते हैं कि राजवंश की कई महिलाओं सहित करीब साठ हज़ार लोगों को गुलाम बनाया गया। करीब 15,000 सैनिकों के साथ दाहिर की पत्नी ने रानीबाई ने राओर के किले की रक्षा का प्रयास किया, लेकिन अंत में हथियार डालना पड़ा।
इतिहासकार चिंतामण विनायक वैद्य ने लिखा है, कासिम ने दाहिर की एक पत्नी लाडी के साथ दुष्कर्म करने के बाद जबरन विवाह किया था, जबकि किले की रक्षा में असफल रहने पर कई राजपूत महिलाओं के साथ रानीबाई ने आत्मदाह कर लिया था। भारत में राज परिवारों की महिलाओं द्वारा जौहर करने का संभवतः यह पहला उदाहरण है। दाहिर की बेटियां, सूर्यदेवी और परिमलदेवी को खलीफा के हरम में भेज दिया गया था।
सिंध पर क्यों हुआ हमला?
हुज्जाज बिन यूसुफ ने सिंध पर हमले का आदेश एक लूट की घटना के बाद दिया था। दरअसल, सीलोन (अब श्रीलंका) के शासक ने बगदाद के खलीफा अल वलीद प्रथम को बहुमूल्य उपहार भेजा था। तोहफा अन्य जहाज से भेजा जा रहा था। लेकिन तूफानी हवाओं के कारण सिंध में सिंधु नदी के पश्चिमी तट पर पड़ने वाले तटवर्ती शहर देबल (आज के कराची से 60 किमी दूर) के बंदरगाह पर रुकना पड़ा। उस दौरान सत्तासीन राजा दाहिर ने समुद्री लुटेरों पर काबू न पाने की अपनी मजबूरी अरबों को बताई।
दाहिर ने कहा, ‘यह लुटेरों के गुट का काम है। वह हमारी परवाह भी नहीं करते। इस पर खलीफा के सबसे विश्वासपात्र हाकिमों में से एक अल हज्जाज़ इब्न यूसुफ ने इस घटना का बदला लेने के लिए उन्हें सिंध के खिलाफ जेहाद की घोषणा करने को कहा। बुदैल को सिंध पर हमला करने भेजा गया, परंतु दाहिर के बेटे जयसिम्हा (जयसिहा) ने उसकी सेनाओं को पछाड़ दिया।
सदमे में था खलीफा
दुनिया भर में कई ताकतों को रौंदने वाले अरब साम्राज्य को भारत से मिली हार से खलीफा सदमे में थे। इस दुर्गति के कारण वह हज्जाज़ पर गुस्सा थे, लेकिन बाद में अभियान को किसी भी किस्म से जीतना उन्होंने अपनी इज़्ज़त का सवाल बना लिया था। इसके अनुसार हज्जाज़ के दामाद, मोहम्मद इब्न-कासिम को सन् 710 में शाम (सीरिया) के 6,000 लड़ाकों और बुर्जबंद नगरों के द्वारों को गिराने के लिए, लकड़ी के बड़े लट्टों के साथ सिंध फतेह करने भेजा गया।