प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला था। पार्टी ने 508 में से रिकॉर्ड 401 सीटें हासिल की थी। 40 वर्षीय राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। हालांकि अगले ही चुनाव (1989) में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और राजीव गांधी की कुर्सी चली गई।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर मानते हैं कि अगर राजीव गांधी ने अपने करीबी सहयोगियों की बात मानकर ‘राम मंदिर’ को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया होता, तो शायद हार इतनी बुरी नहीं होती। जगरनॉट बुक्स से प्रकाशित आत्मकथा Memoirs of A Maverick : The First Fifty Years (1941–1991) में मणिशंकर अय्यर ने बताया कि 1989 के आम चुनाव का मुख्य एजेंडा ‘पंचायत राज’ तय हुआ था, लेकिन आखिरी वक्त पर एजेंडा बदल गया।
शीला दीक्षित ने राजीव गांधी को दी सलाह
मणिशंकर अय्यर 1989 में भारतीय विदेश सेवा छोड़कर राजनीति में आए थे। अक्टूबर के मध्य में वह PMO (Prime Minister’s Office) की जगह CPO (Congress President’s Office) में सक्रिय हो गए थे। आम चुनाव नजदीक था और कांग्रेस जल्द अपना प्रचार शुरू करने वाली थी। अय्यर प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चुनावी दौरों के कार्यक्रम को तय करने में जुटे हुए थे।
कई महीने इस पर काम हुआ और तय किया गया कि राजीव गांधी का दौरा राजस्थान के नागौर से शुरू होगा। इस जगह को इसलिए चुना गया था क्योंकि साल 1959 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गांधी जयंती के मौके पर नागौर से ही पंचायत राज व्यवस्था लागू की थी। राजीव गांधी के अभियान का भी प्रमुख प्रस्तावित मुद्दा पंचायती राज ही था।
एक रोज मणिशंकर अय्यर प्रधानमंत्री के साथ दौरे के कार्यक्रम पर चर्चा कर रहे थे। तभी शीला दीक्षित कमरे में आयीं। उन दिनों वह PMO की राज्य मंत्री हुआ करती थीं। अय्यर अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, “उन्होंने (शीला दीक्षित) ने कहा कि वह अपने सहयोगियों की ओर से आई हैं; जो चाहते हैं कि पंचायती राज को मुख्य मुद्दा न बनाया जाए, क्योंकि सारा ध्यान राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर केंद्रित है।” शीला दीक्षित और उनके सहयोगी चाहते थे कि पीएम अयोध्या के बाहरी इलाके फैजाबाद से अपना अभियान शुरू करें।
अय्यर ने दी चेतावनी
शीला दीक्षित के बाहर जाने के बाद अय्यर ने राजीव गांधी को याद दिलाया, “जब फ़ॉकलैंड युद्ध के बाद मार्गरेट थैचर ने अप्रत्याशित चुनाव जीत हासिल की थी, तो आपने ही मुझे रॉडनी टायलर द्वारा लिखी एक कैम्पेन बुक भेंट की थी! उस बुक से मैंने यह सीखा कि कभी अपना चुनावी अभियान विपक्षी दलों की पसंद के आधार पर नहीं चलाना चाहिए। इसलिए मेरा विचार है कि हमें इस चुनाव को पंचायत राज के मुद्दे पर ही लड़ना चाहिए, जिसकी हमने लंबे समय से तैयारी की है, न कि भाजपा के प्रमुख मुद्दे को अपना मुद्दा बनाने के जाल में फंसना चाहिए।” अय्यर की इस सलाह पर राजीव गांधी ने सिर तो हिलाया लेकिन कुछ कहा नहीं।
प्रधानमंत्री का मिला संदेश
बाद में राजीव गांधी ने मणिशंकर अय्यर को एक संदेश भेजा जिसमें कहा गया कि 3 नवंबर, 1989 को चुनाव अभियान की पहली बैठक फैजाबाद में होनी चाहिए। नागौर बाद में जाएंगे। राजीव गांधी ने अपने पहले ही चुनावी भाषण में ‘राम राज’ का जिक्र किया। हालांकि तब अय्यर मंच पर नहीं थे।
अय्यर लिखते हैं कि प्रधानमंत्री के इस भाषण से विपक्ष को उनके चुनावी अभियान को नुकसान पहुंचाने का हथियार मिल गया। विपक्ष ने उन्हें अवसरवादी के रूप में चित्रित किया, जो मुस्लिम वोटों को खुश करते हुए हिंदू वोटों की अपील कर रहे थे।
लेकिन प्रधानमंत्री के नोट्स में नहीं था राम राज का जिक्र
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पहले ही चुनाव भाषण में राम राज का जिक्र तो कर दिया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि उनके भाषण के नोट्स में राम राज लिखा ही नहीं गया था। अय्यर खुद इस बात की पुष्टि करते हैं, “मैं जानता था कि उनके भाषण नोट्स में ‘राम राज’ शामिल नहीं था और उन्होंने इसे शामिल करने के लिए कहा भी नहीं था। तो मंच पर किसी ने उनसे ऐसा कहने के लिए कहा होगा।” अय्यर लिखते हैं कि यदि वे पंचायती राज को मुख्य मुद्दा बनाने के अपने दो साल के संकल्प पर कायम रहते तो शायद हार का अंतर कम रहता।