पंजाब में 103 साल पुराना राजनीतिक दल शिरोमणि अकाली दल बेहद कमजोर हो चुका है और अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। दिसंबर 1920 में बने शिरोमणि अकाली दल के द्वारा विधानसभा चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 में किए गए खराब प्रदर्शन के बाद यह सवाल पंजाब के सियासी गलियारों में पूछा जा रहा है कि क्या अकाली दल का वजूद खत्म हो जाएगा?
अकाली दल का जनाधार लगातार गिरता जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अकाली दल ने अकेले दम पर सभी 13 सीटों पर उम्मीदवार मैदान में उतारे लेकिन उसे सिर्फ एक सीट पर जीत मिली।
पार्टी की उम्मीदवार और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल बठिंडा सीट बचाने में कामयाब रहीं जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सुखबीर बादल जिस फिरोजपुर सीट से चुनाव जीते थे, वहां भी पार्टी को हार मिली है।
बठिंडा सीट पर भले ही अकाली दल को जीत मिली है लेकिन उसका वोट शेयर लगातार गिरता जा रहा है।

सुखबीर के फैसलों पर उठाए सवाल
अकाली दल के संरक्षक और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर सुखबीर बादल के फैसलों पर सवाल उठा चुके हैं। पार्टी के ये दोनों बड़े नेता पार्टी के कामकाज में सुधार करने की मांग भी कर चुके हैं।
लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद से ही अकाली दल के अंदर जबरदस्त बवाल चल रहा है। विधायक दल के नेता मनप्रीत सिंह अयाली ने चुनाव नतीजों के बाद बुलाई गई बैठक से पूरी तरह किनारा कर लिया था। जबकि इस बैठक में खुद अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल मौजूद थे। अयाली का कहना है कि जब तक पार्टी इकबाल सिंह झुंडा कमेटी की सिफारिशों को लागू नहीं करती तब तक वह पार्टी की गतिविधियों में भाग नहीं लेंगे।

2022 के विधानसभा चुनाव में जब पंजाब में अकाली दल को सिर्फ तीन सीटें मिली थी तब पार्टी के खराब प्रदर्शन का विश्लेषण करने के लिए झुंडा कमेटी बनाई गई थी लेकिन पार्टी ने कभी भी इस कमेटी की रिपोर्ट को जनता के सामने नहीं आने दिया।
कुछ दिन पहले ही पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अपने जीजा आदेश प्रताप सिंह कैरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
बीजेपी-अकाली दल दोनों की सीटें हुई कम
पंजाब में 1996 से लेकर 2019 तक सभी चुनाव अकाली दल और बीजेपी ने साथ मिलकर लड़े लेकिन कृषि कानूनों के मुद्दे पर अकाली दल ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था और अब इसका खामियाजा अकाली दल और भाजपा दोनों को भुगतना पड़ा है।
बीते लोकसभा चुनाव में अकाली दल और बीजेपी दो-दो सीटों पर जीते थे लेकिन इस बार बीजेपी को कोई सीट नहीं मिली और अकाली दल सिर्फ एक ही सीट पर जीत हासिल कर पाया। यहां ध्यान देना जरूरी है कि अकाली दल का पंजाब के बाहर कोई जनाधार नहीं है। सिर्फ हरियाणा और दिल्ली में कुछ सिख बहुल इलाकों को छोड़कर।
ऐसे में अकाली दल को पंजाब में अपने गिरते प्रदर्शन को सुधारना ही होगा, वरना पार्टी का वजूद खत्म हो सकता है।
गिरता गया अकाली दल का वोट शेयर
साल | अकाली दल को मिले वोट (प्रतिशत में) |
2012 विधानसभा चुनाव | 34.73% |
2014 लोकसभा चुनाव | 26.4% |
2017 विधानसभा चुनाव | 25.4% |
2019 लोकसभा चुनाव | 27.45% |
2022 विधानसभा चुनाव | 18.38% |
2024 लोकसभा चुनाव | 13.42% |
लोकसभा चुनाव में हार के कारणों का पता लगाने के लिए बुलाई गई बैठक में हालांकि सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व पर ही भरोसा जताया गया है लेकिन बैठक में पार्टी के संरक्षक सुखदेव सिंह ढींडसा और कोर कमेटी के सदस्य सिकंदर सिंह मलूका नहीं पहुंचे। इसके अलावा पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया भी बैठक से गैरहाजिर रहे।
आप का वोट शेयर घटा, हमारा बढ़ा: जाखड़
भले ही बीजेपी को पंजाब में कोई सीट नहीं मिली हो लेकिन उसने अपना वोट शेयर दोगुना कर लिया है। पंजाब बीजेपी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ का कहना है कि आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 42% से घटकर 26% हो गया है जबकि अकेले चुनाव लड़ने के बाद भी बीजेपी का वोट शेयर लगभग दोगुना हुआ है। जाखड़ ने कहा है कि पार्टी तीन लोकसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है और 6 लोकसभा सीटों पर तीसरे स्थान पर आई है।
बीजेपी का वोट शेयर हुआ दोगुना
साल | बीजेपी को मिले वोट (प्रतिशत में) |
2019 लोकसभा चुनाव | 9.63% |
2022 विधानसभा चुनाव | 6.60% |
2024 लोकसभा चुनाव | 18.56% |
बादल परिवार के सामने है बड़ी चुनौती
सुखबीर सिंह बादल के सामने पार्टी को फिर से खड़ा करने की बड़ी चुनौती है। कई बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे सीनियर नेता प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद अब अकाली दल सुखबीर सिंह बादल के हाथों में है। सुखबीर सिंह बादल और उनकी पत्नी हरसिमरत कौर बादल पूरा जोर लगाने के बाद भी पिछले विधानसभा और इस लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन नहीं सुधार सके।
पंजाब में ढाई साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव में सात सीटें जीतकर कांग्रेस ने दिखाया है कि राज्य के अंदर उसका दबदबा कायम है। ऐसे में बेहद कमजोर हो चुका अकाली दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का मुकाबला कैसे कर पाएगा?
अकाली दल के कुछ नेता कह चुके हैं कि अगर अकाली दल और भाजपा मिलकर चुनाव लड़ते तो इससे दोनों ही दलों को फायदा होता। पंथक पार्टी मानी जाने वाली अकाली दल को लगभग 60% सिख आबादी वाले राज्य पंजाब में अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, ऐसे में पार्टी का भविष्य निश्चित रूप से अंधकार में दिखाई देता है।
ऐसे में सवाल यह है कि क्या अकाली दल फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर होगा?

किसानों का विरोध बना मुसीबत
अकाली दल बीजेपी से गठबंधन इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि पंजाब के किसान बीजेपी से नाराज हैं। चुनाव प्रचार के दौरान कई जगहों पर बीजेपी के उम्मीदवारों को किसानों के पुरजोर विरोध का सामना करना पड़ा। पंजाब में किसान राजनीति बेहद ताकतवर है और जब तक किसान बीजेपी का विरोध करते रहेंगे, अकाली दल के लिए बीजेपी से हाथ मिला पाना बेहद मुश्किल है।
ऐसे में अकाली दल को अकेले ही चुनावी लड़ाई लड़नी होगी। लेकिन क्या वह अकेले संघर्ष कर पाएगा और 2027 के विधानसभा चुनाव में क्या पार्टी का प्रदर्शन सुधरेगा, इसका जवाब आने वाले वक्त में मिलेगा लेकिन अकाली दल मौजूदा वक्त में निश्चित रूप से काफी खराब दौर से गुजर रहा है।