कांग्रेस के कट्टर समर्थक से सामान्य कार्यकर्ता, मंत्री और फिर राष्ट्रपति तक का सफर करने वाले दिवंगत प्रणब मुखर्जी के बारे में एक नई किताब (प्रणब, माय फादर) से कई बातें सामने आई हैं। इनमें उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी बातें भी हैं। किताब उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने लिखी और रूपा पब्लिकेशंस ने प्रकाशित की है।
शर्मिष्ठा ने प्रणब के प्रेम विवाह का भी जिक्र किया है। उन्होंने बताया है कि उनके खानदान में यह पहली अंतरजातीय शादी थी। जिस तरह के पारंपरिक माहौल में गांव के एक मध्यवर्गीय परिवार में प्रणब पले-बढ़े थे, वैसे माहौल में प्रेम विवाह तब एकदम असामान्य हुआ करता था। यह सब कैसे हुआ, इस बारे में शर्मिष्ठा की भी कभी हिम्मत नहीं हुई कि पिता से पूछें। पर, मां से उन्होंने कई बार पूछा। हालांकि, मां बस एक वाक्य में जवाब देकर निपटा देतीं- एक दिन उन्होंने प्रपोज किया और मैंने मान लिया।
मां गीता थीं रोमांटिक, पर पिता प्रणब…
शर्मिष्ठा के मुताबिक उनकी मां तो रोमांटिक थीं, पर पिता तो एकदम अलग थे। वह सोचतीं कि आखिर पापा ने मां को कैसे प्रपोज किया होगा, कैसे डेट पर गए होंगे, शादी से पहले दोनों क्या बातें करते होंगे…। लेकिन इन सवालों का जवाब उन्हें कभी नहीं मिला। पिता की मौत के बाद उनकी डायरी से उन्हें इस बारे में जरूर कुछ जानकारी हासिल हुई।
शादी की 57वीं सालगिरह पर प्रणब मुखर्जी ने लिखा था नोट
प्रणब और गीता की शादी 13 जुलाई को हुई थी। 2014 में उनकी शादी की 57वीं सालगिरह थी। इस मौके पर प्रणब मुखर्जी ने डायरी में लिखा था- यह पहली नजर में हुआ प्यार था।
कहां मिली नजर
तब प्रणब मुखर्जी 22 साल के थे और गीता चार साल छोटी थीं। प्रणब कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एमए कर रहे थे। गीता कॉलेज में फर्स्ट-ईयर में थीं। प्रणब हावड़ा में अपनी बहन अन्नपूर्णा और जीजा के साथ रहते थे। उनके पिता ने गीता के रहने का इंतजाम भी वहीं करा दिया। वहीं दोनों की मुलाकात (नवंबर, 1956) हुई, जो आगे चल कर प्यार और शादी (जुलाई, 1957) में बदल गई।

गीता में प्रणब ने क्या देखा
प्रणब को डर था कि गीता से प्यार की बात अगर उनकी मां को पता चल गया तो वह कभी इसे स्वीकार नहीं करेंगी। इसलिए दोनों ने फैसला किया कि पहले शादी करते हैं, फिर परिवार को बताते हैं। जाहिर है, शादी की बात सबसे पहले अन्नपूर्णा को ही पता चली। उन्होंने ही मां को इसकी जानकारी दी। गीता जाति से कायस्थ थीं। उनकी लंबाई कम थी और रंग भी साफ नहीं था। एक तो अंतररजातीय शादी और उस पर कम लंबाई और काला रंग! प्रणब के मां द्वारा शादी को स्वीकार करने की कोई संभावना ही नहीं थी। प्रणब जब मिराती में अपने घर पहुंचे तो मां उन्हें खींच कर एक कमरे में ले गईं और पूछा- आखिर तुम्हें उसमें ऐसा क्या दिखा जो शादी कर ली? प्रणब का जवाब था- उसका चेहरा बड़ा प्यारा लगा और वह गाती भी बहुत अच्छा हैं। शर्मिष्ठा ने यह बात एक ताई के हवाले से किताब में लिखी है।
पिता के दखल के बाद पत्नी को ला सके घर
प्रणब से उनकी मां ने कई दिनों तक बात नहीं की। बाद में उनके पिता और मामा ने दखल दिया। प्रणब के पिता स्वतंत्रता सेनानी और पक्के कांग्रेसी थे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में लड़की की कम लंबाई या काला रंग शादी तय करने का आधार नहीं माना जाता। बड़ी मुश्किल से मां राजी हुईं और प्रणब अपनी पत्नी को घर ला सके थे।
पिता की एक पहल ही बना गीता और प्रणब के बीच प्यार पनपने का सबब
असल में प्रणब के पिता गीता और उसकी मां से अनजान नहीं थे। गीता की मां मीरा देवी पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से आई थीं। मीरा देवी की शादी कम उम्र में ही एक जमींदार परिवार में हुई थी। लेकिन, कुछ साल बाद ही उनके पति ने दूसरी शादी कर ली। मीरा को यह मंजूर ना हुआ और वह बेटी गीता और एक बेटे को लेकर अपने भाई के घर उत्तरपाड़ा (पश्चिम बंगाल) रहने आ गईं।
मीरा देवी भाई के घर आ तो गईं, पर उन पर बोझ बन कर नहीं रहना चाहती थीं। प्रणब के पिता मीरा देवी के भाई को जानते थे। उन्होंने मीरा देवी को एक अस्पताल में नौकरी दिलवाने में मदद कर दी। जब गीता कॉलेज की पढ़ाई के लिए हावड़ा गईं तो बेटी अन्नपूर्णा के किराए के मकान में उसके रहने का इंतजाम भी प्रणब के पिता ने ही करवाया था।
आगे परिवार में खूब हुईं अंतरजातीय शादियां
प्रणब कुलीन बंगाली ब्राह्मण परिवार से थे और उनकी पत्नी गीता कायस्थ थीं। उनकी शादी प्रणब के खानदान की पहली अंतरजातीय शादी थी। लेकिन, इसके बाद प्रणब की तीन छोटी बहनों में से दो ने प्रेम विवाह ही किया और दोनों ने गैर ब्राह्मण जीवनसाथी चुना था। उनकी बेटी शर्मिष्ठा ने तो गैर बंगाली से शादी की। लेकिन, तब तक उनकी दादी (प्रणब की मां) का नजरिया बिल्कुल बदल चुका था। गीता ने अपनी सास को यह बताते हुए कि मां मुन्नी (शर्मिष्ठा) ने एक गैर बंगाली से शादी करने का फैसला किया है, पूछा- आपको बुरा तो नहीं लगेगा? उनका जवाब था- क्या बात कर रही हो गीता! दुनिया चांद पर पहुंच गई है और तुम बंगाली- गैर बंगाली की बात कर रही हो!