Jharkhand JMM Congress Alliance 2024: झारखंड में विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे के बाद से ही बीजेपी में भगदड़ मची हुई है। कई बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और कई सीटों पर बागी नेता चुनाव मैदान में कूद गए हैं। झारखंड में 2019 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने वाली बीजेपी ने इस बार पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने की कोशिश की है।
बीजेपी ने ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के साथ गठबंधन किया है और अपने सहयोगी दलों जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को भी हिस्सेदारी दी है।
दूसरी ओर, झामुमो अपने सहयोगी दलों- कांग्रेस, आरजेडी और वाम दलों के साथ चुनाव लड़ रही है और फिर से सरकार बनाने का दावा कर रही है। आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि झारखंड के विधानसभा चुनाव में पांच बड़े खिलाड़ी कौन हैं और चुनाव में उनका क्या दांव पर है?
हेमंत सोरेन
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में 5 महीने जेल में रहे। इसके अलावा 2019 से अब तक शासन और सरकार उन्होंने ही चलाई है। हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव में अपनी सरकार की योजनाओं जैसे 1000 रुपये की पेंशन योजना, सेवाओं की डोर स्टेप डिलीवरी, 18 से 50 साल के बीच की वंचित समुदाय की महिलाओं के लिए मैया सम्मान योजना को बड़ा मुद्दा बनाया है।
हेमंत सोरेन ने अपने कार्यकाल में सरना कोड प्रस्ताव और झारखंड डोमिसाइल बिल को पास करके बड़ा कार्ड खेला है और इसे केंद्र के पाले में फेंक दिया है। सोरेन और उनकी पार्टी झामुमो ने बीजेपी को बाहरी और आदिवासियों को राज्य का मूल निवासी (भीतरी) बताकर नैरेटिव चला है।
लोकसभा चुनाव 2024 में झामुमो और इंडिया गठबंधन को इसका फायदा मिला और इंडिया गठबंधन ने अनुसूचित जनजाति (आदिवासियों) के लिए आरक्षित सभी पांचों सीटों पर जीत हासिल की।
बाबूलाल मरांडी
झारखंड विधानसभा चुनाव में दूसरे बड़े खिलाड़ी बाबूलाल मरांडी हैं। बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं और मौजूदा वक्त में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। मरांडी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल होने और राजनीति में आने से पहले स्कूल में शिक्षक थे। मरांडी ने उस वक्त झारखंड की राजनीति में जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की थी जब उन्होंने 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को उनके ही गढ़ दुमका में चुनाव हराया था। लेकिन बाद में उनके बीजेपी से संबंध खराब हो गए और 2006 में उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का गठन किया था।
बीजेपी ने 2019 के विधानसभा चुनाव में हार मिलने के बाद बाबूलाल मरांडी की तरफ हाथ बढ़ाया और 2020 में मरांडी बीजेपी में वापस लौट आए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बीजेपी को 2014 में झारखंड में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों में से मिली 11 सीटों के मुकाबले 2019 में सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी। जबकि झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन ने राज्य की 28 में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
झारखंड में हेमंत सोरेन के सामने आदिवासी चेहरे को लाने की मजबूरी को देखते हुए बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। बाबूलाल मरांडी को इस चुनाव में साबित करना है कि अभी भी उनकी झारखंड की राजनीति में पकड़ है। लोकसभा चुनाव में आरक्षित लोकसभा सीटों में मिली हार के बाद मरांडी की जिम्मेदारी और बढ़ गई है।
हिमंता बिस्वा सरमा
बीजेपी ने असम के मुख्यमंत्री और हिंदुत्व की राजनीति के बड़े चेहरे हिमंता बिस्वा सरमा को झारखंड के में चुनाव सह प्रभारी बनाया है। सरमा ने पिछले कुछ महीनों में प्रवासियों द्वारा कथित रूप से की जा रही घुसपैठ को मुद्दा बनाने की कोशिश की है। मरांडी लगातार झारखंड का दौरा कर रहे हैं और उनकी नजर 28 आरक्षित सीटों पर है।
सरमा ने चुनावी कौशल दिखाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन और उनके बेटे और झामुमो के पुराने नेता लोबिन हेमब्रोम को बीजेपी में लाने में कामयाबी हासिल की है।
सरमा पिछले कुछ सालों में पूर्वोत्तर में बीजेपी के बड़े रणनीतिकार बनकर उभरे हैं। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में असम में पार्टी का नेतृत्व किया और कड़े मुकाबले में बीजेपी को जीत दिलाई। सरमा को पार्टी असम के बाहर भी लगातार चुनाव प्रचार में भेजती रही है। अगर झारखंड में बीजेपी चुनाव जीत जाती है तो निश्चित रूप से पार्टी के अंदर सरमा का कद बढ़ेगा। निश्चित रूप से झारखंड का चुनाव उनके लिए एक बड़ी परीक्षा है।
चंपई सोरेन
चंपई सोरेन का जन्म सरायकेला-खरसावां जिले के एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने अलग झारखंड राज्य के गठन के लिए चले आंदोलन में हिस्सा लिया था। 1995 में पहली बार वह सरायकेला सीट से निर्दलीय चुनाव जीते थे। इसके बाद उन्होंने कई बार चुनाव जीता और झामुमो के अंदर सोरेन परिवार के बाद सबसे लोकप्रिय नेता बने।
इस साल की शुरुआत में जब हेमंत सोरेन को जांच एजेंसियों ने गिरफ्तार कर लिया था तो चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया था। वह 5 महीने तक इस कुर्सी पर रहे लेकिन जब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए तो उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी। मुख्यमंत्री के पद से हटाने के बाद उन्होंने बगावती तेवर दिखाये और पार्टी पर अपमानित करने का आरोप लगाते हुए अगस्त में बीजेपी में शामिल हो गए।
बीजेपी ने चंपई सोरेन को पूरा सम्मान देते हुए उन्हें और उनके बेटे को टिकट दिया है। चंपई सोरेन अगर बीजेपी को अपने प्रभाव वाले इलाकों में जीत दिलाने में कामयाब रहे तो इससे बीजेपी में उनका कद बढ़ सकता है।
कल्पना सोरेन
जब हेमंत सोरेन जेल में थे तो उनकी गैर मौजूदगी में कल्पना सोरेन ने ही लोकसभा चुनाव में पार्टी का चुनाव प्रचार संभाला। उन्होंने झामुमो और इंडिया गठबंधन के लिए जमकर चुनाव प्रचार किया और खुद भी गांडेय विधानसभा सीट से उपचुनाव जीतकर राजनीतिक पारी की धमाकेदार शुरुआत की। बीते कई महीनों में उन्होंने जोरदार चुनावी भाषण दिए हैं और झामुमो के महिला चेहरे के रूप में उभरी हैं।
अगर इंडिया गठबंधन फिर से राज्य में सरकार बना लेता है तो इसमें कल्पना सोरेन की भी अहम भूमिका होगी। कल्पना सोरेन ने लगातार झारखंड की जनता के बीच पहुंचकर अपनी पार्टी और इंडिया गठबंधन को मजबूत करने की दिशा में काम किया है।